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Chandauli News: कजरी की गूँजः जब संस्कृति ने 112 साल पुरानी परंपरा को फिर से जीवंत कर दिया
उपजिलाधिकारी के आवास परिसर में आयोजित समारोह में र आम और ख़ास इंसान की आत्मा ने सुर मिलाए।
Chandauli News
Chandauli News: चंदौली के चकिया नगर में एक शाम ऐसी उतरी, जिसकी धुन हवाओं में सदियों से गूँज रही है। कजरी... यह सिर्फ लोकगीत नहीं, बल्कि माटी की महक, दिलों की धड़कन और एक अटूट परंपरा का नाम है। इस साल, नगर पंचायत ने इस परंपरा को 112वीं बार जीवंत कर दिखाया। जैसे सावन की पहली फुहार के बाद मिट्टी से सोंधी ख़ुशबू आती है, वैसे ही यह महोत्सव लोककला के प्रेमियों के लिए एक ख़ुशनुमा एहसास लेकर आया। उपजिलाधिकारी के आवास परिसर में आयोजित इस भव्य समारोह में सिर्फ कलाकार ही नहीं, बल्कि हर आम और ख़ास इंसान की आत्मा ने सुर मिलाए। यह एक ऐसा पल था जब कजरी की मीठी तान ने न केवल कानों को सुकून दिया, बल्कि मन को भी सुकून पहुंचाया।
परंपरा की मशालः एक सदी से अधिक का सफर
चकिया का यह कजरी महोत्सव महज एक आयोजन नहीं, बल्कि एक विरासत है। श्रीकृष्ण की “बरही“ के पावन अवसर पर शुरू हुआ यह पर्व, समय के साथ एक मजबूत परंपरा बन चुका है। इस वर्ष भी, जब विधायक कैलाश आचार्य, चेयरमैन गौरव श्रीवास्तव और पावर ग्रिड के निदेशक शिव तपस्या पासवान जैसे विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर इसका उद्घाटन किया, तो जैसे बीते 112 साल की मेहनत और समर्पण को एक नई ऊर्जा मिल गई। यह महोत्सव उस विश्वास को दर्शाता है कि हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं और हम अपने अतीत को कितनी शिद्दत से संजो कर रखते हैं। इस अवसर पर मौजूद जनसैलाब देखकर हर कोई कह उठा कि कजरी वाकई चकिया के लोगों के दिलों में बसती है।
जब सुरों ने मन मोह लिया
इस प्रतियोगिता में पूर्वांचल और बिहार से आए कलाकारों ने कजरी को एक नया आयाम दिया। “मान जा कहनवा सजनवा“ और “चहुंदिशी पानी पानी कइलेस ना“ जैसे विषयों पर आधारित कजरियों ने श्रोताओं को एक अलग ही दुनिया में पहुँचा दिया। कलाकारों की आवाज़ में छिपी भावनाएं, उनका दर्द, उनकी ख़ुशी और उनका प्रेम हर किसी के दिल को छू गया। बबलू बावरा, शाहिद अली और रोशन अली जैसे कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से निर्णायक मंडल और दर्शकों दोनों का मन मोह लिया। प्रतियोगिता के अंत में, इन कलाकारों को मिले सम्मान ने दर्शाया कि सच्ची कला का हमेशा सम्मान होता है।
कलाकारों का सम्मान और पुराने अंदाज में नेता
महोत्सव के दौरान केवल संगीत ही नहीं, बल्कि सम्मान और सौहार्द का भी अद्भुत संगम देखने को मिला। विजेता कलाकारों को प्रमाण-पत्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। वहीं, जब सांसद छोटेलाल खरवार ने अपने पुराने अंदाज में “पिया मेंहदी लिया दा मोतीझील से, जाके साईकिल से ना“ गाया तो पूरा माहौल तालियों से गूँज उठा। यह क्षण दिखाता है कि नेता और जनता के बीच की दूरियाँ कैसे ऐसे सांस्कृतिक मंचों पर ख़त्म हो जाती हैं। यह महोत्सव सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का एक प्रयास है। यह संदेश देता है कि आज भी हम अपनी जड़ों से जुड़े हैं और अपने लोकगीतों, अपनी संस्कृति पर हमें गर्व है।
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