NCERT Syllabus in UP: यूपी के बच्चों को मिलेगी ‘अपने गांव-शहर’ से जुड़ी पढ़ाई, कितना रंग लाएगा एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में हुआ ये बदलाव

NCERT Syllabus Change in UP: नए पाठ्यक्रम में सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब किताबों में उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक तत्वों को प्रमुखता दी गई है।

Jyotsna Singh
Published on: 23 July 2025 10:24 AM IST
NCERT Syllabus
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NCERT Syllabus (Image Credit-Social Media)

NCERT Syllabus: उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की कक्षाएं अब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि उनमें बच्चों को अपने आसपास की संस्कृति, भाषा और परंपराओं का भी सीधा अहसास होगा। राज्य सरकार ने इस दिशा में एक बड़ी पहल करते हुए कक्षा 3 और 4 के लिए एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को स्थानीय संदर्भों के अनुसार अनुकूलित करने का फैसला किया है। यह कदम न केवल बच्चों की पढ़ाई को और दिलचस्प बनाएगा, बल्कि उन्हें अपने राज्य की विरासत और सामाजिक सरोकारों से भी जोड़ने का काम करेगा। नई शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों के अनुरूप लिया गया यह निर्णय प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

शिक्षा नीति में इस बदलाव के पीछे की मुख्य वजह यह है कि, शिक्षा तभी सार्थक होती है जब वह बच्चों के जीवन और परिवेश से सीधे जुड़ सके।

एनसीईआरटी में स्थानीय स्पर्श की जरूरत क्यों पड़ी

शिक्षा तभी सार्थक होती है जब वह विद्यार्थी के परिवेश से जुड़ी हो। उत्तर प्रदेश जैसे विविधता से भरे राज्य में, जहां अलग‑अलग क्षेत्रों में भाषा, संस्कृति और सामाजिक परंपराएं अलग हैं, वहां परंपरागत पाठ्यक्रम बच्चों के जीवन अनुभवों से मेल नहीं खाता था। यही कारण है कि राज्य सरकार ने महसूस किया कि अगर पढ़ाई को बच्चों के आसपास के वातावरण से जोड़ा जाए, तो वह न केवल आसानी से समझ पाएंगे, बल्कि उनके मन में जिज्ञासा और रुचि भी बढ़ेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने भी इस बात पर जोर दिया है कि शिक्षा स्थानीय और बहुभाषी होनी चाहिए, जिससे बच्चों में न केवल अकादमिक क्षमता विकसित हो, बल्कि सामाजिक समझ भी गहरी हो।

कैसे तैयार हुआ ‘यूपी‑टच’ वाला नया पाठ्यक्रम

इस पहल की शुरुआत बेहद योजनाबद्ध ढंग से हुई। सबसे पहले कक्षा 1 और 2 के लिए एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को स्थानीय दृष्टिकोण से तैयार किया गया, जिसे बच्चों और शिक्षकों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। इस सफलता के बाद कक्षा 3 के लिए भी यह प्रयोग लागू किया गया। राज्य शैक्षिक संस्थान प्रयागराज (SIE) ने इस कार्य में अहम भूमिका निभाई। विशेषज्ञ शिक्षकों, विषय विशेषज्ञों और भाषा के जानकारों के साथ मिलकर पाठ्य पुस्तकों को नया रूप दिया गया। जिसमें न केवल भाषा को स्थानीय रूप में पेश किया गया, बल्कि विषयवस्तु में भी स्थानीय संदर्भ और सांस्कृतिक झलकियां जोड़ी गईं।

नए पाठ्यक्रम में क्या‑क्या बदला और कैसे हुआ बदलाव

नए पाठ्यक्रम में सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब किताबों में उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक तत्वों को प्रमुखता दी गई है। हिंदी की किताब ‘वीणा‑1’ में अब ऐसी कहानियां और पाठ शामिल किए गए हैं, जिनसे बच्चे सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश के महत्व और उसकी विविधता से जुड़ सकें। उदाहरण के लिए, पंचतंत्र की पारंपरिक कहानियों की जगह 'वाराणसी की यात्रा' जैसे पाठ शामिल किए गए हैं, जो बच्चों को अपने राज्य की विरासत से परिचित कराते हैं। गणित की किताबों में भी स्थानीय उदाहरणों के जरिये सवाल‑जवाब शामिल किए गए हैं, ताकि बच्चे उन्हें अपने दैनिक जीवन से जोड़कर समझ सकें। पर्यावरण अध्ययन की पुस्तकों में आसपास के भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को उजागर किया गया है, जिससे बच्चे अपने गांव, शहर और समाज को समझने के साथ ही वैज्ञानिक सोच भी विकसित कर सकें।

