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Saas Bahu Temple: सास बहु की भक्ति का प्रतीक कहे जाने वाले ग्वालियर की शान, सास-बहू मंदिर को जानते हैं

Gwalior Famous Saas Bahut Temple: सास-बहू मंदिर, जो ग्वालियर किले के पास एक पहाड़ी पर स्थित है, यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना भी है।

Akshita Pidiha
Published on: 19 July 2025 10:30 AM IST (Updated on: 19 July 2025 10:30 AM IST)
Saas Bahu Temple
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Saas Bahu Temple (Image Credit-Social Media)

Gwalior Famous Saas Bahut Temple: ग्वालियर, मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और शानदार वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस शहर का गौरवशाली इतिहास किलों, महलों और मंदिरों में बिखरा पड़ा है। इन्हीं में से एक है सास-बहू मंदिर, जो ग्वालियर किले के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर अपनी अनूठी बनावट, जटिल नक्काशी और पौराणिक कहानियों के लिए मशहूर है। सास-बहू मंदिर का नाम सुनकर लोग अक्सर चौंक जाते हैं, क्योंकि यह नाम रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा लगता है। लेकिन इसके पीछे की कहानी और इसका ऐतिहासिक महत्व इसे खास बनाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना भी है। इस लेख में सास-बहू मंदिर के इतिहास, वास्तुकला, कहानियों और आकर्षण को विस्तार से जानते हैं, ताकि आपको ऐसा लगे जैसे आप इस मंदिर की सैर पर निकल पड़े हों।

मंदिर का ऐतिहासिक परिचय


सास-बहू मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से शुरू होता है। यह मंदिर ग्वालियर के कछवाहा राजवंश के शासक महिपाल ने बनवाया था। इतिहासकारों के अनुसार, इसका निर्माण 1093 ईस्वी के आसपास हुआ। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसका मूल नाम सहस्रबाहु मंदिर था, जो भगवान विष्णु के सहस्रबाहु यानी हजार भुजाओं वाले रूप को दर्शाता है। समय के साथ स्थानीय लोग इसे सास-बहू मंदिर के नाम से पुकारने लगे। इस नाम के पीछे कई कहानियां हैं। एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, यह मंदिर एक सास और बहू ने मिलकर बनवाया था, जो दोनों भगवान विष्णु की भक्त थीं। एक अन्य कहानी में कहा जाता है कि मंदिर का नाम इसकी संरचना के कारण पड़ा, क्योंकि यह दो मंदिरों का समूह है। एक बड़ा और एक छोटा, जो सास और बहू के रिश्ते की तरह एक-दूसरे के पूरक हैं।

मंदिर की स्थिति और परिदृश्य

सास-बहू मंदिर ग्वालियर किले के पूर्वी हिस्से में एक ऊंची पहाड़ी पर बना है। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहाँ से ग्वालियर शहर का मनोरम दृश्य भी दिखता है। मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। यह उस समय की स्थापत्य कला का प्रतीक है। मंदिर की बनावट नागर शैली में है, जो उत्तर भारत की मंदिर वास्तुकला की विशेषता है। इसकी दीवारों और छतों पर की गई नक्काशी इतनी बारीक और सुंदर है कि यह आज भी कारीगरों की कला का लोहा मनवाती है। मंदिर का बड़ा हिस्सा सास मंदिर कहलाता है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। जबकि छोटा मंदिर, जिसे बहू मंदिर कहते हैं, पास में ही बना है। इसे भी विष्णु के एक रूप को समर्पित माना जाता है।

मंदिर की संरचना और वास्तुकला


मंदिर की संरचना में एक खास बात यह है कि यह दो मंदिरों का एक समूह है। बड़ा मंदिर, यानी सास मंदिर, तीन मंजिला है। इसमें एक विशाल मंडप और गर्भगृह है। इसका प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। इसे चार स्तंभों पर टिका हुआ मंडप सजाता है। छोटा मंदिर, यानी बहू मंदिर, इससे छोटा है। इसकी बनावट सास मंदिर की तुलना में सरल है। दोनों मंदिरों की छतें और दीवारें जटिल नक्काशी से सजी हैं। इनमें फूल, पत्तियां, ज्यामितीय आकृतियां और पौराणिक चित्र शामिल हैं। मंदिर की छत पर बनी छतरियां इसे एक शाही लुक देती हैं। इन छतरियों में बारीक जालीदार काम देखने लायक है।

