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Hinglaj Mata Temple: पाकिस्तान में हिंगलाज माता मंदिर, जाने एक प्राचीन शक्तिपीठ की कहानी और इसका महत्व

Pakistan Hinglaj Mata Temple History: हिंगलाज माता मंदिर न केवल 51 शक्तिपीठों में से एक है, बल्कि यह एक ऐसी जगह भी है जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय एक साथ आकर श्रद्धा और भक्ति का अनूठा संगम प्रस्तुत करते हैं।

Akshita Pidiha
Published on: 9 July 2025 1:24 PM IST
Pakistan Hinglaj Mata Temple History
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Pakistan Hinglaj Mata Temple History: पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मकरान तट पर हिंगोल नदी के किनारे बसा हिंगलाज माता मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर न केवल 51 शक्तिपीठों में से एक है, बल्कि यह एक ऐसी जगह भी है जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय एक साथ आकर श्रद्धा और भक्ति का अनूठा संगम प्रस्तुत करते हैं। इसे हिंगलाज देवी, हिंगुला देवी और नानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर हिंगोल नेशनल पार्क के बीचों-बीच एक गुफा में स्थित है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां की कठिन यात्रा को अपनाते हैं। इस लेख में हम हिंगलाज माता मंदिर के इतिहास, पौराणिक कथाओं, तीर्थयात्रा और इसके सांस्कृतिक महत्व को विस्तार से जानेंगे।

हिंगलाज माता मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा

हिंगलाज माता मंदिर की कहानी प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। यह मंदिर उन 51 शक्तिपीठों में से एक है जहां माता सती के अंग गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया था, तब भगवान शिव ने उनके मृत शरीर को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य शुरू किया। इससे सृष्टि के विनाश का खतरा मंडराने लगा। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ऐसा माना जाता है कि हिंगलाज में माता सती का सिर (या कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका ब्रह्मरंध्र) गिरा था, जिससे यह स्थान एक प्रमुख शक्तिपीठ बन गया।


इस मंदिर का उल्लेख शिव पुराण और अन्य हिंदू ग्रंथों में मिलता है, जहां इसे हिंगुला या हिंगलाज के नाम से जाना जाता है। स्थानीय किंवदंती के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण यक्षों (देवताओं) ने किया था, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाता है। कुछ कथाओं में यह भी कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां तपस्या की थी।

एक अन्य कथा में बताया जाता है कि परशुराम के पिता, महर्षि जमदग्नि ने भी यहां तप किया था, और उनके नाम पर एक स्थान आज भी मौजूद है जिसे आसाराम कहा जाता है। हिंगलाज माता को आदि शक्ति का रूप माना जाता है, जो भक्तों को आशीर्वाद और पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं। इस मंदिर की पवित्रता इतनी अधिक है कि माना जाता है कि बिना हिंगलाज माता के दर्शन के चार धाम की यात्रा भी अधूरी रहती है।

मंदिर की भौगोलिक स्थिति और संरचना

हिंगलाज माता मंदिर बलूचिस्तान के लासबेला जिले में हिंगोल नेशनल पार्क के एकांत क्षेत्र में स्थित है। यह कराची से लगभग 240 किलोमीटर पश्चिम में मकरान रेगिस्तान के बीचों-बीच है। मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में बना है, जो किर्थर पर्वत शृंखला के अंत में हिंगोल नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का परिसर लगभग 6400 वर्ग मीटर में फैला है, जिसमें कई छोटे-छोटे मंदिर अन्य हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित हैं। मुख्य मंदिर एक छोटी गुफा में है, जहां माता हिंगलाज की मूर्ति वैष्णो देवी के समान स्वरूप में स्थापित है।

गुफा का प्रवेश द्वार लगभग 50 फीट ऊंचा है, और इसके अंदर रंग-बिरंगे पत्थरों और प्राकृतिक खनिजों से सजी दीवारें इसे और भी आकर्षक बनाती हैं। मंदिर के पास चंद्रगुप और खांडेवारी नामक मिट्टी के ज्वालामुखी हैं, जिन्हें हिंदू भक्त भगवान शिव का भैरव रूप मानते हैं। इस मंदिर की सादगी और प्राकृतिक सुंदरता इसे अनूठा बनाती है। गुफा में कोई भव्य संरचना नहीं है, बल्कि एक छोटा मिट्टी का चबूतरा और माता की छोटी मूर्ति ही पूजा का केंद्र है।

