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लखनऊ की सड़क पर हर दिन बिछ रही हैं मौतें! लोहिया पथ पर बसें रौंद रही ज़िंदगियाँ, 'मूकदर्शक' बना बैठा है प्रशासन

Lucknow News: लोहिया पथ पर आजकल हर रोज़ बसों की कतारें मौत का जाल बिछा रही हैं। दिन ढलते ही यहां हॉर्न की आवाज़ें नहीं, बल्कि ऐम्बुलेंस की सायरन गूंजती है। हर सुबह ऑफिस जाने वालों की भीड़ होती है, लेकिन शाम होते-होते किसी न किसी का खून सड़क पर बह चुका होता है।

Hemendra Tripathi
Published on: 10 July 2025 7:46 PM IST (Updated on: 10 July 2025 8:07 PM IST)
लखनऊ की सड़क पर हर दिन बिछ रही हैं मौतें! लोहिया पथ पर बसें रौंद रही ज़िंदगियाँ, मूकदर्शक बना बैठा है प्रशासन
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Lucknow News: लखनऊ, जो कभी तहज़ीब और सुर्खाब के पंखों के लिए जाना जाता था, अब राजधानी की एक सड़क मौत की पहचान बन गई है। बात हो रही है लोहिया पथ की वो शानदार और चौड़ी सड़क जो VIP मूवमेंट से लेकर आम आदमी की आवाजाही तक की जीवनरेखा मानी जाती है। लेकिन इसी लोहिया पथ पर आजकल हर रोज़ बसों की कतारें मौत का जाल बिछा रही हैं। दिन ढलते ही यहां हॉर्न की आवाज़ें नहीं, बल्कि ऐम्बुलेंस की सायरन गूंजती है। हर सुबह ऑफिस जाने वालों की भीड़ होती है, लेकिन शाम होते-होते किसी न किसी का खून सड़क पर बह चुका होता है। और यह सब कुछ होते हुए भी, प्रशासन गहरी नींद में सोया है। ना कोई ट्रैफिक नियंत्रण, ना बसों की संख्या पर निगरानी और ना ही स्पीड ब्रेकर या अलर्ट सिस्टम। सवाल ये है कि लोहिया पथ पर चलती बसें कब तक लोगों की जिंदगी लीलती रहेंगी?

सड़क पर टूटी वो कलम, जो वर्षों से सच लिखती रही

लोहिया पथ पर टूटी वो कलम, जो सालों से सिस्टम की नींदें उड़ाती थी। तेज रफ्तार बस ने छीन ली पत्रकार दिलीप सिन्हा की सांसें, जेब से निकली सिर्फ दो चीज़ें – प्रेस कार्ड और वो पुरानी कलम, जो हमेशा सत्ता से सवाल करती थी। लखनऊ की उसी सड़क पर, जिसकी अराजकता को वो बार-बार उजागर करते थे, गुरुवार को उनकी अपनी ही जान चली गई। जियामऊ के पास एक बेकाबू बस ने उनकी स्कूटी को रौंद दिया। जब पुलिस पहुंची, तो जेब में मिली वो कलम आज सन्नाटा लिख रही थी। पत्रकारिता जगत स्तब्ध है। जिसने सिस्टम को बेनकाब किया, उसे खुद उसी सिस्टम ने लील लिया।

मौत का हाइवे, ज़िम्मेदारी का 'जीरो' लेवल

आप किसी भी दिन सुबह 8 से 11 बजे या शाम 5 से 8 बजे लोहिया पथ पर खड़े हो जाइए। आपको लगेगा जैसे आप किसी बस अड्डे के बीचों-बीच खड़े हैं, न कि एक शहरी सड़क पर। बसें रुकती हैं, चिल्ला-चिल्लाकर कंडक्टर सवारियां बुलाते हैं, ड्राइवर बेधड़क कट मारते हैं और पैदल चलने वाला अपने जान को लेकर खुद ही जिम्मेदार होता है। इतनी भीड़ और अव्यवस्था के बीच, ट्रैफिक पुलिस का नामोनिशान नहीं। और जो हो भी, वो एक कोने में खड़ा रहकर सिर्फ 'देख' रहा होता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि बीते 3 महीनों में कम से कम 20 से ज़्यादा हादसे हो चुके हैं, जिनमें छात्र, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल हैं। कई की मौके पर मौत हो गई, और कुछ जिंदगी और मौत के बीच अस्पतालों में झूल रहे हैं।

अफसरों की चुप्पी या मिलीभगत?

प्रशासन का रवैया इस पूरी समस्या को और घातक बना रहा है। हर हादसे के बाद एक प्रेस रिलीज़ जारी होती है, जिसमें "जांच के आदेश", "सुरक्षा बढ़ाने की योजना" और "ड्राइवरों पर सख्ती" जैसे घिसे-पिटे जुमले होते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि जमीन पर कुछ भी नहीं बदलता। बसें आज भी तेज रफ्तार से रौंदती जा रही हैं। CCTV कैमरे हैं, पर चालान नहीं। ट्रैफिक सिग्नल हैं, लेकिन उन्हें मानने वाला कोई नहीं। कई लोगों का आरोप है कि बस मालिकों और अफसरों के बीच 'अदृश्य गठजोड़' है, जो इस अराजकता को बनाए रखता है। और जब तक ये गठजोड़ टूटेगा नहीं, लोहिया पथ पर लाशों का सिलसिला चलता रहेगा।

कब जागेगा सिस्टम?

शहर की जनता अब सवाल पूछ रही हैक्या लखनऊ में जीवन की कीमत शून्य हो चुकी है? क्या सड़कों को सिर्फ बस ऑपरेटर्स की कमाई के लिए छोड़ा गया है? और सबसे अहम क्या किसी VIP की गाड़ी इस रास्ते से गुजरती तो हालात ऐसे ही होते? लोहिया पथ अब सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि लखनऊ के प्रशासन की विफलता का प्रतीक बन चुका है। जब तक जिम्मेदार अफसर और सिस्टम नींद से नहीं जागते, तब तक यह मौत की पटरी ऐसे ही चलती रहेगी हर दिन किसी मां का लाल छिनता रहेगा, किसी बहन की चीखें सड़क पर गूंजती रहेंगी। और शायद तब तक, जब तक लोहिया पथ का नाम बदलकर 'लाश पथ' नहीं रख दिया जाए।

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Hemendra Tripathi

Hemendra Tripathi

Lucknow Reporter

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