Gangotri-Gaumukh Yatra: कैसे करें यात्रा! हिमालय की गोद में गंगा के उद्गम तक का अद्भुत सफर

Gangotri and Gaumukh Travel Guide: इस लेख में हम आपको गंगोत्री और गौमुख यात्रा का विस्तृत गाइड प्रस्तुत करेंगे ।

Shivani Jawanjal
Published on: 21 Aug 2025 1:53 PM IST
Gangotri and Gaumukh Travel Guide Full Details in Hindi
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Gangotri and Gaumukh Travel Guide Full Details in Hindi (Image Credit-Social Media)

Gangotri and Gaumukh Yatra: भारत की पवित्र धरती पर अनेकों तीर्थ और धार्मिक स्थल हैं जो अपने आप में एक अद्भुत अनुभव समेटे हुए है । लेकिन उत्तराखंड की ऊँची चोटियों पर बसे गंगोत्री धाम से करीब 18-19 किलोमीटर दूर स्थित गौमुख अपना एक अलग ही महत्त्व है। गौमुख गंगा नदी का वास्तविक उद्गम स्थल है।यह स्थान अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिक महत्व और रोमांचक ट्रेकिंग अनुभव के लिए प्रसिद्ध है। हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं, ताकि माँ गंगा के पवित्र स्रोत का साक्षात्कार कर सकें और हिमालय की अनछुई वादियों का अनुभव कर सकें।

गंगोत्री धाम का परिचय


गंगोत्री धाम को गंगा नदी का पवित्र उद्गम स्थल माना जाता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर (10,200 फीट) की ऊँचाई पर स्थित गंगोत्री धाम धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है। यह पवित्र मंदिर भगवान शिव और माँ गंगा से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यता है कि राजा भगीरथ की कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई, ताकि उनके पूर्वजों का मोक्ष हो सके। गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने 18वीं शताब्दी में इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया जो सफेद ग्रेनाइट पत्थरों से बना है। हर वर्ष यह मंदिर अप्रैल/मई से लेकर अक्टूबर/नवंबर तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है, जबकि सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण बंद कर दिया जाता है। जबकि सर्दियों में माँ गंगा की मूर्ति मुखबा गाँव में विराजमान होती है।

गौमुख का महत्व


गौमुख, गंगोत्री का अंतिम छोर और गंगा नदी का वास्तविक उद्गम स्थल माना जाता है। गंगोत्री मंदिर से लगभग 18-19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान अपने अनोखे स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इसका आकार गाय के मुख जैसा दिखाई देता है और इसी कारण इसे ‘गौमुख’ कहा जाता है। धार्मिक महत्व के साथ-साथ यह स्थल रोमांचक ट्रैकिंग के लिए भी जाना जाता है। बर्फ से ढकी ऊँची चोटियाँ, कलकल बहते झरने और विशाल ग्लेशियर के मनोरम दृश्य इसे तीर्थयात्रियों और साहसिक यात्रियों दोनों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनाते हैं।

गौमुख की यात्रा मार्ग

गौमुख की यात्रा गंगोत्री धाम से ही प्रारंभ होती है और यहां तक पहुँचने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग उपलब्ध हैं। राजधानी दिल्ली से होते हुए आप गंगोत्री और फिर गौमुख पहुंच सकते है ।


सड़क मार्ग - इस यात्रा में सबसे पहले दिल्ली से ऋषिकेश पहुँचना होता है, इसके बाद उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री तक पहुँचा जा सकता है। गंगोत्री और गौमुख जाने के लिए भी अधिकतर यात्री दिल्ली से होते हुए ही यात्रा करते हैं।दिल्ली से गंगोत्री की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है, जबकि हरिद्वार से यह दूरी करीब 290 किलोमीटर, ऋषिकेश से 270 किलोमीटर और उत्तरकाशी से मात्र 100 किलोमीटर है।

रेल मार्ग - रेल मार्ग से आने वाले यात्रियों के लिए ऋषिकेश और हरिद्वार निकटतम रेलवे स्टेशन हैं।

