हैं इंसान पर बोलते नतीजे गवाह कि वो "भगवान"

Lucknow News: जब एक डॉक्टर ने घर में बेटे होने की ज़िम्मेदारी के साथ - साथ अपने डॉक्टर होने का कर्तव्य भी निभाया।

Shubham Pratap Singh
Published on: 21 Aug 2025 10:58 PM IST (Updated on: 22 Aug 2025 12:25 AM IST)
Health News
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Dr. Bjaj

Lucknow news: मानव धर्म में पुण्य प्राप्ति का सर्वोच्च कर्तव्य माना गया है जीवन रक्षा। और यदि ये मंत्र किसी की इच्छा का अनिवार्य हिस्सा हो तो उसे तो भगवान की कहेंगे न। भले ही वो इंसान हो। ऐसे ही दुर्लभ शख्स का नाम है डॉ अंकुर बजाज का, जो इन दिनों सुर्खियों में छाए हैं। कारण ये कि इन्होंने दायित्व और धर्म के बीच छिड़े अन्तर्द्वन्द में दायित्व को तवज्जो दी। और विधाता कि ऐसी कृपा हुई कि इनकी कोशिशें चमत्कारिक तरीके से कामयाब भी हो गईं।

धरती पर ईश्वर का दूसरा रूप चिकित्सक को माना जाता है। हालांकि वैभव विलासिता हासिल करने की होड़ में इस पेशे के अधिकांश चेहरों को लेकर आम धारणा खराब हो चुकी है। बावजूद इसके जाग्रत अंतरात्मा वाले कुछ डाक्टर जटिल, असाध्य रोग-चोट वाले मरीजों के लिए प्राणदायक बने हुए हैं। ऐसे लोगों में जो नाम अचानक से वाहवाही का केंद्र बन गया है वो है डॉ अंकुर बजाज का। लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से संबद्ध डॉ बजाज की मां गंभीर हृदय रोग की चपेट में थीं। उनकी सर्जरी करके वाल्व में तीन स्टंट डाला गया था। मां के पास बैठकर वह उन्हें पकड़े बैठे थे। अपने भाई के साथ उनकी सेवा में जुटे हुए थे। इतने में डॉ बजाज के पास जन्माष्टमी के दिन इमरजेंसी काल आई। बताया गया कि लखनऊ के गोमती नगर अंतर्गत विपुल खंड निवासी 3 साल का मासूम कार्तिक छत पर खेलते समय लगभग 20 फीट नीचे लोहे की ग्र‍िल पर ग‍िर गया। नुकीली लोहे की ग्र‍िल स‍िर के आरपार हो गई है। इसके बाद जब वह ट्रामा पहुंचे तो बच्चे की हालत गंभीर थी। फिर बच्चे की हालत को देखते हुए पहले ग्रिल को काटने का फैसला किया गया। बाहर से वेल्‍डर आया। बड़ी सावधानी के साथ ग्र‍िल काटा। इससे पहले पर‍िजन मासूम को लेकर प्राइवेट अस्‍पताल गये थे। जहां 15 लाख रुपए का बजट बता द‍िया गया ​था।

आधी रात पहुंचे केजीएमयू ट्रामा सेंटर

कार्तिक के परिजन आधी रात न‍िराश होकर आखरी उम्मीद लिये केजीएमयू पहुंचे। नन्हे सिर को चीरती हुई लोहे की छड़ किसी निर्दयी तकदीर की तरह आर-पार हो चुकी थी। मौजूद डॉक्टरों ने जब यह देखा, तो कुछ क्षण के लिए सन्नाटा छा गया। इस बीच डॉ. अंकुर बजाज को काल गई। मां की चिंता और पेशेगत दायित्वबोध में उलझे डॉ बजाज ने कुछ देर में ही बच्चे को बचाने के लिए अपना सारा अनुभव, कौशल झोंक देने का निर्णय ले लिया। इसके बाद वह इस साहस के सहारे ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश करते हैं। बच्चे की जिंदगी उनके सामने है, जैसे कोई दीपक आंधी में कांप रहा है और उन्हें उसे बुझने से बचाना है। लेक‍िन डॉक्‍टर अंकुर के ल‍िए यह आसान नहीं था। ऑपरेशन शुरू हुआ और तीन घंटे से ज्‍यादा चली जटिल सर्जरी। हर पल जोखिम से भरा, हर क्षण धैर्य की परीक्षा। और जब आखिरकार वह लोहे की छड़ को बच्चे के शरीर से अलग कर दिया गया।डॉ. अंकुर बजाज और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि डॉक्टर सिर्फ शरीर नहीं जोड़ते, वे टूटते हुए रिश्तों को, डगमगाते हुए भविष्य को, और डूबते हुए भरोसे को भी बचा लेते हैं। डॉक्‍टर डॉ. बीके ओझा, डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन और डॉ. बसु के अलावा एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने असभंव को संभव कर द‍िखाया, वह भी 25 हजार के खर्चे पर। आज जब हम डॉक्टरों को महज फीस और समय से जोड़कर देखते हैं, तब हमें याद रखना चाहिए कि कहीं कोई डॉक्टर ऐसे ही किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है।

मां का पैर पकड़े बैठा था जब नन्ही सी जान को बचाने के लिए आया था फोन

डॉ. बजाज ने न्यूजट्रैक से बात करते हुए कहा कि जब मेरे पास कार्तिक के लिए ट्रामा सेंटर से फोन आया तब मैं मां के पास उनके पैर पकड़े बैठा था। जैसे एक मरीज के पास उसका तीमारदार बैठता है। उस वक्त में डॉक्टर नहीं एक परिजन के रूप में बैठा था। बाहर भाई बैठे थे। मां के पैर बार बार हिल रहे थे, जिससे उन्हें दर्द हो रहा था। इस वजह से मैं उनके पैर पकड़े बैठा था ताकि वह पैर कम हिलाएं और उन्हें दर्द कम हो। इस बीच जब मेरे पास ट्रामा से फोन आया तो मुझे मासूम के बारे में फोन पर बताया गया। अब दिल में कई विचार थे। लेकिन, एक विचार यह भी था की मैं डॉक्टर क्यों बनना चाहता था। इसके बाद मैने ट्रामा पहुंचकर उसकी सर्जरी करने का फैसला किया। भाई को मां के पास बैठाया। खुद ट्रामा के लिए निकल गया। वहां पहुंचा तो बच्चे की हालत देखा फिर समझ आया की जो भी करना है जल्द करना होगा। सबसे पहले उसके सिर से आरपार हुई ग्रिल को कांटने का उपाय खोजा। गैस कटर से ग्रिल काटनी थी उसे बाहर से आधी रात बुलाया गया। जिसके लिए उसने पैसे तक लेने से साफ इंकार कर दिया। आधी रात हो चुकी थी उसने हम सबकी सलाह लेते हुए बड़ी सावधानी से ग्रिल काटा। इसके बाद फिर सर्जरी की शुरूआत की और बच्चे की जान बचाई अभी उसकी हालत स्थिर हो रही है और उम्मीद है जल्द ठीक होकर घर जाएगा।

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