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पूर्वांचल की खास पहचान है कालानमक धान, बोले पद्मश्री डॉ. रामचेत चौधरी
Gorakhpur: आज के परिदृश्य में हमें आवश्यकता है इस कि ऐसे गौरवशाली धरोहर को आधुनिक संदर्भ में...
Gorakhpur: महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) के चतुर्थ स्थापना दिवस एवं युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला के पांचवें दिन कृषि संकाय द्वारा एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया।
व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक, खाद्य एवं कृषि संगठन संयुक्त राष्ट्र के पूर्व समन्वयक पद्मश्री डॉ. रामचेत चौधरी ने पूर्वांचल में कालानमक चावल के योगदान की विकास यात्रा विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह धान न केवल पूर्वांचल की खास पहचान है, बल्कि किसानों की आजीविका और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का माध्यम भी है। उन्होंने किसानों और युवाओं से आह्वान किया कि इस धरोहर फसल को आधुनिक तकनीक और विपणन के साथ जोड़कर वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने जाने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि प्रदेश की वर्तमान सरकार से मिल रहे प्रोत्साहन से कालानमक धान की खेती के रकबे में निरंतर विस्तार हो रहा है और इसकी वैश्विक मांग बढ़ रही है। डॉ. चौधरी ने कालानमक चावल के औषधीय गुणों की भी विस्तार से जानकारी दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए फैकल्टी ऑफ फार्मेसी, उद्यमिता एवं स्टार्टअप के डीन डॉ. मधुसूदन पुरोहित ने कहा कि कालानमक चावल हमारी परंपरा और वैज्ञानिकता दोनों का अद्भुत संगम है। इसके संवर्धन से क्षेत्र की कृषि और अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल सकती है। आगतों का स्वागत करते हुए कृषि संकाय के अधिष्ठाता डॉ. विमल कुमार दूबे ने बताया कि यह व्याख्यानमाला युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित की जा रही है। दोनों महापुरुषों का जीवन चरित्र व उनके द्वारा समाज के लिए दिए गए योगदान, सदैव स्मरणीय हैं।
संतुलित जीवनशैली की प्रेरणा देती है भारतीय ज्ञान परंपरा : डॉ. प्रदीप
सीएसआईआर केंद्रीय औषधीय अनुसंधान संस्थान लखनऊ के पूर्व उप-निदेशक (वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक) डॉ. प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि वैदिक काल का वैज्ञानिक ज्ञान भारत को सांस्कृतिक पहचान के साथ साथ इसके आध्यात्मिक पक्ष को भी वैश्विक पटल पर स्थापित कर मानवीय सभ्यता को संतुलित जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा प्रदान करता है। आज के परिदृश्य में हमें आवश्यकता है इस कि ऐसे गौरवशाली धरोहर को आधुनिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित करें। उसे संरक्षित, संवर्धित और प्रचारित करें ताकि ये ज्ञान परंपरा आनेवाली पीढ़ियों के लिए एक वरदान बन सके।
डॉ. श्रीवास्तव मंगलवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) में स्वास्थ्य एवं जीवन विज्ञान संकाय द्वारा आयोजित “भारतीय ज्ञान परंपरा : एक महान विरासत” विषयक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। यह आयोजन एमजीयूजी के चौथे स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में और ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी की स्मृति में संयोजित किया गया था। डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि भारत, एक प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा वाला देश है जिसकी जड़ें हजारों वर्षों पूर्व की सभ्यताओं में गहराई तक फैली हुई हैं। यहां की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली न केवल भारत की सांस्कृतिक आत्मा की प्रतीक है, बल्कि यह मानवता को प्रकृति, जीवन और ब्रह्मांड के साथ संतुलन में रहने की शिक्षा भी देती है। यह ज्ञान जीवन के हर क्षेत्र में चिकित्सा, गणित, खगोल विज्ञान, वास्तुकला, संगीत, नृत्य, कृषि, योग, आध्यात्म और सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त है।
विद्यार्थियों द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा से सम्बंधित जिज्ञासाओं एवं प्रश्नों का उत्तर देते हुए डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर के विद्यार्थियों का भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति उत्साह इस विश्विद्यालय के संस्थापकों परिकल्पना के अनुरूप है। व्याख्यान की अध्यक्षता कर रहें आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य प्रो. गिरिधर वेदांतम ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में विज्ञान और आयुर्वेद का अद्भुत समन्वय रहा है। संपूर्ण विश्व ने भारत के औषधियों से निरोगी काया का मूल रहस्य सीखा है। स्वास्थ्य एवं जीवन विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. सुनील कुमार सिंह ने वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ प्रदीप कुमार श्रीवास्तव जी का अभिनंदन करते हुए कहा कि डॉ. प्रदीप कुमार श्रीवास्तव विश्व के पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने साइंटून नामक एक अनूठी अवधारणा प्रस्तुत कर एक नवाचार विकसित किया है।
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