हिंगलाज यात्रा: एक कठिन तीर्थयात्रा


हिंगलाज माता मंदिर की यात्रा, जिसे हिंगलाज यात्रा के नाम से जाना जाता है, पाकिस्तान में हिंदुओं की सबसे बड़ी तीर्थयात्रा है। हर साल अप्रैल में होने वाली यह चार दिन की यात्रा लाखों भक्तों को आकर्षित करती है। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।

यात्रा की शुरुआत कराची के नानद पंथी आखड़ा से होती है, जहां से तीर्थयात्री समूहों में निकलते हैं। यात्रा का नेतृत्व एक छड़ीधर करता है, जो हठ योगियों का एक पवित्र समूह होता है और उनके पास यात्रा को अधिकृत करने का अधिकार होता है। तीर्थयात्री 160 मील से अधिक की कठिन रेगिस्तानी यात्रा तय करते हैं, जिसमें कई बार पैदल चलना पड़ता है। यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है चंद्रगुप ज्वालामुखी, जहां भक्त नारियल और फूल चढ़ाते हैं। माना जाता है कि अगर नारियल ऊपर आ जाता है, तो माता ने भक्त की मनोकामना स्वीकार कर ली है।

तीर्थयात्री रात भर जागकर उपवास करते हैं, अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और अगले दिन ज्वालामुखी के किनारे अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं। हाल के वर्षों में, सड़क और बुनियादी ढांचे के विकास ने इस यात्रा को कुछ हद तक आसान बनाया है, लेकिन फिर भी यह एक चुनौतीपूर्ण अनुभव है। कई भक्त इसे एकदिवसीय यात्रा के रूप में भी पूरा करते हैं।

हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

हिंगलाज माता मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसे न केवल हिंदू, बल्कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय, खासकर जिक्री मुस्लिम, भी सम्मान देते हैं। वे इसे नानी मंदिर कहते हैं और इसकी तीर्थयात्रा को नानी की हज कहकर संबोधित करते हैं।

स्थानीय मुस्लिम मंदिर की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसे एक चमत्कारी स्थान मानते हैं। सूफी संत शाह अब्दुल लतीफ भिट्टाई ने भी इस मंदिर की यात्रा की थी और अपनी कविता सूर रामकली में माता हिंगलाज और यहां आने वाले जोगियों की प्रशंसा की थी। एक किंवदंती के अनुसार, शाह अब्दुल लतीफ ने माता को दूध अर्पित किया था, जिसके बाद माता उनके सामने प्रकट हुई थीं। मुस्लिम भक्त माता को लाल या केसरिया वस्त्र, अगरबत्ती, मोमबत्ती और एक विशेष मिठाई सिरिनी अर्पित करते हैं। यह मंदिर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का एक अनूठा उदाहरण है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक है।

मंदिर का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व


हिंगलाज माता मंदिर का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी है। यह पाकिस्तान के हिंदू समुदाय के लिए एकता का प्रतीक है और उनकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। यह मंदिर अघोरी संप्रदाय की कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है। अघोरी भगवान शिव के भैरव रूप के उपासक हैं और हिंगलाज माता को उनकी संरक्षक मानते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर के दर्शन से भक्तों के सभी पाप क्षमा हो जाते हैं और उन्हें आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है।

यह स्थान प्राचीन काल से ही तपस्वियों और साधुओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव और दादा माखन जैसे महान संतों ने भी यहां पूजा की थी। यूनेस्को ने इसे 2016 में अपनी अस्थायी विश्व धरोहर सूची में शामिल किया था, और 2025 में इसे वैश्विक पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया, जो इसे अल्पसंख्यक समुदाय के लिए पहला ऐसा स्थल बनाता है।

