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Jaunpur News: जौनपुर को यमदग्निपुरम नाम देने की माँग, उपमुख्यमंत्री को सौंपा गया ज्ञापन, जानिये जमदग्निपुरम के बारे में सब कुछ

Jaunpur News: अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा ने जिले का नाम "यमदग्निपुरम" रखने की मांग को लेकर उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को लखनऊ स्थित उनके आवास पर ज्ञापन सौंपा।

Nilesh Singh
Published on: 16 July 2025 5:58 PM IST
Jaunpur News: जौनपुर को यमदग्निपुरम नाम देने की माँग, उपमुख्यमंत्री को सौंपा गया ज्ञापन, जानिये जमदग्निपुरम के बारे में सब कुछ
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Jaunpur News: उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक जिला जौनपुर इन दिनों नाम बदलने की मांग को लेकर सुर्खियों में है। अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा ने जिले का नाम "यमदग्निपुरम" रखने की मांग को लेकर उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को लखनऊ स्थित उनके आवास पर ज्ञापन सौंपा। संगठन का कहना है कि यह नाम भगवान परशुराम और उनके पिता महर्षि यमदग्नि की स्मृति में जिले की सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करेगा।

क्या था जौनपुर का प्राचीन नाम?

ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जौनपुर का प्राचीन नाम "जमदग्निपुर" या "यमदग्निपुरम" था, जो महर्षि जमदग्नि (यमदग्नि) से जुड़ा हुआ है। यही महर्षि परशुराम के पिता माने जाते हैं। उनका आश्रम यहीं क्षेत्र में होने का उल्लेख पुराणों और स्थानीय जनश्रुतियों में मिलता है। इसी ऐतिहासिक आधार पर नाम परिवर्तन की मांग की जा रही है। ऐसा माना जाता है कि पहले यह क्षेत्र ऋषि भूमि हुआ करता था। यहां तमाम गुरुकुल हुआ करते थे जिससे इस क्षेत्र की ख्याति शिक्षानगरी के रूप में थी। इन गुरुकुलों में ऋषि, मुनि ही निवास करते थे जो शिक्षा यानी ज्ञान का प्रकाश फैलाया करते थे। ऐसी मान्यता है महर्षि दधिचि भी जौनपुर में ही रहते थे, हिन्दू ग्रंथों के अनुसार देवराज इंद्र जब वृतासुर नामक राक्षस को पराजित नहीं कर पाए थे तब यहीं महर्षि दधिचि ने अपनी अस्थियाँ इंद्र को दीं जिससे विश्वकर्मा ने वज्र का निर्माण किया और वृतासुर का अंत हुआ। कुछ लोग इस स्थान को नीमसार या नैमिषारण्य के करीब मानते हैं। महर्षि जमदग्नि के कारण यहाँ का नाम जमदग्निपुरी हुआ जो बाद में बदलकर जौनपुर हो गया।

यह भी कहा जाता है कि जौनपुर प्राचीन समय में देवनागरी नाम का पवित्र स्थान था जो अपने शिक्षा,कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध था। सर्वप्रथम इस स्थान पर कन्नौज के शासक ने आक्रमण करके इसे अपने आधीन कर इसका नाम यवनपुर रखा। बाद में इसपर तुगलक शासक फिरोज शाह तुगलक ने कब्जा किया और 13वीं सदी में अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुगलक की याद में इसका नाम जौनपुर किया, जिसका वास्तविक नाम जौना खां था। 1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में विकसित किया। उनके काल में यहां अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ। और यह शहर मुस्लिम संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी जाना गया। आज भी यहां की अनेक खूबसूरत इमारतें अपने अतीत की कहानियां कहती प्रतीत होती हैं। वर्तमान में यह शहर चमेली के तेल, तम्बाकू की पत्तियों, इमरती और स्वीटमीट के लिए लिए प्रसिद्ध है।

किसने सौंपा ज्ञापन और क्या हुई चर्चा?

अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, जौनपुर इकाई के जिला अध्यक्ष डॉ. अतुल कुमार दुबे ने संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व राज्य मंत्री डॉ. के.सी. पांडेय की अगुवाई में यह ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर भगवान परशुराम की प्रतिमा, उनका प्रतीक ‘फरसा’ भेंटकर सम्मानस्वरूप उपमुख्यमंत्री का माल्यार्पण भी किया गया। ज्ञापन में न सिर्फ जिले का नाम बदलने की माँग थी, बल्कि ब्राह्मण समाज से जुड़ी अन्य सामाजिक और प्रशासनिक समस्याओं को भी उठाया गया।

उपस्थित पदाधिकारी

ज्ञापन सौंपते समय संगठन के अन्य पदाधिकारी भी मौजूद रहे: सुरेंद्र नाथ तिवारी (प्राचार्य), नागेंद्र मिश्र वशिष्ठ, श्याम मिश्र (ब्लॉक अध्यक्ष, महराजगंज)। जिला अध्यक्ष डॉ. अतुल दुबे ने बताया कि वह लगातार पत्राचार और ज्ञापनों के माध्यम से सरकार से यह मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जौनपुर की ऐतिहासिक पहचान को फिर से स्थापित किया जाना चाहिए।

क्यों है यह मांग महत्वपूर्ण?

यह मांग केवल नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जिले की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का सम्मान जुड़ा हुआ है। यमदग्नि और परशुराम जैसे ऋषि परंपरा के प्रतीक व्यक्तित्वों की स्मृति को जिलास्तरीय पहचान देना, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने जैसा होगा।


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