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History Of Tadoba Jungle: ताडोबा की धरती पर बाघों की गाथा और जंगल का जीवंत इतिहास

History Of Tadoba National Park: ताडोबा न केवल वन्य जीवन का केंद्र है बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार का भी स्रोत है। गाइड, जीप चालक, होटल-कर्मचारी, हस्तशिल्प विक्रेता आदि हजारों लोग ताडोबा पर्यटन पर निर्भर हैं।

Shivani Jawanjal
Published on: 12 July 2025 8:10 AM IST (Updated on: 12 July 2025 8:10 AM IST)
History Of Tadoba National Park
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History Of Tadoba National Park

History Of Tadoba National Park: भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ विविधता केवल संस्कृति, परंपराओं और भाषाओं तक सीमित नहीं बल्कि प्रकृति की गोद में छुपे अनमोल खजानों में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। ऐसी ही एक अद्वितीय और समृद्ध प्राकृतिक धरोहर है महाराष्ट्र का 'ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व'। यह जंगल न केवल भारत के प्रमुख बाघ अभयारण्यों में से एक है बल्कि अपनी गहन जैव विविधता, गूढ़ इतिहास, समृद्ध आदिवासी संस्कृति और संतुलित पारिस्थितिकी के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ताडोबा जंगल केवल एक पर्यटन स्थल नहीं बल्कि यह प्रकृति, संरक्षण और संस्कृति का जीवंत संगम है।

आइये जानते है इस अद्भुत जंगल के बारे में!

ताडोबा जंगल का नाम और उत्पत्ति


ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व(Tadoba Andhari Tiger Reserve) के नाम के पीछे एक गहरा ऐतिहासिक और भौगोलिक संदर्भ छुपा हुआ है। 'ताडोबा' नाम की उत्पत्ति एक स्थानीय आदिवासी देवता 'तारू' से हुई है, जो इस क्षेत्र के लोगों के आराध्य माने जाते हैं। ताड़ोबा नाम की जड़ें गहराई से इस क्षेत्र की आदिवासी आस्था और संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। यह नाम एक वीर गोंड आदिवासी मुखिया 'तारू' से प्रेरित है जिन्हें गोंड जनजाति आज भी देवता के रूप में पूजती है। किंवदंतियों के अनुसार तारू इसी जंगल में रहते थे और एक दिन एक बाघ से मुठभेड़ के दौरान उन्होंने वीरगति प्राप्त की। तारू की अद्वितीय वीरता और बलिदान को चिरस्थायी सम्मान देने के लिए गोंड समुदाय ने ताड़ोबा झील के तट पर एक मंदिर की स्थापना की, जो आज भी आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है। पीढ़ियों से यह स्थान केवल पूजा का केंद्र नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत बन चुका है। कालांतर में यही भूमि 'ताड़ोबा' के नाम से जानी जाने लगी, जो अब उस महान योद्धा की अमर गाथा का प्रतीक बन चुकी है। वहीं 'अंधारी' नाम जंगल के भीतर से बहने वाली अंधारी नदी से लिया गया है, जो इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी का एक अहम हिस्सा है। इन दोनों तत्वों आस्था और प्रकृतिको मिलाकर इस संरक्षित वन क्षेत्र को 'ताडोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व' नाम दिया गया है जो इसके सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व को दर्शाता है।

भौगोलिक स्थिति और विस्तार


ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व महाराष्ट्र(Maharashtra) के चंद्रपुर(Chandrapur) ज़िले में स्थित है और यह राज्य का सबसे पुराना तथा प्रमुख वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र माना जाता है। यह संरक्षित क्षेत्र 1955 स्थापित ताड़ोबा नेशनल पार्क तथा 1986 में स्थापि अंधारी वन्यजीव अभयारण्य इन दो मुख्य भागों से मिलकर बना है। बाद में इन दोनों हिस्सों को मिलाकर वर्ष 1995 में 'ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व' का गठन किया गया और इसे भारत सरकार की ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ योजना के अंतर्गत शामिल किया गया।

