Akhilesh Azam: अखिलेश के सियासी पान में आज़म बने चूना, सपा की मुश्किलें

Akhilesh Azam: सपा में आज़म खान की भूमिका पर उलझन, अखिलेश यादव संतुलन साधने में कर रहे मशक्कत

Naved Shikoh
Published on: 26 Sept 2025 3:13 PM IST
Akhilesh Yadav Azam Khan
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Akhilesh Yadav Azam Khan News ( image from Social Media)

Akhilesh Azam: सपा मुखिया अखिलेश यादव को आज़म खान पान में चूना जैसे लगने लगे हैं। सपा के सियासी पान में पार्टी के फाउंडर मेंबर मोहम्मद आजम ख़ान की अहमियत की मात्रा को संतुलित रखना अखिलेश यादव के लिए बड़ी चुनौती है। संस्थापक सदस्य को राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पीठ दिखा दी तो मुश्किल और ज्यादा गले लगाए दिखे तो ज्यादा मुश्किल। इनसे रिश्ता कम करना भी ठीक नही, ज्यादा रिश्ता निभाया तो भी मुश्किल।

आजम को इग्नोर किया तो मुसलमान भड़क जाएंगे और यदि अखिलेश यादव ने आजम को सिर आंखों पर उठाया तो हिन्दू समाज में समाजवादी पार्टी को आजम वादी- नमाज वादी पार्टी बताकर ध्रुवीकरण से बीस-अस्सी का बंटवारा करने में भाजपा को मदद मिलेगी।

खासतौर से नाजुक मिजाज़ लखनवी लोगों के लिए पान वाले पान में चूना लगाने में बहुत एहतियात बरतते हैं। चूना ज्यादा लग गया तो मुंह कट जाएगा, कम लगा तो पान का जायका ही नहीं रहेगा। इसलिए अलग से पुड़िया पर चूना लगा कर खतरे से बचा जाता है।

सपा मुखिया का सपा संस्थापक के प्रति रवैया देखकर लगता है कि

अखिलेश यादव आजम खान को पान का चूना मानते हैं। समाजवादियों के सियासी पान में चूना ज्यादा लगा तो मुसीबत कम लगा तो भी मुश्किल। इसलिए अखिलेश आज़म से रिश्तों में बहुत एहतियात बरतते दिखते हैं।

ऐसे में कभी कभी सोशल मीडिया पर मुस्लिम समाज में ऐसे गिले,शिकवे-शिकायतें भी झलकती हैं। जैसे - अमेठी के मोहम्मद आरिफ के सारस को वनविभाग ने चिड़िया में भेज दिया तो अखिलेश यादव कई बार सारस से मिलने गए पर आजम खान से जेल में मिलने नहीं गए। जेल से बाहर हुए तो भी उन्हें लेने नहीं पहुंचे। तो क्या सपा मुखिया की नजर में आजम खान की अहमियत सारस से भी कम है !

दरअसल भाजपा की ये ख्वाहिश रहती है की सपा में आजम खान को खूब अहमियत दी जाए,ताकि आज़म की कट्टर मुस्लिम परस्त कथित छवि की पिच पर भाजपा ध्रुवीकरण के चौके-छक्के लगाकर बीस-अस्सी के अंतर में विजय प्राप्त करती रहे। विरोधी की ऐसे रणनीति को विफल करने के लिए अखिलेश यादव आजम खान से थोड़ी दूरी बनाते हैं तो भाजपाई ही मुस्लिम समाज में संदेह देने की कोशिश करते हैं कि प्रदेश के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे खां साहब को अखिलेश नजरंदाज करते हैं। जाहिर सी बात है इस तरह के आरोप जब सच्चाई की कसौटी पर दिखाई देते हैं तो सपा के भरोसे के दीवाने मुस्लिम समाज में अपनी मनपसंद पार्टी के प्रति प्यार, विश्वास और एकजुटता में ढीलापन आता है।

