बाराबंकी की पूजा ने जापान में लहराया 'भारत का परचम', दीये की रोशनी में की पढ़ाई, घर पर न बिजली न शौचालय, जानिए संघर्ष भरी कहानी

Barabanki News: जिस बच्ची ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया उसके घर में अभी भी न बिजली है न शौचालय।पूजा की सफलता की कहानी जितनी प्रेरणादायक है उसकी पारिवारिक स्थिति उतनी ही चिंताजनक।

Sarfaraz Warsi
Published on: 21 July 2025 10:02 AM IST (Updated on: 21 July 2025 11:57 AM IST)
बाराबंकी की पूजा ने जापान में लहराया भारत का परचम, दीये की रोशनी में की पढ़ाई, घर पर न बिजली न शौचालय, जानिए संघर्ष भरी कहानी
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Barabanki News: बाराबंकी जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील अंतर्गत अगेहरा गांव की इंटर की छात्रा पूजा आज लाखों छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। छप्पर नुमा घर में रहकर पढ़ाई करने वाली पूजा विज्ञान में अपने प्रयोग और जज़्बे की बदौलत जापान तक पहुंचीं और वहां भारत का प्रतिनिधित्व कर लौटी हैं। लेकिन विडंबना यह है कि जिस बच्ची ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन किया उसके घर में अभी भी न बिजली है न शौचालय।

पूजा की सफलता की कहानी जितनी प्रेरणादायक है उसकी पारिवारिक स्थिति उतनी ही चिंताजनक। पूजा के पिता पुत्तीलाल मजदूरी करते हैं और मां सुनीला देवी एक सरकारी स्कूल में रसोईया हैं। घर छोटा है जो खरपतवार से छप्पर नुमा बना है। पांच भाई-बहनों के साथ मिलकर पूजा अपने इसी घर में रहती हैं। पढ़ाई के लिए आज भी उसे दीये की रोशनी सहारा बनती है। बताया जा रहा है कि जिलाधिकारी द्वारा विद्युत कनेक्शन और शौचालय की स्वीकृति दी गई है, बिजली का मीटर भी घर पहुंच गया है, लेकिन खंभे से घर तक का केबल खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर है कि पूजा के माता-पिता उसे भी नहीं खरीद पाए। इस कारण अभी तक घर में बिजली नहीं आ सकी।


पूजा केवल एक पढ़ाकू छात्रा ही नहीं हैं, बल्कि घरेलू जिम्मेदारियों में भी आगे हैं। वह अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर चारा काटना, पशुओं की देखरेख और अन्य घरेलू काम करती हैं। पढ़ाई का समय निकालना उसके लिए आसान नहीं रहा, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।


पूजा को पहली बार पहचान तब मिली जब उन्होंने कक्षा 8 में पढ़ते समय एक विज्ञान मॉडल बनाया—धूल रहित थ्रेशर मशीन। स्कूल के पास थ्रेशर मशीन से उड़ने वाली धूल से छात्रों को परेशानी होती थी, जिससे प्रेरणा लेकर पूजा ने टिन और पंखे की मदद से एक ऐसा मॉडल बनाया, जो उड़ने वाली धूल को एक थैले में जमा कर लेता था। यह मॉडल न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित था बल्कि किसानों के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।


इस मॉडल को बनाने में उन्होंने लगभग 3 हजार रुपये खर्च किए, जो उनके परिवार के लिए बड़ी रकम थी। वर्ष 2020 में यह मॉडल जिला और मंडल स्तर पर चुना गया, फिर राज्यस्तरीय प्रदर्शनी और अंततः राष्ट्रीय विज्ञान मेले तक पहुंचा। वर्ष 2024 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान मेले में भी पूजा के मॉडल को चुना गया।

बता दें कि पूजा को जून 2025 में भारत सरकार द्वारा शैक्षिक भ्रमण के लिए जापान भेजा गया। वहां उन्होंने अपने मॉडल और विचारों से न केवल तारीफ बटोरी, बल्कि यह भी साबित किया कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती। जापान यात्रा से लौटने के बाद अब पूजा का सपना है कि वह अपने गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाए और उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाए।

पूजा की कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं बल्कि सिस्टम पर भी सवाल है कि एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाली बच्ची को आज भी बुनियादी सुविधाओं से जूझना पड़ रहा है। जिले के लोगों और जागरूक नागरिकों की मांग है कि प्रशासन इस प्रतिभा को उचित संसाधन और आवश्यक सुविधाएं जल्द से जल्द उपलब्ध कराए, ताकि पूजा की उड़ान और ऊंची हो सके।

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