TRENDING TAGS :
मूर्ति में भगवान का वास कैसे होता है? स्वामी कैलाशानंद गिरी ने बताया रहस्य
Swami Kailashanand Giri: घर में रखी भगवान की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती क्योंकि इसके बाद नियमों का सख्ती से पालन करना आवश्यक होता है।
Swami Kailashanand Giri (SOCIAL MEDIA)
Swami Kailashanand Giri: स्वामी कैलाशानंद गिरी के अनुसार हिंदू धर्म में मूर्ति स्थापना के बाद प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान करना जरूरी होता है। यह एक विशेष वैदिक प्रक्रिया है जिसके जरिए मूर्ति में देवता का वास माना जाता है और उसे पवित्र तथा पूजनीय समझा जाता है। इस अनुष्ठान के दौरान मंत्रों का जाप, अभिषेक, हवन और अन्य धार्मिक कर्मकांड किए जाते हैं।
घर में रखी भगवान की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती क्योंकि इसके बाद नियमों का सख्ती से पालन करना आवश्यक होता है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो धार्मिक दोष लगने की संभावना होती है।
भगवान मूर्ति में कैसे आते हैं?
प्राण प्रतिष्ठा संस्कार का अर्थ है देवी-देवता के प्राणों का आव्हान करके किसी मूर्ति को जीवंत रूप देना। जब यह अनुष्ठान पूरा होता है, तो माना जाता है कि उस मूर्ति में ईश्वर की शक्ति स्थापित हो जाती है। इस प्रक्रिया के लिए वेद मंत्रों का विशेष महत्व होता है। स्वामी कैलाशानंद गिरी बताते हैं कि "ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँसमिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो३म्प्रतिष्ठ।।" के माध्यम से भगवान को मूर्ति में स्थापित किया जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा के बाद नियम
एक बार मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के बाद पुजारी और भक्तों को कुछ धार्मिक नियमों का पालन करना चाहिए। इनमें ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन करना, शुद्ध आचरण रखना और मूर्ति के सामने नकारात्मक बातों से बचना शामिल है। साथ ही, नियमित पूजा और आरती करना भी जरूरी है।
प्राण प्रतिष्ठा केवल मंदिरों में ही की जाती है क्योंकि इसमें अनुशासन और पवित्रता का पालन करना आवश्यक होता है। यह केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो मूर्ति को जीवंत और पूजनीय बनाती है।
यह जानकारी मान्यताओं पर आधारित है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!