इस टाइगर रिज़र्व का कोर क्षेत्र (गाभा क्षेत्र) लगभग 625 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जबकि कोर और बफ़र क्षेत्र मिलाकर इसका कुल विस्तार लगभग 1727 वर्ग किलोमीटर है। यह क्षेत्र भू-आकृतिक रूप से बेहद विविध है यहाँ घने जंगल, ऊँची-नीची पहाड़ियाँ, शांत झीलें जैसे ताड़ोबा और कोलसा तथा अंधारी नदी की घाटियाँ प्राकृतिक संतुलन का अद्भुत उदाहरण पेश करता हैं। यह टाइगर रिज़र्व तीन मुख्य ज़ोन ताड़ोबा, अंधारी और कोलसा में विभाजित है जो न केवल इसके प्रशासनिक संचालन को सुव्यवस्थित करते हैं, बल्कि ईको-पर्यटन गतिविधियों के संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये तीनों क्षेत्र मिलकर जंगल की जैव विविधता, संरक्षण नीति और पर्यटक अनुभव के बीच एक संतुलित और संगठित तंत्र का निर्माण करते हैं। यह विशाल और विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र न केवल बाघों का एक सुरक्षित आवास है, बल्कि अनेक दुर्लभ वन्य प्रजातियों, वनस्पतियों और पक्षियों का भी महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है। ताडोबा में प्रकृति प्रेमियों को बाघों तथा अन्य वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का रोमांचकारी अवसर मिलता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


ताड़ोबा क्षेत्र का इतिहास न केवल प्राकृतिक संपदा से जुड़ा है बल्कि यह गोंड जनजाति की सांस्कृतिक विरासत का भी अभिन्न हिस्सा रहा है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से गोंड जनजातियों का निवास स्थान रहा है जो खुद को 'कोईतोर' कहते थे का जंगल से गहरा आत्मिक संबंध था। वे जंगल को ‘माँ’ की तरह मानते थे और उसकी रक्षा को अपना धर्म समझते थे। लेकिन ब्रिटिश शासनकाल में यह पवित्र वन क्षेत्र शिकारगाह में तब्दील हो गया। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बाघ शिकार को खेल का दर्जा दिया गया था। अंग्रेज अधिकारी और स्थानीय राजघराने के सदस्य यहाँ बाघ, तेंदुआ जैसे दुर्लभ वन्यजीवों का शिकार करते थे जिससे इस क्षेत्र की जैव विविधता को भारी नुकसान पहुँचा। 1942 में इस क्षेत्र को आंशिक रूप से संरक्षित घोषित किया गया था हालाँकि 1955 में ताड़ोबा को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ। यह बदलाव वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

संरक्षण की शुरुआ- ताड़ोबा को नया जीव

ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व का विकास कई चरणों में हुआ जो इसे एक समृद्ध और संरक्षित वन्यजीव क्षेत्र बनाते हैं। वर्ष 1955 में ताड़ोबा को महाराष्ट्र (तब मध्य प्रांत) का पहला राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया, जो वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल थी। इसके बाद भारत सरकार ने 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की शुरुआत की जिसका उद्देश्य बाघों की घटती संख्या को रोकना और उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा करना था। वर्ष 1986 में अंधारी वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना हुई और बाद में इसे ताड़ोबा राष्ट्रीय उद्यान के साथ जोड़ा गया। अंततः इन दोनों क्षेत्रों को 1995 में एकीकृत कर ताड़ोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व का गठन किया गया और इसे आधिकारिक रूप से प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत लाया गया। यह संरचना आज भारत के सबसे सफल और जैव विविधता से भरपूर टाइगर रिज़र्व में गिनी जाती है।

