ISKCON Temple History: जानिए गैराज से वैश्विक मंदिर तक का अद्भुत सफर

ISKCON Temple History: जानिए कैसे स्वामी प्रभुपाद ने एक गैराज से शुरू किया ISKCON और बदल दी पूरी दुनिया की सोच ।

Shivani Jawanjal
Published on: 9 Sept 2025 4:00 PM IST
ISKCON Temple History Mystery and Intresting Facts
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ISKCON Temple History Mystery and Intresting Facts

ISKCON Temple Ka Itihas: यह सच है कि आध्यात्मिकता और भक्ति की कहानियाँ हमेशा लोगों के दिलों को छूती हैं। लेकिन कुछ कहानियाँ इतनी प्रभावशाली होती हैं कि वे सिर्फ एक व्यक्ति या स्थान तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि पूरे विश्व में एक आंदोलन बन जाती हैं। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) की, जिसे 'हरे कृष्ण आंदोलन' के नाम से भी जाना जाता है। यह आंदोलन एक साधारण गैराज से शुरू हुआ था और आज यह दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में फैल चुका है। ऐसे में आइए जानें इसका पूरा इतिहास, इसकी स्थापना, संस्थापक की जीवन यात्रा और इसके वैश्विक प्रभाव।

ISKCON की स्थापना का प्रेरणास्रोत


ISKCON यानी इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस का इतिहास जुड़ा है स्वामी अभय चरण देव जिन्हें हम भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद के नाम से जानते हैं। उन्होंने 1966 में न्यूयॉर्क शहर में ISKCON यानी इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस की शुरुआत की । प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 को कोलकाता में हुआ था और उनका असली नाम अभय चरण देव था। बचपन से ही वे भगवान श्रीकृष्ण के गहरे भक्त थे। वे गौड़ीय वैष्णव परंपरा के महान आचार्य श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के शिष्य थे। उनके गुरु ने उन्हें यह जिम्मेदारी दी थी कि वे अंग्रेजी भाषा में भगवद गीता और वैष्णव धर्म का संदेश पूरी दुनिया तक पहुँचाएँ। प्रभुपाद ने इस आदेश को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। कई कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद उन्होंने 'बैक टू गॉडहेड' नाम की पत्रिका प्रकाशित की और भगवद गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया ताकि दुनिया भर के लोग कृष्ण भक्ति का महत्व समझ सकें।

अमेरिका की यात्रा और आंदोलन की शुरुआत

1965 में जब भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद 69 साल के थे, उन्होंने भारत से अमेरिका जाने का बड़ा फैसला लिया। वे मालवाहक जहाज जलदूत से अमेरिका पहुँचे, लेकिन यह यात्रा आसान नहीं थी। सफर के दौरान उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा, फिर भी उनका विश्वास और हिम्मत डगमगाए नहीं। जब वे न्यूयॉर्क पहुंचे, उनके पास न पैसा था और न कोई जान-पहचान वाला। कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और न्यूयॉर्क के टॉमकिंस स्क्वायर पार्क और लोअर ईस्ट साइड में बैठकर लोगों को भगवद गीता, श्रीमद्भागवतम और वैदिक ज्ञान के जरिए कृष्ण भक्ति के बारे में बताना शुरू किया। धीरे-धीरे कई युवा उनके विचारों से प्रभावित हुए और उनके शिष्य बनने लगे। यही से कृष्ण चेतना का संदेश फैलने लगा और ISKCON की नींव मजबूत हुई।

पहले मंदिर की स्थापना


1966 में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने न्यूयॉर्क के 26 सेकंड एवेन्यू पर एक छोटे से गैराज जैसे स्थान में पहला ISKCON मंदिर शुरू किया। यहीं से ISKCON आंदोलन की औपचारिक शुरुआत हुई। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था भगवान श्रीकृष्ण के नाम का कीर्तन करना, भगवद गीता और श्रीमद्भागवतम का प्रचार करना, गौ-रक्षा और गोपालन को बढ़ावा देना और वैदिक संस्कृति का पालन करना। यह सरल लेकिन गहरा संदेश लोगों के दिलों को छू गया और खासकर पश्चिमी देशों के युवा इसकी ओर आकर्षित होने लगे। यही छोटा सा स्टोरफ्रंट आगे चलकर एक बड़े वैश्विक आंदोलन का केंद्र बन गया, जिसने दुनिया भर में कृष्ण चेतना का प्रचार किया।

हरे कृष्ण आंदोलन की वैश्विक लोकप्रियता


1960 और 1970 के दशक में ISKCON का हरे कृष्ण महामंत्र पश्चिमी देशों के युवाओं के लिए नई उम्मीद बन गया। “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का जाप उन्हें जीवन में प्रेम, सादगी और आध्यात्मिकता का एहसास कराता था। ISKCON की सबसे बड़ी पहचान इसका हरिनाम संकीर्तन है जिसमें भक्त ढोल, मृदंग और करताल के साथ सड़कों पर नृत्य-कीर्तन करते हैं और यह मंत्र सामूहिक रूप से गाते हैं। यह दृश्य लोगों को आकर्षित करता और उनके मन को शांति देता। प्रभुपाद स्वयं अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए दुनिया भर में यात्रा करते रहे। केवल 12 साल में उन्होंने लगभग 14 बार पूरी दुनिया का भ्रमण किया और अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, रूस और एशिया के कई देशों में ISKCON के मंदिर स्थापित किए।

