×

Saawan Kyu Manate Hai: हरियाली, झूले और शिवरात्रि, सावन ऋतु नहीं, रिश्तों और भक्ति का उत्सव

Saawan Kyu Manate Hai: सावन का महीना न सिर्फ़ प्रकृति को हरा-भरा करता है, बल्कि भारतीय लोक परंपरा, संस्कृति, आस्था और रिश्तों को भी संजीवनी देता है।

Jyotsna Singh
Published on: 12 July 2025 6:00 AM IST (Updated on: 12 July 2025 6:00 AM IST)
Saawan Ka Somwar Ka Itihas
X

Saawan Ka Somwar Ka Itihas

Saawan Kyu Manate Hai: सावन महज़ एक मौसम नहीं, यह भारतीय जीवनशैली की आत्मा है। यह वह समय है जब आसमान से बरसती बूंदें सिर्फ़ धरती को नहीं भिगोतीं, बल्कि दिलों को भी सराबोर कर जाती हैं। कोयल की कूक के साथ मिट्टी की सौंधी खुशबू, नीम और आम के पेड़ों पर पड़े झूले, उन पर झूलती किशोरियां और खिलखिलाकर झूमते बच्चे, ढोलक की थाप पर मन को मोह लेने वाले सावन के लोकगीत ये सब मिलकर एक ऐसा भाव रचते हैं, जो मन - तन और आत्मा को भीतर तक आनंदित कर जाते हैं। इस पर सावन के खास पकवान घेवर, अनरसे और सिवइयों की मीठी खुशबू माहौल में रस घोलने का काम करते हैं।

सावन का महीना न सिर्फ़ प्रकृति को हरा-भरा करता है, बल्कि भारतीय लोक परंपरा, संस्कृति, आस्था और रिश्तों को भी संजीवनी देता है। इसी महीने में रक्षाबंधन, नागपंचमी, गुड़िया और जन्माष्टमी जैसे त्यौहार आते हैं जो परिवार और समाज को जोड़ते हैं। वहीं शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और दूर-दराज से गंगाजल लाकर शिव को चढ़ाते हैं।

सावन का पारंपरिक अर्थ और महत्व


सावन या श्रावण हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना होता है, जो आमतौर पर जुलाई-अगस्त के बीच आता है। यह समय वर्षा ऋतु का चरम होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तो उसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया। इस विष की तपिश को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें गंगाजल अर्पित किया। तभी से श्रावण के महीने में शिव की विशेष पूजा और अभिषेक की परंपरा प्रारंभ हुई।

शिवभक्ति का चरम उदाहरण है कांवड़ यात्रा

सावन में शिवभक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। उत्तर भारत में विशेषकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और बिहार में कांवड़ यात्रा एक व्यापक धार्मिक आंदोलन का रूप ले चुकी है। जिसमें असंख्य कांवड़िए गंगा घाटों से पवित्र जल भरकर पैदल यात्रा करते हुए अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों तक पहुंचते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक कर अपनी कठोर यात्रा को विराम देते हैं। यह यात्रा न सिर्फ़ आस्था का परिचायक है बल्कि आत्मसंयम, समर्पण और श्रद्धा की मिसाल भी है।

सावन से जुड़ी धार्मिक रस्में और शिव पूजन की विशेषताएं


सावन में शिव की पूजा के लिए विशेष सामग्री का उपयोग होता है। इसमें बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल प्रमुख हैं। हर सोमवार को व्रत रखकर शिवलिंग का अभिषेक कर भक्त अपनी अगाध श्रद्धा दर्शाते हैं। मंदिरों में घंटियों की गूंज के साथ ॐ नमः शिवाय और के उच्चारण से वातावरण आध्यात्मिक हो उठता है। खासतौर महिलाएं इस व्रत को रख कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

सावन खासकर नवविवाहित महिलाओं और किशोरियों के लिए बेहद खास होता है। यह वह समय होता है जब नई नवेली दुल्हनें अपने पीहर जाती हैं। वहां सावन के झूले, मेंहदी रचाना, लोकगीत गाना, सखियों के संग हंसी-ठिठोली करना, ये सभी परंपराएं स्त्री जीवन में एक नया रंग भर देती हैं। हरी चूड़ियां, हरे वस्त्र और हरी मेंहदी सावन की प्रतीक बन जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि सावन में हरा रंग समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होता है।

