Mathura News: करवाचौथ का व्रत महिलाएं नहीं रखतीं, 200 साल पुरानी सती के श्राप से जुड़ी है यह कहानी

Mathura News: करीब 200 साल पुरानी सती के श्राप से जुड़ी है यह अनोखी परंपरा, सुरीर की महिलाएं आज भी करवाचौथ और अहोई अष्टमी का व्रत नहीं रखतीं।

Amit Sharma
Published on: 10 Oct 2025 6:03 PM IST (Updated on: 10 Oct 2025 6:06 PM IST)
This story is connected with the curse of 200 years old Sati
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करवाचौथ का व्रत महिलाएं नहीं रखतीं, 200 साल पुरानी सती के श्राप से जुड़ी है यह कहानी (Photo- Social Media)

Mathura News: आधुनिक दौर में भले ही लोग चांद तक पहुंच गए हों, लेकिन मथुरा जनपद के कस्बा सुरीर में आज भी एक ऐसी अनोखी परंपरा निभाई जा रही है जो श्रद्धा और आस्था से जुड़ी है। कस्बे के मुहल्ला वघा में रहने वाली महिलाएं आज भी करवाचौथ और अहोई अष्टमी जैसे सुहाग पर्व नहीं मनातीं।

यह है पूरी कहानी

इस प्रथा के पीछे लगभग 200 वर्ष पुरानी एक सती का श्राप जुड़ा हुआ माना जाता है। बताया जाता है कि करीब दो शताब्दियां पहले नौहझील क्षेत्र के रामनगला गांव का एक ब्राह्मण युवक गौना कराकर अपनी पत्नी को भैंसा बुग्गी से सुरीर ले जा रहा था। रास्ते में कुछ ठाकुरों के साथ विवाद होने पर युवक की हत्या कर दी गई। पति की मौत देखकर पत्नी ने दुख में वहीं सती होकर मुहल्ले के लोगों को श्राप दे दिया। कहा जाता है कि इसके बाद कई नवविवाहिताओं के पति असमय काल के गाल में समा गए, जिससे गांव में भय और शोक का माहौल बन गया।

श्राप से भयभीत होकर स्थानीय लोगों ने तब से ही यह संकल्प ले लिया कि वे करवाचौथ और अहोई अष्टमी के व्रत नहीं रखेंगे। यही नहीं, मुहल्ले की महिलाएं सोलह श्रृंगार भी नहीं करतीं।

मुहल्ले की 104 वर्षीय सुनहरी देवी बताती हैं कि आज भी महिलाएं करवाचौथ के दिन अपने पति की दीर्घायु की कामना तो करती हैं, लेकिन व्रत नहीं रखतीं। वहीं, विवाहिता रीता सिंह और सपना देवी कहती हैं कि शादी के बाद जब पहली बार करवाचौथ न मनाने की बात पता चली, तो उन्हें आश्चर्य और पीड़ा दोनों हुई, मगर परंपरा के आगे वे झुक गईं।

पुरानी परंपरा को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं

स्थानीय महिला बताती हैं कि अब लोग इसे श्राप नहीं बल्कि सती माता का आशीर्वाद मानते हैं, परंतु पुरानी परंपरा को तोड़ने की हिम्मत आज भी किसी में नहीं है। सुरीर में सती माता का एक मंदिर भी स्थित है, जहां विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर सभी जातियों के लोग जाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। वहीं, रामनगला गांव के लोग आज भी सुरीर में खाना-पीना तक नहीं करते, सती माता की मान्यता के प्रति अपनी श्रद्धा बनाए रखते हैं।

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