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Barren Island location: भारत का अकेला सक्रिय ज्वालामुखी - जानिए बैरन द्वीप की कहानी
India’s only active volcano:बैरन द्वीप ज्वालामुखी भारत का अद्वितीय भूगर्भीय चमत्कार है।
Pic Credit - Social Media
Barren Island Andaman: प्रकृति के अद्भुत रहस्यों में से एक है ज्वालामुखी। यह धरती के गर्भ से निकलने वाली आग और लावा का ऐसा दृश्य होता है जो रोमांच के साथ-साथ भय भी उत्पन्न करता है। भारत में अंडमान निकोबार द्वीप समूह स्थित बैरन द्वीप देश का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। हाल ही में यह ज्वालामुखी पुनः सक्रिय हुआ है, जिससे वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और आम जनता का ध्यान एक बार फिर इसकी ओर आकर्षित हुआ है। इस लेख में हम जानेंगे कि ज्वालामुखी क्या है, बैरन द्वीप कहाँ स्थित है, इसका इतिहास क्या है और यह वैज्ञानिक दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है।
ज्वालामुखी क्या है?
ज्वालामुखी वह जगह होती है जहाँ से पृथ्वी के अंदर का गरम लावा, गैसें और राख बाहर निकलते हैं। धरती के भीतर पिघले हुए खनिज और लावा होते हैं। जब अंदर बहुत ज्यादा दबाव बन जाता है तो यह लावा दरारों या छेद से बाहर आ जाता है। बाहर आने के बाद लावा ठंडा होकर कठोर चट्टानों में बदल जाता है।
ज्वालामुखी के प्रकार
ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं - सक्रिय, सुप्त और निष्क्रिय।
सक्रिय ज्वालामुखी वे हैं जो हाल में फटे हों या जिनमें अभी भी विस्फोट हो रहे हों।
सुप्त ज्वालामुखी लंबे समय तक शांत रहते हैं लेकिन कभी भी फट सकते हैं।
वहीं निष्क्रिय ज्वालामुखी हमेशा के लिए शांत हो जाते हैं और उनमें दोबारा विस्फोट की संभावना बहुत कम होती है।
भारत में अंडमान और निकोबार का बैरन द्वीप देश का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है और यह एशिया में भी गिना जाता है।
बैरन द्वीप कहाँ है?
बैरन द्वीप अंडमान सागर में स्थित है और यह अंडमान-निकोबार(Andaman and Nicobar)द्वीपसमूह का हिस्सा है। यह पोर्ट ब्लेयर से लगभग 135 से 140 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में है। इसका व्यास करीब 3 किलोमीटर है और यह समुद्र तल से 354 मीटर ऊँचा है। यह पूरी तरह निर्जन द्वीप है क्योंकि यहाँ लगातार ज्वालामुखीय गतिविधि होती रहती है। सुरक्षा कारणों से यहाँ आम लोगों को जाने की अनुमति नहीं होती । केवल वैज्ञानिक या विशेष अनुमति वाले पर्यटक ही यहाँ जा सकते हैं।
बैरन द्वीप का इतिहास
बैरन द्वीप का पहला दर्ज विस्फोट 1787 में हुआ था। इसके बाद 19वीं और 20वीं सदी में कई बार छोटे और मध्यम स्तर के विस्फोट देखे गए, जिनमें 1789, 1795, 1803-04, 1852, 1991 और 1994-95 खास हैं। इनमें से 1991 का विस्फोट सबसे बड़ा था और इसने द्वीप की जैव विविधता को बहुत नुकसान पहुँचाया। 2005–06 में यहाँ फिर से भारी मात्रा में लावा और राख निकली, जो 2004 की सुनामी के कारण हुई भूकंपीय हलचलों से जुड़ी मानी जाती है। हाल के सालों में भी यहाँ गतिविधि जारी रही है 2017, 2022 और 2023 में विस्फोट दर्ज किए गए। अब 2025 में भी बैरन द्वीप सक्रिय हो गया है और सितंबर महीने में दो बार छोटी ज्वालामुखीय गतिविधियाँ देखी गई हैं।
बैरन द्वीप की विशेषताएँ
भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी - बैरन द्वीप भारत के अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है और यह देश का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया में यही अकेला सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है।
भौगोलिक स्थिति - यह द्वीप इंडो-ऑस्ट्रेलियन (भारतीय) और बर्मी (यूरेशियन) टेक्टोनिक प्लेट्स की सीमा पर स्थित है। इसी वजह से यहाँ लगातार ज्वालामुखीय गतिविधियाँ होती रहती हैं।
जीव-जंतु और वनस्पति - यह द्वीप निर्जन है और यहाँ कोई स्थायी मानव बस्ती नहीं है। यहाँ का वातावरण कठोर है। केवल कुछ झाड़ियाँ, घास, पक्षी, बकरियाँ, चूहे और समुद्री जीव पाए जाते हैं।
