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अद्भुत! बड़े मंगल को हनुमान मंदिर में पारिजात फूल ने भक्तों का मोहा मन, अपलक निहारने को हुए मजबूर
Aliganj Hanuman Temple Parijat Tree: अलीगंज स्थित हनुमान मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। लेकिन इस बार भक्त भगवान के चरणों में शीश झुकाने के साथ मंदिर परिसर में लगे पारिजात वृक्ष को भी निहारते नजर आए।
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Aliganj Hanuman Temple Parijat Tree: जेठ माह के दूसरे मंगलवार को अलीगंज स्थित हनुमान मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। लेकिन इस बार भक्त भगवान के चरणों में शीश झुकाने के साथ मंदिर परिसर में लगे पारिजात वृक्ष को भी निहारते नजर आए। वजह भी खास थी क्योंकि हनुमान मंदिर परिसर में लगे पारिजात वृक्ष पर फूल खिला हुआ है जोकि श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
वहीं जेठ माह के दूसरे बड़े मंगलवार के दिन इस पुष्प के खिलने को श्रद्धालु आस्था से भी जोड़ रहे हैं। मंदिर परिसर में पारिजात वृक्ष पर खिले सफेद रंग का पुष्प सभी श्रद्धालुओं के मन को मोह रहा है। श्रद्धालु भी पुष्प को अपलक निहार रहे हैं और भक्तिवश होकर वृक्ष पर जल भी चढ़ा रहे हैं।
नए हनुमान मंदिर के सचिव राजेश पांडेय का कहना है कि विभिन्न जगहों से लोग पारिजात पुष्प को देखने के लिए यहां आते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए एक लॉन बनाया गया है। वे इस वृक्ष पर जल चढ़ाते हैं क्योंकि इस वृक्ष के प्राचीन महत्व है। जिसके चलते श्रद्धालुओं की इस वृक्ष में बहुत आस्था है।
कब आते हैं पारिजात वृक्ष पर फूल
आमतौर पर पारिजात वृक्ष पर फूल सितंबर से लेकर दिसंबर माह आते हैं। इस दौरान वृक्ष में नयी पत्तियाँ भी निकलती हैं। इस अलौकिक वृक्ष की खासियत यह है कि इसका बीज नहीं होता है। वह साल में लगभग छह माह सूखा हुआ दिखायी देता है और फिर स्वयं ही हरा-भरा हो जाता है। पारिजात का फूल सफेद रंग का होता है और यह रात के समय खिलता है। सूर्य उदय होने के बाद इस फूल का रंग सुनहरा हो जाता है। पारिजात के फूल में पांच पंखुडी होती है और यह बेहद कम संख्या में ही खिलता है। इस वृक्ष को लेकर यह भी मान्यता है कि पारिजात की शाखाएं कभी सूखती या फिर टूटती नहीं हैं बल्कि वे मूल तने में ही सिकुड़ जाती हैं और फिर लुप्त हो जाती हैं।
पारिजात वृक्ष दर्शन का महत्व
हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार पारिजात वृक्ष को देवस्थान माना जाता है। इसके कल्पवृक्ष भी कहा जाता है और इसके दर्शन मात्र से अलौकिक सुख की अनुभूति होती है। पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। समुद्र मंथन के दौरान निकले पारिजात वृक्ष को देवराज इंद्रदेव ने अपनी वाटिका में रोपा था। हरिवंशपुराण में भी इस वृक्ष का विस्तार से वर्णन मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पारिजात वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था। यह भी मान्यता है कि पारिजात वृक्ष के नीचे बैठने या फिर इसकी परिक्रमा करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। पारिजात वृक्ष की महिमा को कुछ इस तरह वर्णित किया गया हैः
कल्प वृक्ष सा वृक्ष नहि, पारिजात सा धाम।
आवे नर विश्वास करि, पूर्ण होई सब काम।।
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