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खुल गई सपा की फाइल! दिखाया था 'सत्ता का रसूख', SC ने मुलायम यादव की 'पार्टी' और 'बेटे' दोनों पर...
Akhilesh Yadav: सवाल ये उठता है कि क्या भारतीय राजनीति धीरे-धीरे प्लॉट पॉलिटिक्स की ओर बढ़ रही है...
Samajwadi Party Land Scam: बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सवा सौ... ये कहावत अगर राजनीतिक दलों पर लागू की जाए तो समाजवादी पार्टी (सपा) इन दिनों इसका सजीव उदाहरण बन गई है। सिर्फ 115 रुपये में सरकारी जमीन कब्जाने का आरोप झेल रही सपा को सुप्रीम कोर्ट से न सिर्फ कानूनी झाड़ मिली बल्कि नैतिकता की तगड़ी क्लास भी लगाई गई। अब भाजपा को मानो बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया हो माइक हाथ में और जुबान पर सपा की जमीनखोरी का आरोप।
दरअसल, मामला पीलीभीत का है, जहां सपा ने महज 115 रुपये में कार्यालय के लिए जमीन हथिया ली। सुप्रीम कोर्ट ने इसपर तल्ख लहजे में कहा यह राजनीतिक शक्ति और बाहुबल का दुरुपयोग है। कोर्ट ने ये भी पूछा कि क्या कभी नगरपालिका क्षेत्र में 115 रुपये में किराए पर कार्यालय सुना है? अब भला न्यायपालिका की बात का क्या जवाब हो, सपा के पास चुप रहने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा।
भाजपा का हमला: सपा की पहचान - जमीन पर कब्जा
उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने मामले पर कम शब्दों में गहरी चोट की। बोले जब-जब सपा सत्ता में आई है, दुकानों, मकानों और जमीनों पर कब्जा करना ही इनकी प्राथमिकता रही है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने सपा के असली चरित्र को उजागर कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी तो और भी तल्ख हो गए, कहा- ये पार्टी सत्ता में आते ही नियमों की अर्थी निकाल देती है और प्लॉट पर तिरंगा नहीं, पार्टी का झंडा गाड़ देती है।
सपा का रुख: भाजपा ही असली भू-माफिया है
सत्तापक्ष की इस ज़ुबानी बमबारी के बीच सपा की तरफ से बचाव में आए पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी लेकिन कुछ बुझते हुए शब्दों में बोले- पूरी जानकारी नहीं है, पर जमीन पर कब्जा करने में भाजपा का भी रिकॉर्ड कम नहीं है। आज तो हर जिले में भाजपा के संरक्षण में जमीनें कब्जाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यालय का मामला है, वैसे बाकी दल भी ऐसे ही खुले हैं, यानी सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
राजनीतिक संवाद या रियल एस्टेट का नया चेहरा?
अब सवाल ये उठता है कि क्या भारतीय राजनीति धीरे-धीरे प्लॉट पॉलिटिक्स की ओर बढ़ रही है? जहां विचारधारा नहीं, जमीन का मोल तय करता है कि कौन कितनी बड़ी पार्टी है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने भले ही इस पूरे घटनाक्रम को गंभीर कानूनी मसले के रूप में दर्ज किया हो, लेकिन जनता के बीच ये मुद्दा धीरे-धीरे 115 रुपये में लोकतंत्र का ठेका बनता दिख रहा है।
कुल मिलाकर, राजनीति अब भाषण से नहीं, भवन से पहचान ली जा रही है। और अगर यही हाल रहा, तो अगली चुनावी रैली में नेता मंच से नहीं, अपने कब्जाए गए प्लॉट से सीधा प्रसारण करेंगे- ये देखिए, मेरी पार्टी की असली जड़ें।
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