मंदिर की नक्काशी

सास-बहू मंदिर की नक्काशी इसकी सबसे बड़ी खासियत है। दीवारों पर उकेरे गए चित्रों में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार, जैसे नरसिंह, वराह और राम, दिखाई देते हैं। इसके अलावा, मंदिर में अप्सराओं, गंधर्वों और अन्य पौराणिक प्राणियों की मूर्तियां भी हैं। ये नक्काशियां इतनी बारीक हैं कि कपड़ों की सिलवटें, आभूषण और चेहरों के भाव साफ दिखाई देते हैं। मंदिर की छत पर बनी जालियां सूरज की रोशनी को अंदर आने देती हैं। इससे गर्भगृह में एक रहस्यमयी और आध्यात्मिक माहौल बनता है। मंदिर की दीवारों पर कुछ हिस्सों में प्राचीन लेख भी हैं। ये उस समय की लिपि और भाषा को दर्शाते हैं।

धार्मिक महत्व


सास-बहू मंदिर का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। यह मंदिर भगवान विष्णु के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है। हालांकि आज मंदिर में नियमित पूजा नहीं होती, लेकिन यह अभी भी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। स्थानीय लोग और पर्यटक यहाँ शांति और आध्यात्मिक अनुभव के लिए आते हैं। मंदिर का शांत माहौल और आसपास की हरियाली इसे एक आदर्श स्थान बनाती है। यहाँ आप इतिहास और अध्यात्म के बीच तालमेल महसूस कर सकते हैं। खास तौर पर सुबह और शाम के समय यहाँ का नजारा बेहद सुकून देने वाला होता है।

पर्यटकों के लिए आकर्षण

सास-बहू मंदिर ग्वालियर किले के पास होने के कारण पर्यटकों के लिए एक जरूरी पड़ाव है। ग्वालियर किला अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर है। सास-बहू मंदिर इसकी शोभा बढ़ाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको किले के रास्ते से गुजरना पड़ता है। यह अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है। किले की ऊंचाई से आप ग्वालियर शहर, आसपास की पहाड़ियां और टोमर वंश की अन्य इमारतों का दीदार कर सकते हैं। मंदिर के पास ही तेली का मंदिर भी है। यह अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है।

मंदिर से जुड़ी कहानियां

सास-बहू मंदिर के साथ कई रोचक कहानियां और किंवदंतियां जुड़ी हैं। एक कहानी के अनुसार, यह मंदिर एक सास और बहू की भक्ति का प्रतीक है। उन्होंने मिलकर भगवान विष्णु के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया। एक अन्य कहानी में कहा जाता है कि सास मंदिर बड़ा और भव्य है। यह सास की शक्ति और सम्मान को दर्शाता है। जबकि बहू मंदिर छोटा और सादा है। यह उसकी विनम्रता को दिखाता है। ये कहानियां मंदिर को एक सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व देती हैं। यह इसे और भी रोचक बनाती हैं। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मंदिर का नाम सहस्रबाहु से अपभ्रंश होकर सास-बहू हो गया। लेकिन यह नाम आज इसकी पहचान बन चुका है।

मंदिर का संरक्षण


मंदिर की बनावट में एक और खास बात यह है कि यह समय की मार को झेलने में सक्षम रहा है। हालांकि कुछ हिस्सों में नक्काशी और मूर्तियां क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, फिर भी मंदिर की मूल संरचना और सुंदरता बरकरार है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया है। इसके रखरखाव के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। मंदिर की दीवारों पर कुछ हिस्सों में मरम्मत का काम भी हुआ है, ताकि इसकी ऐतिहासिकता को बचाया जा सके।

