TRENDING TAGS :
BBAU के वैज्ञानिकों ने किया कमाल ! पपीता को लीफ कर्ल वायरस से बचाने की खोजी नई तकनीक, क्या है आरएनए टीका !
BBAU scientists did wonders: शोधकर्ताओं ने एक ऐसा जैविक तरीका खोजा है, जिसमें पपीते के पौधों की पत्तियों पर डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए (dsRNA) का छिड़काव किया गया।
Babasaheb Bhimrao Ambedkar University Lucknow
Babasaheb Bhimrao Ambedkar University: बीबीएयू लखनऊ के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की एक शोध टीम ने सीएसआईआर–हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों के सहयोग से पपीता के पौधों को लीफ कर्ल वायरस से बचाने की एक नई और प्रभावी तकनीक विकसित की है। यह बीमारी बेगोमोवायरस के कारण होती है, जो सफेद मक्खियों (व्हाइटफ्लाई) के जरिए फैलती है और पत्तियों को मोड़कर पौधों की वृद्धि रोक देती है। इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
शोध कार्य का नेतृत्व बीबीएयू की स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की संकायाध्यक्ष प्रो. संगीता सक्सेना ने किया, जिसमें जैव प्रौद्योगिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. युसुफ अख्तर और शोध छात्रा प्रियंका ने अहम भूमिका निभाई। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने इस उपलब्धि के लिए पूरी टीम को बधाई देते हुए इसे संस्थान के लिए गर्व का क्षण बताया।
न रसायन-न-जेनेटिक संशोधन, फिर भी पौधों के लिए टीका जैसा असर
शोधकर्ताओं ने एक ऐसा जैविक तरीका खोजा है, जिसमें पपीते के पौधों की पत्तियों पर डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए (dsRNA) का छिड़काव किया गया। यह RNA पौधों की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करता है और वायरस की वृद्धि को रोकता है। यह तकनीक न तो रासायनिक कीटनाशकों पर आधारित है, न ही इसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) बीजों का प्रयोग किया गया है।
15 दिन तक वायरस से सुरक्षा, वायरस की मात्रा में 7 गुना तक कमी
शोध में पता चला कि जिन पौधों पर dsRNA का छिड़काव किया गया, वे 15 दिनों तक वायरस से सुरक्षित रहे। इनमें वायरस की मात्रा बिना उपचार वाले पौधों की तुलना में 6 से 7.7 गुना कम पाई गई। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका Physiological and Molecular Plant Pathology (Elsevier) में प्रकाशित हुआ है, जो इसकी वैज्ञानिक गुणवत्ता को दर्शाता है।
कृषकों के लिए सस्ता, पर्यावरण के लिए सुरक्षित
डॉ. युसुफ अख्तर ने बताया कि यह पहली बार है जब पपीता को बचाने के लिए एक गैर-जेनेटिक तरीका विकसित किया गया है। dsRNA तकनीक पर्यावरण के लिए पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाती है और प्रति पौधा केवल 20 माइक्रोग्राम की बहुत ही कम मात्रा में कारगर होती है। इससे यह तरीका किसानों के लिए सस्ता और उपयोग में आसान बन जाता है।
खेतों में परीक्षण और नैनो तकनीक का इस्तेमाल
शोधकर्ता अब इस तकनीक को प्रयोगशाला से खेतों तक ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। वे ऐसी नैनो-कैरियर तकनीकों पर भी काम कर रहे हैं, जिससे dsRNA पौधों पर लंबे समय तक प्रभावी बना रहे और खेती की वास्तविक परिस्थितियों में बेहतर परिणाम दे सके। यदि यह प्रयास सफल होता है, तो यह तकनीक न केवल पपीते बल्कि अन्य फसलों को भी वायरस जनित बीमारियों से बचा सकती है।
शोध में प्रियंका की प्रमुख भूमिका
इस शोध में प्रो. संगीता सक्सेना की पीएचडी छात्रा प्रियंका ने सभी इन-विट्रो प्रयोगों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका निभाई। जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डीआर मोदी, अन्य शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भी टीम को इस उपलब्धि पर बधाई दी और मानवता के हित में ऐसे नवाचारों को प्रोत्साहन देने का आह्वान किया।
Start Quiz
This Quiz helps us to increase our knowledge