कोविड के बाद बच्चों और युवाओं में मोबाइल निर्भरता से बढ़ा मानसिक स्वास्थ्य का खतरा: डॉ. कुँवर अखिलेश

Hardoi News: कोविड के बाद मोबाइल और इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर कर रही है।

Pulkit Sharma
Published on: 4 Nov 2025 4:33 PM IST
कोविड के बाद बच्चों और युवाओं में मोबाइल निर्भरता से बढ़ा मानसिक स्वास्थ्य का खतरा: डॉ. कुँवर अखिलेश
X

Hardoi News

Hardoi News: हरदोई मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विशेषज्ञ एवं असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुँवर अखिलेश ने बताया कि कोविड महामारी के बाद समाज में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई गंभीर बदलाव देखने को मिले हैं। उन्होंने कहा कि कोविड काल के दौरान बच्चों और युवाओं का जीवनशैली पूरी तरह बदल गई थी। स्कूल बंद होने और घरों में लंबे समय तक रहने के कारण बच्चों की निर्भरता मोबाइल और इंटरनेट पर अत्यधिक बढ़ गई, जिसके परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं।डॉ. अखिलेश के अनुसार, महामारी के समय अभिभावकों ने बच्चों को व्यस्त रखने और रोने-धोने से बचाने के लिए मोबाइल फोन दे दिए।

इससे बच्चे डिजिटल दुनिया के आदी हो गए, जो उनकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक असर डाल रही है। उन्होंने कहा कि अब बहुत से बच्चे बाहर खेलने की बजाय स्क्रीन पर वीडियो देखने या गेम खेलने में घंटों बिता देते हैं। यह प्रवृत्ति बच्चों के सामाजिक, शारीरिक और मानसिक विकास को रोक रही है।उन्होंने चेताया कि बच्चों का मस्तिष्क सात साल की उम्र तक तेजी से विकसित होता है। ऐसे में अगर इस अवस्था में बच्चों को मोबाइल और टीवी जैसी स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने की आदत पड़ जाए, तो उनके दिमाग का प्राकृतिक विकास बाधित होता है। इससे बच्चे चिड़चिड़े, एकाकी और कमजोर मानसिकता वाले बन सकते हैं। डॉ. अखिलेश ने कहा कि माता-पिता को बच्चों को समय देना चाहिए, उन्हें घर से बाहर खेलने, दौड़ने और खेलकूद की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

लोगों में मानसिक बीमारियों को लेकर जागरूकता आई है

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ कुंवर अखिलेश ने बताया कि पहले भी मानसिक रोगी हुआ करते थे, लेकिन वे इलाज के लिए डॉक्टर के पास नहीं पहुंचते थे। अब लोगों में मानसिक बीमारियों को लेकर जागरूकता आई है, और लोग चिकित्सकीय परामर्श लेने लगे हैं। हालांकि, उन्होंने चिंता जताई कि अब युवाओं में एंजाइटी (चिंता), डिप्रेशन (अवसाद) जैसी समस्याएं पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ी हैं।डॉ. अखिलेश के मुताबिक, इसके पीछे की मुख्य वजहें हैं – बढ़ता प्रतिस्पर्धा का माहौल, पढ़ाई और नौकरी का तनाव, परिवार की अपेक्षाएं और सोशल मीडिया पर तुलना की प्रवृत्ति।

उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी दिनचर्या को संतुलित रखना चाहिए। देर रात तक मोबाइल और लैपटॉप का उपयोग करने की आदत मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से हानिकारक है। नींद में कमी और स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी दिमाग में ऐसे रसायनों का संतुलन बिगाड़ देती है जो मन को शांत रखते हैं।उन्होंने सलाह दी कि युवाओं को अपनी दिनचर्या में योग, ध्यान और नियमित व्यायाम को शामिल करना चाहिए। इससे न केवल तनाव कम होता है, बल्कि मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि पढ़ाई और आराम का समय तय होना चाहिए तथा अनावश्यक मोबाइल उपयोग से दूरी बनाए रखनी चाहिए।

डॉ. अखिलेश ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को यदि लगातार उदासी, बेचैनी, नींद की समस्या या सामाजिक दूरी महसूस हो रही हो, तो उसे मानसिक रोग विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श लेना चाहिए। इलाज योग्य होने के बावजूद लोग शर्म या झिझक के कारण डॉक्टर के पास नहीं जाते, जिससे स्थिति गंभीर हो जाती है।अंत में उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में सोच बदलने की आवश्यकता है। यह शारीरिक बीमारी की तरह ही एक सामान्य स्थिति है, जिसका समय पर इलाज हो सकता है। बच्चों और युवाओं दोनों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए परिवार का सहयोग, संवाद और प्यार सबसे बड़ी दवा है।

1 / 6
Your Score0/ 6
Shalini singh

Shalini singh

Mail ID - [email protected]

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!