यात्रा कैसे करें और क्या सावधानियां बरतें

हिंगलाज माता मंदिर की यात्रा एक अनूठा अनुभव है, लेकिन इसके लिए सावधानी और तैयारी की जरूरत होती है। यात्रा के लिए कराची के जिन्ना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरना सबसे सुविधाजनक है। वहां से मंदिर लगभग 240 किलोमीटर दूर है। टरबट अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी एक विकल्प है, लेकिन वहां से दूरी अधिक है। यात्रा समूहों में करना सुरक्षित है, क्योंकि रास्ता सुनसान और रेगिस्तानी है। अकेले यात्रा करने से बचें, क्योंकि डकैती का खतरा हो सकता है।

पुरुषों को शॉर्ट्स पहनने की अनुमति नहीं है, और महिलाओं को सिर ढकना अनिवार्य है। अप्रैल में होने वाली हिंगलाज यात्रा में शामिल होना सबसे अच्छा समय है, क्योंकि तब संगठित समूह और सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होती है। यात्रा से पहले पाकिस्तान वीजा के लिए आवेदन करना जरूरी है।

चंद्रगुप ज्वालामुखी: मंदिर का प्रवेश द्वार

चंद्रगुप ज्वालामुखी को मंदिर का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह 300 फीट ऊंचा ज्वालामुखी है, जिसमें 450 से अधिक सीढ़ियां हैं। भक्तों का मानना है कि बिना चंद्रगुप में पूजा किए माता के दर्शन संभव नहीं हैं। भक्त यहां नारियल, फूल और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। अगर ज्वालामुखी नारियल को स्वीकार करता है, तो यह माना जाता है कि माता ने भक्त को दर्शन की अनुमति दी है। चंद्रगुप को भगवान शिव का भैरव रूप माना जाता है, और इसे बाबा चंद्रगुप भी कहा जाता है।

अन्य कथाएं और विश्वास

हिंगलाज माता मंदिर से जुड़ी कई अन्य कथाएं और विश्वास भी प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, त्रेता युग में हिंगोल और सुंदर नामक दो राजकुमारों ने अपने अत्याचारी शासन से लोगों को परेशान किया था। तब भगवान गणेश ने सुंदर का वध किया और हिंगोल को माता हिंगलाज ने शरण दी। कुछ मान्यताओं के अनुसार, हर रात सभी शक्तियां इस मंदिर में एकत्र होती हैं और रासलीला करती हैं, जो इसे और भी पवित्र बनाता है। माना जाता है कि माता हिंगलाज ने परशुराम को ब्रह्मक्षत्रिय का दर्जा दिया था, जब उन्होंने क्षत्रियों का वध करने के बाद यहां शरण मांगी थी।

वर्तमान स्थिति और चुनौतियां


हालांकि हिंगलाज माता मंदिर को स्थानीय मुस्लिम समुदाय का समर्थन प्राप्त है, लेकिन अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए इसकी देखभाल और रखरखाव में कई चुनौतियां हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण यात्रा कठिन बनी रहती है। कुछ समय पहले मिथी, सिंध में एक अन्य हिंगलाज माता मंदिर को लेकर विवाद हुआ था, जहां एक भूमि विवाद के कारण एक संरचना को तोड़ा गया था। हालांकि, यह ऐतिहासिक मंदिर नहीं था, लेकिन इस घटना को गलत तरीके से प्रचारित किया गया था। मंदिर की सुरक्षा और संरक्षण के लिए स्थानीय प्रशासन और यूनेस्को की मदद से प्रयास किए जा रहे हैं।

हिंगलाज माता मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी है। यह मंदिर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता का प्रतीक है और प्राचीन हिंदू परंपराओं को जीवित रखने का एक जीवंत उदाहरण है। इसकी कठिन यात्रा, पौराणिक कथाएं और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं। चाहे आप धार्मिक हों या इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले यात्री, हिंगलाज माता मंदिर आपको एक अविस्मरणीय अनुभव देगा। यह स्थान न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि विश्वास और भक्ति की कोई सीमा नहीं होती।

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