वन्य जीवन का स्वर्ग


प्रमुख वन्यजीव - ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व बाघ प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहाँ बंगाल टाइगरों की अच्छी खासी संख्या पाई जाती है, जिनमें कुछ विशेष रूप से प्रसिद्ध बाघों की पहचान भी बनी है जैसे माया (Tigress Maya), छोटी तारा (Choti Tara) और मतकासुर (Matkasur)। इन बाघों की गतिविधियाँ अक्सर कैमरों में कैद होती हैं और जंगल सफारी का मुख्य आकर्षण बनती हैं।

अन्य स्तनधारी - ताड़ोबा की जैव विविधता केवल बाघों तक सीमित नहीं है। यहाँ तेंदुआ, नीलगाय, चीतल, सांभर, गौर (भारतीय बाइसन), स्लोथ बीयर (भालू), जंगली कुत्ता (ढोल्स), लकड़बग्घा, मगरमच्छ, लोमड़ी, सियार और जंगली सूअर जैसे अनेक स्तनधारी जीव भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जो इस पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखते हैं।

पक्षी प्रजातियाँ - यह रिज़र्व पक्षी प्रेमियों के लिए भी किसी खजाने से कम नहीं है। ताड़ोबा में अब तक 250 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ दर्ज की जा चुकी हैं। इनमें प्रमुख हैं इंडियन पीफाउल (मोर), चील, उल्लू, जंगल बैबलर, ड्रोंगो और हॉर्नबिल जैसी सुंदर और आकर्षक प्रजातियाँ। इन पक्षियों की आवाज़ें और उड़ानें जंगल की नीरवता में एक मधुर संगीत की तरह अनुभव होती हैं।

सरीसृप - ताड़ोबा का पर्यावरण सरीसृपों के लिए भी अनुकूल है। यहाँ साँप, अजगर, मगरमच्छ और विभिन्न प्रकार की छिपकलियाँ देखी जा सकती हैं, जो जंगल की पारिस्थितिक श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वन प्रकार और वनस्पतियाँ


ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व मुख्यतः शुष्क पर्णपाती वनों से आच्छादित है जिसे वैज्ञानिक रूप से दक्षिणी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन कहा जाता है। इस प्रकार के वन गर्म और शुष्क जलवायु में पाए जाते हैं जहाँ वर्ष के कुछ महीनों में वृक्ष अपने पत्ते गिरा देते हैं। यहाँ की वनस्पति विविध और घनी है, जिसमें साल, सागौन (तेक), महुआ, आंवला, बहेड़ा, बरगद, पीपल और आम जैसे वृक्ष प्रमुखता से पाए जाते हैं। इसके अलावा बांस, तेंदू, धौड़ा, हल्दू, अर्जुन और जामुन जैसी अन्य प्रजातियाँ भी इस क्षेत्र की जैव विविधता में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

विशेष रूप से महुआ का इस क्षेत्र की आदिवासी संस्कृति में गहरा महत्व है। इसके फूल और बीज न केवल भोजन और तेल के स्रोत हैं बल्कि इससे परंपरागत शराब भी बनाई जाती है, जो गोंड समुदाय के सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा है। यह दर्शाता है कि ताड़ोबा का जंगल केवल वन्यजीवों का ही नहीं बल्कि एक पूरे सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का भी पोषक है।

जंगल की जीवनरेखा


ताड़ोबा जंगल के भीतर बहने वाली अंधारी नदी इस वन क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण जलधारा है जो इसे हरियाली और जीवन प्रदान करती है। यह नदी घने जंगलों के बीच से बहती हुई अनेक झीलों और जलाशयों से होकर गुजरती है और पूरे वन्यजीव तंत्र को जल आपूर्ति करती है। अंधारी नदी के किनारे वन्य प्राणी जैसे बाघ, तेंदुआ, सांभर, गौर और भालू अक्सर देखे जाते हैं। इसके आसपास की नम भूमि जैव विविधता के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती है। यही नदी अंधारी वन्यजीव अभयारण्य के नाम का मूल स्रोत भी है। मानसून के समय यह नदी पूरे जंगल को जीवन से भर देती है और सूखे समय में भी यह वन क्षेत्र को जल संकट से बचाती है। अंधारी नदी, ताड़ोबा की जैविक प्रणाली की एक मौन लेकिन अत्यंत प्रभावशाली धुरी है।