वैज्ञानिक महत्व - वैज्ञानिक इस द्वीप का अध्ययन करके लावा, गैस और राख से जुड़ी जानकारी जुटाते हैं। इससे उन्हें पृथ्वी की आंतरिक गतिविधियों, प्लेटों की हलचल और भविष्य में आने वाले भूकंप को समझने में मदद मिलती है। यही कारण है कि बैरन द्वीप वैश्विक ज्वालामुखी अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
हालिया सक्रियता
सितंबर 2025 में बैरन द्वीप ज्वालामुखी से दो बार हल्के स्तर पर धुआँ और लावा निकलते हुए देखा गया है। इस पर लगातार नज़र रखने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT), जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) और भारतीय नौसेना मिलकर काम कर रहे हैं। निगरानी के लिए सैटेलाइट तस्वीरें, ड्रोन और समुद्री जहाज़ों से डेटा लिया जा रहा है। अभी तक के विस्फोट छोटे स्तर के हैं जिनसे लावा का बहाव और धुएँ के गुबार देखे गए हैं। लेकिन यह जहाज़ों या आसपास के इलाकों के लिए बड़ा खतरा नहीं है। फिर भी वैज्ञानिक और अधिकारी स्थानीय समुद्री यातायात को सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं।
ज्वालामुखी और पर्यावरण पर प्रभाव
बैरन द्वीप के विस्फोट का सीधा प्रभाव भारत की मुख्य भूमि पर नहीं पड़ता, क्योंकि यह समुद्र के बीचों-बीच है। फिर भी इसके कई प्रभाव हैं:
वायुमंडल और पर्यावरण पर प्रभाव - बैरन द्वीप से निकलने वाली राख और गैसें वायुमंडल और स्थानीय मौसम को थोड़ी प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन हाल के छोटे विस्फोटों का बड़ा असर नहीं देखा गया है। आसपास के द्वीपों और समुद्री इलाके में थोड़ी राख गिर सकती है।
समुद्री जीवन पर प्रभाव - लावा जब समुद्र में गिरता है तो पानी का तापमान बढ़ता है, जिससे मछलियाँ और कोरल प्रभावित हो सकते हैं। फिलहाल कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है।
भूकंपीय गतिविधियाँ - बैरन द्वीप टेक्टोनिक प्लेटों की सीमा पर है इसलिए इसकी गतिविधि भूकंप की संभावना भी दिखाती है। सितंबर 2025 में बैरन द्वीप के विस्फोटों के साथ ही 4.2 तीव्रता का भूकंप भी दर्ज हुआ था।
बैरन द्वीप और पर्यटन
बैरन द्वीप पर पर्यटक सीधे नहीं जा सकते क्योंकि यह पूरी तरह ज्वालामुखीय गतिविधि वाला खतरनाक और संरक्षित क्षेत्र है। अंडमान आने वाले लोग पोर्ट ब्लेयर या हैवलॉक द्वीप से विशेष नाव या क्रूज़ के जरिए दूरी से इस ज्वालामुखी को देख सकते हैं। यह अनुभव रोमांचक होता है और प्राकृतिक शक्ति को महसूस कराता है। द्वीप पर केवल रिसर्च और वैज्ञानिक दल ही जाकर अध्ययन कर सकते हैं, बाकी लोग सिर्फ नाव या क्रूज़ से दूर से ही गतिविधियाँ देख पाते हैं।
वैज्ञानिकों के लिए प्रयोगशाला
बैरन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है और यह वैज्ञानिकों को पृथ्वी के अंदर की गतिविधियों को समझने का मौका देता है। यहाँ से निकलने वाली गैस, राख और लावा अध्ययन करके पृथ्वी की आंतरिक संरचना, मैग्मा और टेक्टोनिक प्लेट्स की गति के बारे में जानकारी मिलती है। यह द्वीप इंडो-ऑस्ट्रेलियन और बर्मी प्लेट्स के टकराव स्थल पर है इसलिए वैज्ञानिकों के लिए यह रिसर्च का महत्वपूर्ण स्थान है। उपग्रह, ड्रोन और समुद्री जहाजों से जुटाई गई जानकारी और ज्वालामुखीय गैसों का विश्लेषण भूगर्भीय और समुद्री भूगोल को समझने में मदद करता है। वैज्ञानिक यहाँ के विस्फोटों से पृथ्वी की जीवंतता और ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं को समझते हैं, जो भविष्य के भूकंप और भूगोलिक बदलाव की भविष्यवाणी में सहायक होता है।
भारत के लिए महत्व
बैरन द्वीप भारत में भूगर्भीय विविधता और प्राकृतिक शक्ति का प्रतीक है। यह देश का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है और पूरे दक्षिण एशिया में भी अनोखा है। इसके कारण भारत को भूगर्भीय और वैज्ञानिक अनुसंधान में वैश्विक पहचान मिलती है। वैज्ञानिक यहाँ ज्वालामुखीय गतिविधि, समुद्री भूगोल, टेक्टोनिक प्लेट्स और भूकंपीय हलचल का अध्ययन करते हैं। यह भारत के भूगर्भीय संसाधनों और पर्यावरण के शोध में भी मदद करता है और देश की जैविक और भौतिक विज्ञान में प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।
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