पिछले एक दशक से अधिक समय से भाजपा की सफलता का नरैटिव बहुसंख्यक समाज में सेट होने के बाद जो मोहम्मद आजम खान समाजवादी पार्टी के लिए वरदान थे वो अभिशाप बन गए हैं। भाजपा उनके नाम को तुष्टिकरण के तानों और ध्रुवीकरण का जादू चलाने का सबसे बड़े हथियार के रूप में लेती है। और इस बात में भी दम है कि योगी-मोदी के दौर वाली भाजपा की सियासत को ध्रुवीकरण सार्वाधिक रास आया और केंद्र और राज्यों में पार्टी का जनाधार बढ़ा। खासकर यूपी जहां जाति की राजनीति की जड़ें गहरी थीं,भाजपा ने योगी आदित्यनाथ के हिन्दुत्व के चेहरे से यहां सनातनी एकता स्थापित कर जातियों के बिखराव पर काबू पाकर दूसरी बार सत्ता हासिल की। करीब पौने चार दशक बाद यहां किसी मुख्यमंत्री ने दूसरा कार्यकाल निभाया। इस सफलता में बटोगे तो कटोगे, बीस-अस्सी, श्मशान -कब्रिस्तान, मिट्टी में मिला देंगे... जैसे नारे हिन्दुत्व की राजनीतिक फसल को खाद्य-पानी देते रहे। आजम खां के जेल जाने कै बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मौके की सियासी नजाकत को देखते हुए ध्रुवीकरण से बचने के लिए और मुस्लिम परस्ती जैसे आरोपों से बचने के लिए फूंक-फूंक कर कदम रखे। पीडीए की रणनीति में अधिक से अधिक गैर यादव पिछड़ी जातियों और दलित समाज का भरोसा जीतने पर अधिक बल दिया।

एम वाई के दायरे से निकलकर बड़ा दायरा बनाने की रणनीति पर काम करने वाले अखिलेश यादव को 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा लाभ मिला। लोकसभा में 37 सीटें जीतकर सपा के पीडीए का आत्मविश्वास बढ़ा। और अखिलेश मुस्लिम -यादव से अधिक दलित-पिछड़ों के उत्थान के मुद्दों पर ज्यादा बल देने लगे।

गौरतलब है कि यूपी की आबादी की करीब बीस फीसद हिस्सेदारी वाला मुस्लिम समाज जब भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती देने वाले दल के साथ एकजुट होता दिखाई देता है तो भाजपा अस्सी-बीस वाले ध्रुवीकरण के राजनीतिक कौशल की धार तेज करने लगती है। अतीत में सपा-बसपा जैसे यूपी के क्षेत्रीय दल मुस्लिम अल्पसंख्क समाज के भरपूर समर्थन और हिन्दू समाज की जातियों की राजनीति से सत्ता में काबिज होते रहे। दलितों-पिछड़ों के साथ मुस्लिम समाज का कॉम्बो जनाधार बनाने की कोशिश करने वाले क्षेत्रीय दलों को चुनौती देने के लिए भाजपा ने धर्म की राजनीति का पलटवार कर कई बार पासा पलटा। खासकर योगी-मोदी के दौर में हिन्दू समाज की बिखरी हुई जातियों को एकजुट करने में भाजपा ने निरंतर सफलता हासिल की।

भाजपा ने क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस के विरुद्ध हिन्दू समाज के ये भी कान भरे कि कथित धर्मनिरपेक्ष दल हिन्दुओं में फूट डालो और राज करो की नीति अपनाते हैं। बहुसंख्यकों के बंटवारे के वोटों के साथ अल्पसंख्यकों का थोक समर्थन पाकर बनी सरकारों ने मुस्लिम परस्ती की और हिन्दुओं को नजरंदाज किया गया। भाजपा ने सपा जैसे दलों पर तुष्टिकरण के ऐसे आरोपों को बहुसंख्यकों के दिलो-दिमाग में बैठाकर ध्रुवीकरण में सफलता हासिल कर दो बार लगातार यूपी में प्रचंड बहुमत की सरकारें बनाई।

करीब एक दशक से भाजपा ने ध्रुवीकरण के लिए विपक्ष के बारे में ना सिर्फ मुस्लिम परस्ती का नरैटिव सैट किया बल्कि विपक्ष को सनातन विरोधी बताया। कुछ चुनावी नतीजों से स्पष्ट हुआ कि भाजपा द्वारा विपक्षियों पर ऐसे आरोप बहुसंख्यक समाज के दिलों दिमाग में उतर गए।

ध्रुवीकरण के माहौल की काट के लिए अखिलेश यादव मुस्लिम नेताओं या मुस्लिम समाज की एक्स्ट्रा केयर महसूस कराने जैसी गतिविधियों से बचते हैं।

मुस्लिम समाज की नुमाइंदगी करने वाले सबसे बड़े सियासी मुस्लिम चेहरे आजम खान को पीडीए के पान में चूना जैसा मानने लगे हैं। भले ही मुस्लिम समाज सपा का सबसे बड़ा वोट बैंक हो पर अखिलेश दिखावे की राजनीति में मुस्लिम प्रतीकों को चूने की तरह कम इस्तेमाल कर समाजवादी पान को संतुलित, स्वादिष्ट और टिकाऊ बनाने की राह पर हैं।

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