यात्रा के लिए टिप्स

सास-बहू मंदिर की यात्रा ग्वालियर आने वाले पर्यटकों के लिए एक अनोखा अनुभव है। यहाँ पहुंचने के लिए कुछ टिप्स हैं जो आपकी यात्रा को और बेहतर बनाएंगे। ग्वालियर घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है, जब मौसम सुहावना रहता है। गर्मियों में यहाँ का तापमान काफी बढ़ जाता है, इसलिए हल्के कपड़े और पानी की बोतल साथ रखें। मंदिर तक पहुंचने के लिए आप ग्वालियर किले के मुख्य प्रवेश द्वार से पैदल या ऑटो रिक्शा ले सकते हैं। मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है, लेकिन किले के लिए टिकट लेना पड़ सकता है। फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यह मंदिर एक खजाना है, क्योंकि यहाँ की नक्काशी और आसपास का नजारा तस्वीरों में बेहद खूबसूरत लगता है।

आसपास के दर्शनीय स्थल

सास-बहू मंदिर के आसपास और भी कई दर्शनीय स्थल हैं जो आपकी यात्रा को और रोमांचक बनाते हैं। ग्वालियर किला, जो भारत के सबसे भव्य किलों में से एक है, यहाँ का मुख्य आकर्षण है। किले में मान मंदिर, जहांगीर महल और गुजरी महल जैसे शानदार हिस्से हैं। तानसेन का मकबरा, जो मशहूर संगीतकार तानसेन को समर्पित है, भी पास में ही है। इसके अलावा, जय विलास पैलेस, सूरज कुंड और सन टेंपल भी देखने लायक हैं। अगर आप खाने के शौकीन हैं, तो ग्वालियर के पटनकर बाजार में स्थानीय व्यंजन जैसे कचौरी, जलेबी और बेड़ई का स्वाद जरूर लें।

सांस्कृतिक महत्व


सास-बहू मंदिर का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। यह मंदिर उस समय की धार्मिक सहिष्णुता और कला के प्रति समर्पण को दर्शाता है। कछवाहा वंश के शासकों ने न केवल धार्मिक स्थलों का निर्माण किया, बल्कि कला और वास्तुकला को भी बढ़ावा दिया। मंदिर की नक्काशी में दिखने वाली बारीकियां उस समय के कारीगरों की महारत को दर्शाती हैं। यह मंदिर ग्वालियर की सांस्कृतिक पहचान का एक अहम हिस्सा है। इसे देखने आने वाले पर्यटक भारतीय इतिहास की गहराई को महसूस करते हैं।

कुछ रोचक तथ्य सास-बहू मंदिर को और खास बनाते हैं। मंदिर का नाम सहस्रबाहु से सास-बहू कैसे बना, यह अपने आप में एक रहस्य है। मंदिर की छत पर बनी जालियां सूरज की रोशनी को इस तरह छानती हैं कि गर्भगृह में एक खास रोशनी का जादू बनता है। मंदिर का निर्माण बिना किसी चिपकाने वाली सामग्री के हुआ, जो उस समय की इंजीनियरिंग का कमाल है। ग्वालियर किले के पास होने के कारण यह मंदिर सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था। मंदिर की नक्काशी में कुछ मूर्तियां आज भी रहस्यमयी हैं, जिनके अर्थ विद्वान आज तक समझने की कोशिश कर रहे हैं।

सास-बहू मंदिर ग्वालियर की यात्रा का एक अनमोल हिस्सा है। यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इतिहास, कला और संस्कृति का एक जीवंत दस्तावेज है। यहाँ की शांति, नक्काशी और कहानियां आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। अगर आप ग्वालियर जाएं, तो इस मंदिर को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें। यह मंदिर आपको न सिर्फ इतिहास से जोड़ेगा, बल्कि भारतीय कला की गहराई को समझने का मौका भी देगा। तो अगली बार जब आप मध्य प्रदेश की सैर पर निकलें, सास-बहू मंदिर की सैर जरूर करें और इसकी खूबसूरती को अपने दिल में बसा लें।

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