प्रमुख योगदान और साहित्य

स्वामी प्रभुपाद ने वैदिक साहित्य को अंग्रेजी में अनुवाद करके पूरी दुनिया तक पहुँचाया। उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथों में भगवद गीता यथारूप (Bhagavad Gita As It Is) शामिल है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का सबसे प्रामाणिक और सटीक अंग्रेजी अनुवाद माना जाता है। इसके अलावा उन्होंने श्रीमद्भागवतम के 18 खंड और चैतन्य चरितामृत जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का भी अनुवाद और व्याख्या की। प्रभुपाद के ये सभी ग्रंथ कई भाषाओं में अनूदित हो चुके हैं और आज भी ISKCON के भक्तों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का प्रमुख साधन हैं। खासतौर पर भगवद गीता यथारूप को इसलिए खास माना जाता है क्योंकि यह श्रीकृष्ण के शब्दों और उनके संदेश को सबसे प्रामाणिक रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है।

मंदिर और प्रमुख गतिविधियाँ

आज ISKCON पूरी दुनिया में एक बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है। इसके 100 से ज्यादा देशों में लगभग 800 मंदिर, आश्रम और सांस्कृतिक केंद्र हैं। लंदन, न्यूयॉर्क, मॉस्को, मेलबर्न, जोहान्सबर्ग, टोक्यो और पेरिस जैसे बड़े शहरों में भव्य ISKCON मंदिर बने हुए हैं, जहाँ रोज़ाना कीर्तन, प्रवचन और प्रसाद वितरण होता है। भारत में भी ISKCON के 800 से अधिक मंदिर हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। ये सभी केंद्र कृष्ण चेतना का संदेश फैलाने, वैदिक संस्कृति को सहेजने और लोगों को आध्यात्मिक जीवन की ओर प्रेरित करने का काम कर रहे हैं। यही वैश्विक उपस्थिति ISKCON को दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन बनाती है।

भारत में ISKCON का पुनरागमन


हालाँकि ISKCON की शुरुआत अमेरिका में हुई थी लेकिन कुछ ही वर्षों में यह आंदोलन भारत वापस आया और यहाँ इसके कई भव्य मंदिर बने। भारत में ISKCON के प्रमुख मंदिरों में मुंबई का श्री श्री राधा-रसबिहारी मंदिर, वृंदावन का श्री श्री राधा-गोविंद मंदिर, दिल्ली का श्री श्री राधा-पार्थसारथी मंदिर और मायापुर, पश्चिम बंगाल का श्री श्री राधा-माधव मंदिर शामिल हैं। मायापुर का मंदिर खास महत्व रखता है क्योंकि यही ISKCON का विश्व मुख्यालय है और यह भक्ति, शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र है। आज भारत में ISKCON के 150 से भी ज्यादा केंद्र और मंदिर हैं जहाँ नियमित रूप से कीर्तन, प्रवचन, भक्ति-योग की शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

भोजनालय और सामाजिक सेवा

ISKCON सिर्फ एक धार्मिक संगठन नहीं है, बल्कि यह समाज और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम कर रहा है। इसका फूड फॉर लाइफ प्रोग्राम दुनिया के 60 से अधिक देशों में जरूरतमंदों और गरीब बच्चों को मुफ्त प्रसाद (भोजन) उपलब्ध कराता है। भारत में इसे अन्नामृता के नाम से जाना जाता है और यह लाखों लोगों को पौष्टिक भोजन देता है। इसके अलावा ISKCON गुरुकुलों और स्कूलों के जरिए बच्चों को आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा प्रदान करता है, जिसमें वृंदावन और मायापुर के स्कूल खास प्रसिद्ध हैं। इन स्कूलों में आधुनिक पढ़ाई के साथ-साथ आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। ISKCON प्रभुपाद की पुस्तकों का 60 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद और वितरण करता है, ताकि वैदिक ज्ञान दुनिया तक पहुँच सके। साथ ही यह गौसेवा, जैविक खेती और सरल जीवन – उच्च विचार की सोच को बढ़ावा देकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है।

आलोचनाएँ और चुनौतियाँ

अन्य बड़े आंदोलनों की तरह ISKCON को भी कई चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। कुछ लोगों का मानना है कि यह पश्चिमी देशों में धर्म परिवर्तन का माध्यम बन गया है। इसके अलावा ISKCON के प्रशासनिक ढांचे और मंदिरों में आने वाले धन के प्रबंधन को लेकर भी सवाल उठे हैं। आलोचकों का कहना है कि चढ़ावा राशि विदेशों में भेजी जाती है और कभी-कभी आरती व पूजा की व्यवस्थाएँ भी दान राशि के आधार पर की जाती हैं। हालांकि, ISKCON का कहना है कि इसका मुख्य उद्देश्य भक्ति, सेवा और आध्यात्मिक शिक्षा है और मंदिरों में आने वाला धन भक्ति-सेवा, भोजन वितरण और शिक्षा जैसे सामाजिक कार्यों में उपयोग किया जाता है।

प्रभुपाद का निधन और आंदोलन की निरंतरता

स्वामी प्रभुपाद का निधन 14 नवंबर 1977 को वृंदावन में हुआ। उनके देहावसान के बाद भी ISKCON निरंतर बढ़ता रहा। आज यह 100 से अधिक देशों में 800 से अधिक मंदिरों, फार्म समुदायों, स्कूलों और रेस्तरांओं के साथ सक्रिय है।

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