हवाई मार्ग - हवाई मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो गंगोत्री से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एयरपोर्ट से गंगोत्री तक की यात्रा आमतौर पर बस, टैक्सी या शेयरिंग वाहन द्वारा की जाती है। सड़क मार्ग से यात्रा लगभग 9 से 11 घंटे का समय लेती है। यात्रियों के लिए देहरादून से गंगोत्री का मार्ग मसूरी, उत्तरकाशी, और हर्षिल होते हुए जाता है।

इसके अतिरिक्त, देहरादून में शास्त्रधारा हेलिपैड से गंगोत्री या निकटतम हर्षिल हेलीपैड तक हेलिकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है, जो तीर्थयात्रा को तेज और सुविधाजनक बनाती है। हर्षिल से गंगोत्री तक सड़क द्वारा लगभग 25 किलोमीटर का रास्ता तय किया जाता है।

गंगोत्री से गौमुख तक ट्रेक

गंगोत्री से गौमुख तक का ट्रेक लगभग 18-19 किलोमीटर लंबा होता है, जिसे पूरा करने में सामान्यतः 2 से 3 दिन का समय लगता है। इस यात्रा की शुरुआत गंगोत्री से होती है। यह मार्ग घने जंगलों, ऊँचे पहाड़ों और भागीरथी नदी के किनारे से होकर गुजरता है। भोजबासा से आगे लगभग 4-5 किलोमीटर की दूरी तय कर यात्री गौमुख पहुँचते हैं, जहाँ गंगोत्री ग्लेशियर का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। भोजबासा में ठहरने और आराम करने की सुविधा उपलब्ध होती है, इसलिए अधिकांश यात्री यहाँ एक रात बिताकर अगले दिन गौमुख की ओर प्रस्थान करते हैं। यह ट्रेक गढ़वाल हिमालय की मनोरम सुंदरता और कठिनाई, दोनों का अनोखा अनुभव कराता है।


गौमुख ट्रेक का विस्तृत विवरण

गंगोत्री से चीड़वासा (9 किमी) - गंगोत्री से गौमुख तक का ट्रेक अलग-अलग पड़ावों से होकर गुजरता है और हर पड़ाव अपने आप में विशेष महत्व रखता है। गंगोत्री से सबसे पहले चीड़वासा पहुँचना होता है, जो लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मार्ग घने चीड़ के जंगलों से होकर गुजरता है और यहाँ से भागीरथी नदी का सुंदर नज़ारा दिखाई देता है। चीड़वासा हरियाली से भरपूर और कैंपिंग के लिए प्रसिद्ध स्थल है।

चीड़वासा से भोजबासा (5 किमी) - इसके आगे लगभग 5 किलोमीटर का ट्रेक कर भोजबासा पहुँचा जाता है। यह हिस्सा थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन रास्ते में विशाल भोजपत्र के पेड़ यात्रियों को आकर्षित करते हैं, जिनकी पत्तियों पर कभी ऋषि-मुनि शास्त्र लिखा करते थे। भोजबासा ट्रेकर्स का प्रमुख विश्राम स्थल है, जहाँ गढ़वाल मंडल विकास निगम (GMVN) का गेस्ट हाउस और टेंट उपलब्ध होते हैं।

भोजबासा से गौमुख (4 किमी) - भोजबासा से आगे लगभग 4 किलोमीटर का अंतिम और सबसे चुनौतीपूर्ण मार्ग तय कर गौमुख पहुँचा जाता है। यहाँ बर्फ से ढकी चोटियाँ, विशाल ग्लेशियर और हिमालय का शांत वातावरण यात्रियों को एक अद्भुत आध्यात्मिक और प्राकृतिक अनुभव कराता है। यही वह पवित्र स्थल है जहाँ से गंगा नदी का उद्गम होता है। लगभग 30 किलोमीटर लंबे इस ग्लेशियर का अद्भुत नजारा हर यात्री को मंत्रमुग्ध कर देता है।

गंगोत्री और गौमुख यात्रा का उपयुक्त समय

गंगोत्री और गौमुख की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और फिर सितंबर से नवंबर तक माना जाता है। अप्रैल से जून के बीच मौसम सुहावना रहता है। बर्फ पिघल चुकी होती है जिससे रास्ते अपेक्षाकृत आसान हो जाते हैं और आस-पास के दृश्य बेहद मनमोहक लगते हैं। इस दौरान दिन का तापमान लगभग 15-20°C तक रहता है, जबकि रात को यह शून्य डिग्री तक गिर सकता है। मानसून के बाद सितंबर से नवंबर तक का समय भी यात्रा के लिए आदर्श है, जब आसमान बिल्कुल साफ होता है और हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ अपने पूरे सौंदर्य के साथ दिखाई देती हैं। हालांकि नवंबर से अप्रैल तक का समय यात्रा के लिए कठिन होता है क्योंकि इस दौरान भारी बर्फबारी होती है, जिससे मार्ग बंद हो जाते हैं और गंगोत्री मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए बंद रहता है।

