लखनऊ में युवा शोधार्थी सम्मेलन: मानविकी का महत्त्व और अध्ययन में नई दिशा और समकालीन प्रवृत्तियों पर हुई चर्चा

प्रो. ओंकार नाथ उपाध्याय ने यह भी स्पष्ट किया कि पाश्चात्य और भारतीय इतिहास दृष्टिकोण में एक बड़ा अंतर है। जहां पाश्चात्य दृष्टिकोण इतिहास को केवल तिथियों और घटनाओं के रूप में देखता है।

Virat Sharma
Published on: 31 July 2025 7:08 PM IST
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Lucknow Today News: अंग्रेजी और विदेशी भाषाएं विश्वविद्यालय क्षेत्रीय परिसर, लखनऊ की ओर से आयोजित दो दिवसीय युवा शोधार्थी सम्मेलन मानविकी अध्ययन भाषा, साहित्य और अंग्रेजी भाषा शिक्षा में प्रवृत्तियां गुरूवार को सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में पीएच.डी. शोधार्थियों ने समकालीन और प्रासंगिक शोध विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। सम्मेलन में समाज भाषाविज्ञान, बहुभाषिकता, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, अनुवाद अध्ययन, स्वदेशी साहित्य, सबऑल्टर्न विमर्श, शिक्षाशास्त्र, और डिजिटल मानविकी जैसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई। यह आयोजन न केवल वैश्विक, बल्कि स्थानीय अकादमिक चिंताओं के परिप्रेक्ष्य में एक प्रभावी और संवादात्मक मंच बनकर उभरा।

मानविकी के महत्व को किया गया रेखांकित

समापन सत्र में प्रो. रजनीश अरोड़ा, निदेशक, लखनऊ क्षेत्रीय परिसर ने कहा कि मानविकी आज के समय में कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है। उन्होंने युवा शोधार्थियों के काम की सराहना करते हुए कहा कि वे ज्ञान के उपनिवेशीकरण को तोड़ रहे हैं और भारतीय मूल्यों के आधार पर शोध कर वैश्विक संवाद से जुड़े हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चा शोध केवल उत्तर खोजने में नहीं, बल्कि सही प्रश्न पूछने में निहित होता है।

एक सांस्कृतिक सेतु का रूप

समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. ओंकार नाथ उपाध्याय, अध्यक्ष, अंग्रेज़ी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषाएँ विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने की। अपने संबोधन में उन्होंने भारतीय शास्त्रीय और समकालीन साहित्य का अनुवाद" विषय पर विचार साझा करते हुए कहा कि अनुवाद केवल भाषाई प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक सेतु है, जो भारतीय साहित्य को वैश्विक पाठकों से जोड़ता है। उन्होंने वेद, उपनिषद, रामचरितमानस और महाभारत जैसे महान ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा कि इनका अनुवाद केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्ध वाहक के रूप में किया जाना चाहिए।

इतिहास और अनुवाद पर विमर्श

प्रो. ओंकार नाथ उपाध्याय ने यह भी स्पष्ट किया कि पाश्चात्य और भारतीय इतिहास दृष्टिकोण में एक बड़ा अंतर है। जहां पाश्चात्य दृष्टिकोण इतिहास को केवल तिथियों और घटनाओं के रूप में देखता है, वहीं भारतीय दृष्टिकोण में यह नैतिक, दार्शनिक और कथा तत्वों का समावेश करता है। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे अनुवाद को रचनात्मक और वैचारिक हस्तक्षेप के रूप में देखें, जो भारतीय विचारों को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत कर सकता है।

समापन और आयोजन की सराहना

सत्र के दौरान संकाय सदस्यों और प्रतिभागियों ने सम्मेलन की अंतर्विषयक प्रकृति और प्रस्तुत शोध पत्रों की अकादमिक गुणवत्ता की सराहना की। यह सम्मेलन प्रो. रजनीश अरोड़ा के नेतृत्व में आयोजित हुआ, जिसमें डॉ. श्याम बाबू, डॉ. विजया और डॉ. जी. रेनुका देवी का समन्वय रहा। इस दो दिवसीय आयोजन ने संस्कृति-संवेदनशीलता और शोध की सामाजिक प्रासंगिकता के प्रति एक नई प्रतिबद्धता को उजागर किया।

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