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Chandauli: उदीयमान सूर्य को अर्घ्य: चंदौली के घाटों पर आस्था का महामिलन और छठ महापर्व का दिव्य समापन
Chandauli News: चंदौली में छठ पूजा 2025 का समापन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर हुआ, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का दृश्य
उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (photo: social media )
Chandauli News: लोक आस्था का महापर्व 'छठ' केवल एक पूजा नहीं, अपितु प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और आत्मशुद्धि का एक विराट अनुष्ठान है। चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन व्रत की दिव्यता और कठोरता इसे भारतीय संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक बनाती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व सूर्यदेव और छठी मैया के चरणों में संपूर्ण समर्पण का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के सीमांत जनपद चंदौली में भी, गंगा की पश्चिमी वाहिनी धारा के तटों, बलुआ और टांडा के घाटों पर, तथा नौगढ़ बाजार स्थित दुर्गा मंदिर के परिसर में बने पावन तालाब पर, इस महापर्व का चार दिवसीय महायज्ञ आज उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ। यह सिर्फ एक धार्मिक कृत्य नहीं था, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही लोक परंपराओं का एक अलौकिक दृश्य था, जहाँ प्रकृति की गोद में मानव की आस्था साकार हो उठी।
भोर की बेला और घाटों पर श्रद्धा का वैभव
आज भोर की पहली किरण फूटने से बहुत पहले ही, चंदौली के प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। रात्रि के अंधकार को चीरते हुए, व्रती और उनके परिजन पश्चिमी वाहिनी बलुआ घाट, टांडा घाट तथा नौगढ़ बाजार के घाटों की ओर प्रस्थान करने लगे। सुबह चार बजे से ही घाटों पर चहल-पहल आरंभ हो गई थी, और शीघ्र ही यह स्थल रौशनी और श्रद्धा के एक अद्भुत संगम में परिवर्तित हो गए।
दिए और दीपों के टिमटिमाते प्रकाश से हर घाट जगमगा उठा था, मानो आकाश के तारे स्वयं धरती पर उतर आए हों। इस दिव्य आलोक में, सिर पर पूजन सामग्री से भरी बाँस की टोकरी (दउरा) लिए हुए, महिला और पुरुष भक्तगण धैर्य और भक्तिभाव से गंतव्य की ओर बढ़ते दिखाई दिए। जल में कमर तक खड़ी, निर्जला व्रतधारी छठ व्रती महिलाओं ने, अपनी संतानों की दीर्घायु तथा पूरे परिवार के लिए सुख-समृद्धि की मंगल कामना करते हुए, उगते हुए सूर्य देव को दूसरा और अंतिम अर्घ्य समर्पित किया। इस क्षण, घाटों पर एक आध्यात्मिक और पवित्र ऊर्जा का संचार हो रहा था।
मधुर छठ गीत और वातावरण की पवित्रता
घाटों का वातावरण छठ मइया के पारंपरिक और कर्णप्रिय गीतों से गूँज रहा था। "काँच ही बाँस के बहंगिया..." जैसे लोकगीतों की गूंज ने पूरे परिवेश को एक अगाध भक्ति और धार्मिक श्रद्धा के रंग में रंग दिया। यह पर्व प्रकृति के पूजन का महापर्व है, और इस दिन सामूहिक रूप से सूर्य की आराधना में लीन जनसमूह के चेहरे पर एक अलौकिक संतोष और उत्साह का भाव स्पष्ट दिख रहा था। यह दृश्य सामाजिक समरसता और अटूट विश्वास की कहानी कह रहा था।
प्रशासन की सजगता और समाजसेवियों का योगदान
इस महापर्व को सफलतापूर्वक संपन्न कराने में सुरक्षा और व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा गया था। ग्राम पंचायत बाघी, नौगढ़ की ग्राम प्रधान नीलम ओहरी और समाजसेवी आशीष कुमार उर्फ दीपक गुप्ता ने घाटों और मेला परिसर में उत्कृष्ट साज-सज्जा और आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था कर सामुदायिक सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया।
सुरक्षा की दृष्टि से घाटों पर पुख्ता इंतजाम किए गए थे ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना या दुर्घटना को रोका जा सके। पुलिस बल के जवानों की तैनाती चप्पे-चप्पे पर की गई थी। उप जिलाधिकारी विकास मित्तल स्वयं मौके पर उपस्थित रहे। क्षेत्राधिकारी नामेंद्र कुमार के निर्देशन में, निरीक्षक सुरेंद्र यादव के नेतृत्व में, उप निरीक्षक कृपा शंकर सिंह और अभय कुमार सिंह मय बल के साथ मेला परिसर में लगातार गश्त करते रहे। इस सजग प्रशासनिक व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े और वे सुरक्षित रूप से अपनी पूजा-अर्चना संपन्न कर लौट सकें।
महापर्व का समापन: एक संकल्प की पूर्ति
चार दिनों का यह कठिन अनुष्ठान 25 अक्टूबर को "नहाय-खाय" की परंपरा के साथ शुरू हुआ था। दूसरे दिन "खरना" पर, व्रतियों ने गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद ग्रहण किया, जिसके बाद उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हुआ। तीसरे दिन, डूबते हुए अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर, भक्तों ने अपनी तपस्या को आगे बढ़ाया। और आज, चौथे एवं अंतिम दिन, उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही, छठ महापर्व का यह पवित्र और कठोर व्रत संपन्न हो गया।
इस पावन अवसर पर, ग्राम प्रधान नीलम ओहरी, समाजसेवी आशीष कुमार उर्फ दीपक गुप्ता, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य नौगढ़, पूर्व भाजपा मंडल अध्यक्ष डा. आनंद कुमार गुप्ता, समाजसेवी एवं पूर्व शासकीय अधिवक्ता राम जियावन सिंह यादव, जिलाजित यादव और बाबू लाल यादव सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति ने, सामुदायिक भागीदारी और आस्था के इस पर्व को और अधिक गरिमा प्रदान की। छठ का यह समापन, केवल एक पूजा का अंत नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के बीच स्थापित अटूट संबंध की पुष्टि है।
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