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Barabanki News: 77 साल की आज़ादी, लेकिन एक गांव अब भी गुलाम… अंधेरे, प्यास और उपेक्षा का नाम है बाराबंकी का गढ़रियनपुरवा गांव

Barabanki News: अंतरिक्ष में इतिहास रच रहा है, गांव-गांव इंटरनेट पहुंचाने की बात हो रही है, तब बाराबंकी का एक गांव ऐसा भी है, जहां आज भी हर शाम अंधेरे से पहले घर लौटना मजबूरी है।

Sarfaraz Warsi
Published on: 27 Jun 2025 1:38 PM IST
Barabanki News: 77 साल की आज़ादी, लेकिन एक गांव अब भी गुलाम… अंधेरे, प्यास और उपेक्षा का नाम है बाराबंकी का गढ़रियनपुरवा गांव
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Barabanki News

Barabanki News: जब देश अंतरिक्ष में इतिहास रच रहा है, गांव-गांव इंटरनेट पहुंचाने की बात हो रही है, तब बाराबंकी का एक गांव ऐसा भी है, जहां आज भी हर शाम अंधेरे से पहले घर लौटना मजबूरी है। जहां एक बल्ब की रौशनी आज भी सपना है। जहां दीए की मद्धम लौ में बच्चे अपने भविष्य को ढूंढते हैं। यह गांव है गढ़रियनपुरवा जो बाराबंकी जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर है, लेकिन विकास से सौ साल पीछे।

गांव के बुजुर्ग जब अपने बीते बचपन को याद करते हैं तो बस एक ही बात कहते हैं कि 'तब भी बिजली नहीं थी, आज भी नहीं है… फर्क सिर्फ इतना है कि अब आंखें भी कमजोर हो गई हैं। गांव में जन्मे हर बच्चे ने रोशनी का इंतजार किया लेकिन ये इंतजार अब उनकी बुजुर्गी तक चला आया। कुछ तो इस इंतजार में ही दुनिया से चले गए।

गांव के रोहित पाल का कहना है सरकारें आईं वादे हुए, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदला। 2017 में गांव में कुछ बिजली के खंभे जरूर लगाए गए, लेकिन फिर विभाग ने मानो मुंह मोड़ लिया। आठ साल हो गए न तार खिंचे न सपनों में उजाला आया। गांव की शिक्षिका रूबी कहती हैं, बच्चे दीए की रोशनी में पढ़ते हैं। गर्मी इतनी होती है कि पंखा भी नहीं चला सकते। रोशनी और हवा के बिना पढ़ाना क्या होता है, कोई शहर में नहीं समझ सकता।गढ़रियनपुरवा में पीने के पानी की हालत भी उतनी ही चिंताजनक है। प्रधानमंत्री जल जीवन मिशन की योजना यहां सिर्फ नाम की है। पाइप तोड़ बढ़ा दिए गए हैं लेकिन एक भी टोटी अभी तक नहीं लग पाई है। एकमात्र सरकारी नल पर सुबह-शाम लंबी कतारें लगती हैं-बूढ़ी आंखें, छोटी बाल्टियां और थकी उम्मीदें।

गांव के अरविन्द पाल कहते हैं कि लोग हमारे यहां रिश्ता जोड़ने से भी कतराते हैं, कहते हैं कि जहां बिजली न हो, वहां बेटियों का भविष्य अंधेरे में जाएगा। वहीं जो शादियां होती है उनमें मिले दहेज के इलेक्ट्रॉनिक सामान यहीं खराब होकर धूल खाते हैं। गांव की एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि हमारे सास-ससुर बिजली की आस में चले गए। अब हम भी बुढ़ापे के पड़ाव पर हैं। लगता है, हम भी बिना रोशनी देखे ही चले जाएंगे… क्या हमारे बच्चों को भी यही अंधेरा मिलेगा।

अन्य ग्रामीणों ने बताया कि गांव में बनी नाली की सफाई महीनों से नहीं हुई, सड़कें कच्ची हैं, स्कूल नहीं है। कई बार तहसील दिवस से लेकर मुख्यमंत्री तक आवाज उठाई गई, लेकिन जैसे उनकी पुकार हवा में गुम हो जाती है। गांव की आबादी 500 के करीब है, कुछ परिवारों ने जैसे-तैसे सोलर पैनल लगवाए हैं जिससे कुछ रोशनी हो जाती है। गांव के लोग जिम्मेदार सिस्टम से सवाल कर रहे हैं, क्या गढ़रियनपुरवा देश का हिस्सा नहीं है,क्या यहां के बच्चे सिर्फ आंकड़ों में गिने जाते हैं, और क्या इस गांव के सपनों को रोशनी देने वाला कोई आएगा… या अंधेरे ही इनका मुकद्दर बन जाएगा।

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Shalini singh

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