किताबों का वितरण और स्कूलों में क्रियान्वयन का तरीका

राज्य सरकार ने कक्षा 3 के लिए यह नया पाठ्यक्रम 2024‑25 शैक्षणिक सत्र से लागू कर दिया है। इसके तहत करीब 1.5 लाख से अधिक सरकारी स्कूलों में नई किताबें भेजी गई हैं। शुरुआत में लगभग 9 लाख किताबें जिलों को भेजी गईं, जिनका वितरण तेजी से स्कूल स्तर तक किया गया। सरकारी योजना के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि हर विद्यार्थी तक समय पर किताब पहुंचे और शिक्षक भी इन पुस्तकों के अनुरूप शिक्षण कार्य करें। इस प्रक्रिया में ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक निगरानी की व्यवस्था भी की गई है। जिससे किसी भी प्रकार की देरी या समस्या का तुरंत समाधान हो सके।

बच्चों को जोड़ेगा अपने समाज और संस्कृति से

नया पाठ्यक्रम सिर्फ पढ़ाई‑लिखाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मकसद बच्चों को अपने समाज और संस्कृति से जोड़ना है। ‘वाराणसी की यात्रा’ जैसे पाठों से बच्चों को अपने प्रदेश के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की जानकारी तो मिलेगी ही, साथ ही उनमें सांस्कृतिक गौरव की भावना भी जगेगी। इससे बच्चों में आत्मीय जुड़ाव की भावना विकसित होगी और वे अपने परिवेश को समझने के साथ उसमें सकारात्मक बदलाव लाने की सोच भी रख सकेंगे। यह प्रक्रिया उनके सामाजिक और मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाएगी।

इसके क्या होंगे मुख्य फायदे और क्या हैं संभावित चुनौतियां

इस कदम से बच्चों को पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ेगी, वे अपने आसपास के माहौल से जुड़कर शिक्षा को बेहतर तरीके से आत्मसात कर सकेंगे। स्थानीय भाषा, संस्कृति और परंपरा के जुड़ाव से बच्चों में न केवल अकादमिक क्षमता बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का भाव भी उत्पन्न होगा। हालांकि इस पहल में कुछ चुनौतियां भी हैं, जैसे शिक्षकों को नए पाठ्यक्रम के अनुरूप प्रशिक्षित करना, समय पर सभी स्कूलों में किताबों की उपलब्धता सुनिश्चित करना और अन्य विषयों में भी इसी तरह के बदलाव को लागू करना। अंग्रेजी और उर्दू माध्यम में भी यह बदलाव लाना होगा, ताकि सभी बच्चों को समान रूप से लाभ मिल सके।

भविष्य की दिशा और राज्य सरकार की योजना

राज्य सरकार की योजना है कि कक्षा 4 में भी इसी तरह का पाठ्यक्रम 2026‑27 के शैक्षणिक सत्र से लागू कर दिया जाए। इसके साथ ही आगे कक्षा 5 से 8 तक भी यह पहल चरणबद्ध तरीके से लागू की जाएगी। इसके लिए शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है और शिक्षण विधियों में नवाचार लाए जा रहे हैं। साथ ही डिजिटल संसाधनों और ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म्स का भी उपयोग किया जाएगा, ताकि बच्चों को पढ़ाई में आधुनिक तकनीक का भी लाभ मिल सके। सरकार की योजना है कि शिक्षा को पूरी तरह से बहुआयामी और समावेशी बनाया जाए, जिससे राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का स्तर और बेहतर हो सके।

यह पहल क्यों बन सकती है पूरे देश के लिए आदर्श

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और विविधतापूर्ण राज्य में इस तरह के शिक्षा मॉडल का सफल क्रियान्वयन निश्चित रूप से अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है। त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने भी इसी तरह के स्थानीय संदर्भ आधारित पाठ्यक्रम अपनाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। उत्तर प्रदेश का यह मॉडल दिखाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर तय पाठ्यक्रम में भी राज्य अपनी विशिष्ट पहचान के अनुरूप बदलाव कर सकते हैं, जिससे शिक्षा और अधिक प्रभावी और सार्थक बन सके। यह पहल नई शिक्षा नीति 2020 के विजन को जमीनी स्तर पर लागू करने का एक बेहतरीन उदाहरण बन सकती है।

शिक्षा को बनाएगा ज्यादा जीवंत और बच्चों के करीब

उत्तर प्रदेश सरकार का यह निर्णय न केवल शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाएगा, बल्कि बच्चों के सीखने के अनुभव को भी ज्यादा जीवंत, स्थानीय और प्रासंगिक बनाएगा। अब पढ़ाई सिर्फ किताबों की भाषा तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उसमें समाज, संस्कृति और स्थानीय परिवेश का भी समावेश होगा। इससे बच्चों में आत्मगौरव, सामाजिक जिम्मेदारी और जिज्ञासा बढ़ेगी, जो उन्हें न केवल एक अच्छे विद्यार्थी, बल्कि एक जागरूक नागरिक भी बनाएगी।

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