Kushinagar News: धर्म समधा देवी: मल्ल राजाओं की कुलदेवी, पूरी होती हर मुराद

Kushinagar News: कुशीनगर के रामकोला स्थित धर्म समधा देवी मंदिर मल्ल राजाओं की कुलदेवी का पावन स्थल है। यहां भक्तों की हर सच्ची मुराद होती है पूरी।

Mohan Suryavanshi
Published on: 26 Sept 2025 10:10 AM IST
Kushinagar News: धर्म समधा देवी: मल्ल राजाओं की कुलदेवी, पूरी होती हर मुराद
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Kushinagar News: जनपद के रामकोला नगर पंचायत क्षेत्र स्थित धर्म समधा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिकता और लोकमान्यता के कारण भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। यहां यह मान्यता है कि मां धर्म समधा देवी से सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि यहां वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता हैं।

मल्ल राजाओं की कुलदेवी

धर्म समधा देवी को कुसम्ही गणराज्य के मल्ल राजा मदन पाल सिंह की कुलदेवी माना जाता है। मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा और चरण पादुका स्थापित है। ऐसा विश्वास है कि जब मां यहां प्रकट हुईं, तो उनके चरणों का निशान यहीं रह गया। वर्तमान में मंदिर भव्य रूप में विद्यमान है और दिन-प्रतिदिन इसकी ख्याति दूर-दराज तक फैलती जा रही है।नवरात्र के दिनों में मंदिर परिसर में भारी भीड़ उमड़ती है। भक्तगण मां के दरबार में नारियल, चुनरी और कढ़ाई चढ़ाकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। शक्ति पीठ के समक्ष हर महीने विवाह संस्कार भी संपन्न होते हैं।

पोखरे में स्थित सती माता मंदिर का महत्व

धर्म समधा देवी मंदिर के पास स्थित पोखरे के बीच सती माता का मंदिर भी विशेष आस्था का केंद्र है। यहां पत्थर पर उत्कीर्ण शिलालेख मंदिर के प्राचीन इतिहास को दर्शाता है। मान्यता है कि कुसम्ही के राजा मदन पाल सिंह की पुत्री, विवाह उपरांत पति की असामयिक मृत्यु के कारण सती हो गई थीं।

शेर की कथा से जुड़ा है इतिहास

किंवदंती के अनुसार, राजकुमारी की जन्मकुंडली में विवाह दोष बताया गया था। पुरोहितों ने राजा को सलाह दी कि विवाह मंडप चारों ओर पोखरों से घिरे एक सुंदर भवन में बने, ताकि कोई अनिष्ट न हो सके।विवाह उपरांत कोहबर के समय, हजामिन ने मजाक में उबटन की मैल को ‘शेर’ कह दिया। उसके मुंह से 'शेर' शब्द निकलते ही मैल का पिंड सचमुच शेर बन गया और राजकुमार पर हमला कर उसकी जान ले ली।दुखी राजकुमारी पति का शव लेकर चिता पर बैठ गईं और सती हो गईं। तब से यह स्थान धर्म समधा देवी और सती माता की पावन स्थली के रूप में प्रसिद्ध है।आज भी श्रद्धालु मां धर्म समधा और सती माता के दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने आते हैं। मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मां का आह्वान करता है, उसकी झोली कभी खाली नहीं लौटती।

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