आवश्यक परमिट और नियम

गौमुख गंगोत्री नेशनल पार्क के अंतर्गत एक संरक्षित क्षेत्र है, इसलिए यहाँ प्रवेश करने के लिए वन विभाग से परमिट लेना अनिवार्य है। यह परमिट उत्तरकाशी जिले के वन विभाग कार्यालय से या ऑनलाइन माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। यहाँ प्रतिदिन सीमित संख्या (लगभग 150–200) में ही यात्रियों को अनुमति दी जाती है ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे और प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक दबाव न पड़े। यात्रियों के लिए पहचान पत्र साथ रखना आवश्यक है और ट्रेकिंग के दौरान गाइड लेना सुरक्षित व सुविधाजनक माना जाता है। पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए यहाँ प्लास्टिक और अन्य प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं को ले जाना प्रतिबंधित है। साथ ही, कचरा या प्लास्टिक फेंकना सख्त मना है। इसलिए पर्यटकों को प्रकृति की सुरक्षा के नियमों का पूरी तरह पालन करना होता है।

कहाँ ठहरें?

गंगोत्री - यहाँ धर्मशालाएँ, होटल और कई गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं जहाँ तीर्थयात्री आराम कर सकते हैं।

भोजबासा - यहाँ गढ़वाल मंडल विकास निगम (GMVN) का गेस्ट हाउस और कैंपिंग के लिए टेंट उपलब्ध हैं। GMVN का यह गेस्ट हाउस ट्रेकर्स के लिए लोकप्रिय और सुविधाजनक ठहराव स्थल है।

चीड़वासा और गौमुख - यहाँ कैंपिंग की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन इसके लिए वन विभाग से परमिट और अनुमति आवश्यक होती है।

आसपास घूमने योग्य स्थल

गंगोत्री धाम - यह गंगा माँ का प्रमुख मंदिर है और हिंदु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चार धामों में से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी है। गंगोत्री धाम को गंगा नदी के पवित्र उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। यह तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक स्थल है।

तपोवन - गौमुख से आगे 4-5 किमी का कठिन ट्रेक क्षेत्र है, जो साधकों और ट्रेकर्स दोनों के बीच लोकप्रिय है। यह स्थान शांति और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है।

सुर्यकुंड और गंगनानी - ये प्राकृतिक गरम पानी के झरने हैं, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं ।

उत्तरकाशी - यह स्थान प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है और यहाँ साहसिक खेलों के आयोजन के लिए भी प्रसिद्धि है, जिससे यह पर्यटन और धार्मिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।

महत्वपूर्ण सुझाव

ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण गौमुख ट्रेक के दौरान यात्रियों को धीरे-धीरे चलना चाहिए और अपने शरीर को वातावरण के अनुसार ढलने का समय देना आवश्यक है। यात्रा पर निकलते समय पर्याप्त गर्म कपड़े, रेनकोट और आवश्यक दवाइयाँ साथ रखना जरूरी है, ताकि ठंड और अचानक बदलते मौसम से बचा जा सके। ट्रेकिंग के लिए मजबूत और आरामदायक जूते पहनना चाहिए, जो पहाड़ी और पथरीले रास्तों पर अच्छे से सहारा दें। भोजन हल्का, पौष्टिक और आसानी से पचने वाला होना चाहिए, जिससे शरीर ऊर्जावान बना रहे।प्रतिदिन चलने और पहाड़ी मार्ग पर चढ़ाई-उतराई की आदत डालें। योग और प्राणायाम से शरीर को मजबूत और साँस लेने की क्षमता को बेहतर बनाना उपयोगी रहेगा। साथ ही पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। प्लास्टिक का उपयोग न करें और कचरा रास्ते में बिल्कुल भी न फेंकें

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