पर्यटन और सफारी


21वीं सदी में ताड़ोबा एक प्रमुख ईको-टूरिज़्म हॉटस्पॉट बन चुका है। हर साल हजारों पर्यटक यहाँ बाघों की झलक पाने आते हैं। ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व आज भारत के सबसे लोकप्रिय टाइगर सफारी स्थलों में गिना जाता है। यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए जीप (जिप्सी) सफारी और कैंटर सफारी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं जिनके माध्यम से वे बाघों सहित अनेक वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक परिवेश में नज़दीक से देख सकते हैं। जंगल की रोमांचक यात्रा के लिए कई प्रमुख पर्यटन प्रवेश द्वार (गेट्स) बनाए गए हैं जिनमें मोहर्ली, कोलारा, नवेगांव, पंगड़ी और जुनी मोरघाट गेट प्रमुख हैं। पर्यटन का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से जून के बीच माना जाता है क्योंकि मानसून के महीनों (जुलाई से सितंबर) के दौरान यह रिज़र्व आमतौर पर बंद रहता है। सफारी का यह अनुभव न केवल रोमांचकारी होता है बल्कि वन्यजीव संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है।

ताड़ोबा के प्रसिद्ध बाघ और उनकी लोकप्रियता


ताड़ोबा अंधारी टाइगर रिज़र्व न केवल बाघों की संख्या के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यहाँ के कुछ बाघ और बाघिनें अपनी विशिष्ट पहचान और कहानियों के कारण विश्वभर में लोकप्रिय हो चुके हैं। माया (Maya), मटकासुर (Matkasur), सोनम (Sonam) और चोटी तारा (Choti Tara) जैसे नाम अब केवल जंगल तक सीमित नहीं रहे बल्कि ये वन्यजीव प्रेमियों, फोटोग्राफरों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर चर्चित चेहरों में शामिल हो गए हैं।

बाघिन माया को ताड़ोबा की 'रानी' कहा जाता है, उसकी बहादुरी, मातृत्व और क्षेत्रीय वर्चस्व की कहानियाँ कई डॉक्यूमेंट्री और वीडियो में दिखाई जा चुकी हैं। वहीं मटकासुर और चोटी तारा जैसे बाघ भी अपने इलाकों में राज करते हैं और उनके व्यवहार, शिकार शैली तथा संघर्षों की कहानियाँ जंगल सफारी का हिस्सा बन चुकी हैं। इन बाघों की झलक पाने के लिए देश-विदेश से पर्यटक ताड़ोबा पहुँचते हैं जिससे यह रिज़र्व न केवल एक प्राकृतिक आवास बल्कि एक जीवंत कथा भूमि बन चुका है।

ताड़ोबा कैसे पहुँचें?


सड़क मार्ग - ताड़ोबा तक पहुँचने का सबसे सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका सड़क मार्ग है। नागपुर(Nagpur) से इसकी दूरी लगभग 140 किलोमीटर है, जिसे 3.5 से 4 घंटे में तय किया जा सकता है। चंद्रपुर से यह केवल 30 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग - रेल यात्रा करने वालों के लिए चंद्रपुर (30 - 35 किमी), बल्हारशाह जंक्शन (45 किमी) और नागपुर (140 किमी) जैसे रेलवे स्टेशन मौजूद हैं। इन स्टेशनों से ताड़ोबा पहुँचने के लिए टैक्सी या लोकल बसें आसानी से उपलब्ध हैं।

हवाई मार्ग - निकटतम हवाई अड्डा नागपुर स्थित डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो ताड़ोबा से लगभग 140 किलोमीटर दूर है।

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