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Muzaffarnagar News: कांवड़ यात्रा: दुकानों पर नेम प्लेट अनिवार्य होनी चाहिए – बीजेपी नेता विक्रम सैनी
Muzaffarnagar News: बीजेपी नेता विक्रम सैनी ने कहा, “कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों, ढाबों और होटलों पर मालिक की नेम प्लेट तो अनिवार्य रूप से लगनी ही चाहिए।
कांवड़ यात्रा: दुकानों पर नेम प्लेट अनिवार्य होनी चाहिए – बीजेपी नेता विक्रम सैनी (Photo- Newstrack)
Muzaffarnagar News: सावन मास की पवित्र कांवड़ यात्रा जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों, रेस्टोरेंट और ढाबों पर नेम प्लेट लगाने का मुद्दा एक बार फिर गर्माता दिख रहा है।
योग साधना आश्रम के महंत यशवीर जी महाराज पहले ही इस संबंध में सक्रिय हो चुके हैं। उनकी अगुवाई में करीब 5000 युवाओं की टीम तैयार की जा रही है जो कांवड़ यात्रा के दौरान मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों पर नेम प्लेट की निगरानी करेगी। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी के फायरब्रांड नेता और खतौली के पूर्व विधायक विक्रम सैनी ने भी इस मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय रखी है।
विक्रम सैनी की दो टूक: नेम प्लेट तो लगानी ही पड़ेगी
बीजेपी नेता विक्रम सैनी ने कहा, “कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों, ढाबों और होटलों पर मालिक की नेम प्लेट तो अनिवार्य रूप से लगनी ही चाहिए। इसके साथ ही वहां काम करने वाले हलवाइयों और रसोइयों की सूची भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित की जानी चाहिए। यह सब शाकाहारी भोजन की शुद्धता और पारदर्शिता के लिए जरूरी है।”
उन्होंने आगे कहा कि दुकानदारों को बवाल होने से पहले ही अपनी समझ से नेम प्लेट लगाने का काम करना चाहिए। “यह हिंदुओं का पर्व है। कांवड़िए हरिद्वार से व्रत रखकर गंगाजल लाते हैं। किसी का धर्म या ईमान भ्रष्ट न हो, यह सभी की जिम्मेदारी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो प्रशासन अपनी कार्रवाई करेगा ही क्योंकि बाबा योगी ऊपर बैठे हैं,” सैनी ने अपने अंदाज में चेताया।
पिछली कांवड़ यात्रा और सुप्रीम कोर्ट का आदेश
गौरतलब है कि पिछली कांवड़ यात्रा में भी दुकानों पर नेम प्लेट लगाने का मुद्दा खूब चर्चा में रहा था। योगी सरकार ने तब इसे समर्थन दिया था, मगर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। अब देखना यह होगा कि इस वर्ष यात्रा के दौरान सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इस पर अमल होता है या नहीं।
नेम प्लेट पर सैनी का तर्क
विक्रम सैनी ने कहा, “जो ढाबा या होटल है, वहां नेम प्लेट होनी ही चाहिए। मालिक की नेम प्लेट, हलवाई और रसोइयों की सूची होनी चाहिए कि कौन खाना बना रहा है। यह क्यों जरूरी है? ताकि पता चले कि शाकाहारी भोजन बन रहा है या नहीं। एक महीना सेवा कर लो, कहीं और काम कर लो, क्यों अंडे-मुर्गी बना रहे हो इस दौरान? किसी का ईमान न डिगे, धर्म न भ्रष्ट हो, यही चिंता होनी चाहिए। और अगर नहीं माने तो प्रशासन कार्रवाई करेगा ही। नेम प्लेट लगाना सभी की जिम्मेदारी है।”
कांवड़ यात्रा के दौरान नेम प्लेट का मुद्दा एक बार फिर संवेदनशील बन गया है। जहां एक ओर धार्मिक भावनाओं की दुहाई दी जा रही है, वहीं कानूनी और संवैधानिक दायरे पर भी नजर रखने की जरूरत है। आने वाले दिनों में प्रशासन, न्यायपालिका और समाज की प्रतिक्रिया इस पर क्या रहती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
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