लोकगीतों की सुंदरता है सावन

बरसों रे बदरिया सावन की..., रेलियां बैरन पिया को लिए जाए रे...जैसे पारंपरिक लोकगीत ढोलक की थाप संग इन गीतों की बयार सावन के आते ही बहने लगती है। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में कजरी, झूला, चैती और सावनी गीतों की विशेष परंपरा रही है। वहीं राजा महाराजाओं के ज़माने से दरबारी गायिकाएं शास्त्रीय संगीत में सावन से सजी खूबसूरत बन्दिशे और ठुमरी पेश कर सबको मुरीद बना देती थीं। सावन के गीत जीवन के विभिन्न रंगों विरह, प्रेम, भक्ति और उमंग को अभिव्यक्त करते हैं। जिसमें कजरी विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। इसमें नायिका अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में सावन की बरसात का वर्णन करती है वहीं चैत्र महीने में गाई जाने वाली चैती, सावन में भी इसका प्रभाव रहता है। इनमें राधा-कृष्ण की लीलाएं, शिव-पार्वती के प्रसंग और ग्रामीण जीवन की झलक मिलती है। जबकि सावनी गीत मस्ती और नयापन लिए होते हैं। इनमें झूले पर झूलती कन्याओं की खुशी, सखियों का मिलन, मेंहदी के रंग और रिमझिम बारिश का सुंदर चित्रण मिलता है।

सावन और सामाजिक मेलजोल

सावन का मौसम सामाजिक मेल-मिलाप का भी अवसर होता है। आज भी जिसकी झलक गांवों और कस्बों में आयोजित होने वाले लोकसंस्कृति से सजे मेलों में देखने को मिलती है। जहां शिव मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई जाती हैं, कीर्तन होते हैं और सामूहिक भोज की परंपरा भी निभाई जाती है।

सावन और त्यौहारों की बहार


सावन में सिर्फ प्रकृति ही नहीं बल्कि रिश्ते भी विशेष उमंग और त्योहारों की रौनकों से खिल उठते हैं। जिसमें सबसे खूबसूरत त्यौहार है रक्षाबंधन। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर न सिर्फ उनके लंबी उम्र और सुख की कामना करती हैं बल्कि रिश्तों में मानवीय संवेदनाओं की वाहक भी बनती हैं। वहीं सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन सर्पों की पूजा का होता है। लोकमान्यता है कि इस दिन नागों को दूध चढ़ाने से भय दूर होता है। घर के बेटियों से जुड़ा गुड़िया पर्व भी उनके जीवन में ढेर सारी खुशियां बटोर कर लाता है। यह विशेष रूप से उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। जिसमें बेटियों को उपहार देकर आशीर्वाद लिया जाता है। सावन की बात हो जन्माष्टमी की बात न हो ये कैसे संभव हो सकता है। सावन का समापन जन्माष्टमी जैसे बड़े पर्व के साथ ही होता है।

वृंदावन और मथुरा के साथ इस पर्व पर सम्पूर्ण देश भक्तिमय हो उठता है। यह भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व है, जिसमें विधिवत पूजा अर्चना के साथ ही रातभर भजन-कीर्तन, झांकियां और पालना झुलाने की परंपरा निभाई जाती है।

सावन प्रकृति और परंपरा का सामंजस्य

सावन में चारों ओर हरियाली छा जाती है। खेत लहलहा उठते हैं, नदियां कलकल करती हैं और पेड़-पौधे नये जीवन से भर जाते हैं। यह समय प्रकृति की देवी धरती के श्रृंगार का होता है। भारतीय संस्कृति ने इस मौसम को सिर्फ़ प्राकृतिक बदलाव तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे त्योहारों, परंपराओं और लोकगीतों के माध्यम से जीवन में उतार लिया। यहां तक कि काव्य साहित्य में सावन की बड़ी भूमिका रही है।

इस महीने में महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं, श्रृंगार करती हैं और हरी चूड़ियों, बिंदी, मेंहदी और आलता से सजती हैं। उनके श्रृंगार में सौंदर्य और सौभाग्य दोनों की भावना समाहित होती है। सावन की तीज हो या झूला उत्सव, ये सारे आयोजन नारी जीवन की भावनाओं को जीवंत करते हैं। सावन सिर्फ़ एक मौसम नहीं, यह जीवन का उत्सव है। यह वह समय है जब प्रकृति, परंपरा, प्रेम और श्रद्धा चारों मिलकर एक ऐसी समरसता रचते हैं, जो जीवन को संपूर्ण बना देती है। मिट्टी की महक, बारिश की बूंदें, शिव की भक्ति, झूले की मस्ती, और रिश्तों की मिठास इन सबका अद्भुत समन्वय ही सावन को विशेष बनाता है।

हर बार सावन जब आता है, तो न सिर्फ़ धरती को हरियाली देता है, बल्कि दिलों को भी ताजगी से भर देता है। यही इसकी असली सुंदरता और सार्थकता है।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Admin 2

Admin 2

Next Story