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Sonbhadra : बगैर लाइसेंस के हास्पीटल में पहुंची टीम तो चल रही थी दो महिलाओं की सर्जरी, मरीजों को शिफ्ट कर लगाया गया ताला, उठाई गई मांग-नोडल की भी तय की जाए भूमिका
Sonbhadra News: जिले स्तर पर डीएम और सीएमओ की तरफ से लगातार बगैर पंजीयन, बगैर डॉक्टर वाले अस्पतालों पर शिकंजा कसने, संबंधितों पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए जा रहे है।
Sonbhadra illegal hospital
Sonbhadra News :एक तरफ शासन के साथ ही जिले स्तर पर डीएम और सीएमओ की तरफ से लगातार बगैर पंजीयन, बगैर डॉक्टर वाले अस्पतालों पर शिकंजा कसने, संबंधितों पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए जा रहे है। वहीं, दूसरी तरह, वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग से जुड़े तेलकुड़वा-खरौंधी मार्ग पर कोन कस्बे में, धडल्ले से बगैर पजीयन अस्पताल और सर्जिकल सेंटर के संचालन ने कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं।
बुधवार को हंगामे और प्रशासन-पुलिस की सख्ती के बाद, प्राइवेट चिकित्सालयों के नोडल से जुड़ी टीम मौके पर पहुंची, तो अस्पताल के भीतर दो महिलाओं के बच्चेदानी के ऑपरेशन की जानकारी ने उनके भी होश उड़ा कर रख दिए। सीएमओ को प्रकरण की जानकारी देने के साथ ही, उनके निर्देशन में दोनों मरीजों को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने के साथ ही, संबंधित अस्पताल पर ताला जड़ दिया गया लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस मामले में नोडल की भी कोई जिम्मेदारी तय की जाएगी?
ग्रामीणों की मानें तो यह अस्पताल लंबे समय से कोन कस्बे में संचालित हो रहा था। हास्पीटल और सर्जिकल सेंटर के नाम पर, इलाके में इस अस्पताल का बड़ा नाम था। लोगों की मानें तो कई बार स्वास्थ्य महकमे के लोग भी कोन कस्बे के साथ ही, संबंधित अस्पताल पर पहुंचे लेकिन बगैर पंजीयन के अस्पताल कैसे संचालित हो रहा? इस पर किसी की नजर नहीं पड़ी। यह स्थिति तब है, जब प्रत्येक माह डीएम और सीडीओ, प्राइवेट अस्पतालों की निगरानी के लिए बनाए गए नोडल और उनसे जुड़े तंत्र की बैठक ली जाती है। हर माह किए जाने वाले निरीक्षण-कार्रवाई की रिपोर्ट भी तलब की जाती है, बावजूद बगैर पंजीयन अस्पताल कैसे और किन हालातों में संचालित हो रहा था? यह एक बड़ा सवाल तो बन ही गया है। स्वास्थ्य महकमे के साथ ही, शासन की जीरो टालरेंस नीति की भूमिका पर सवाल उठाने वाले इस घटना/प्रकरण को लेकर क्या नोडल की भी जिम्मेदारी तय की जाएगी या फिर यूं ही जिले में बगैर पंजीयन अस्पताल का संचालन और लापरवाही पूर्ण उपचार के चलते मरीजों की मौत का सिलसिला चलता रहेगा? तरह-तरह की चर्चाएं जारी है।
रक्षाबंधन पर्व पर बुझ गया कुल का दीपक, आखिर किसे माना जाए जवाबदेह:
एक अप्रशिक्षित व्यक्ति की तरफ से लगाए गए इंजेक्सन ने जहां एक घर यानी कुल का दीपक बुझा दिया। वहीं, रक्षाबंधन के महज तीन दिन पूर्व हुई इस घटना ने, तीन बहनों को उनके इकलौते भाई से हमेशा के लिए दूर कर दिया। अब वह अपनी राखी किसके हाथ में सजाएंगी, यह एक बड़ा सवाल तो है ही, इस घटना के लिए सिर्फ अस्पताल संचालकों को ही जिम्मेदार मानकर प्रकरण बंद कर दिया जाएगा या फिर सिस्टम से जुड़े किन-किन लोगों की लापरवाही और संरक्षण के चलते यह घटना घटी, इसको लेकर भी कोई कार्रवाई हो पाएगी? इस पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं।
दूसरी बार मिली है नोडल की जिम्मेदारी, नहीं उठता है फोन:
वर्तमान में प्राइवेट अस्पतालों के पंजीयन एवं झोलाछाप चिकित्सकों, बगैर पंजीयन संचालित अस्पतालों की निगरानी/कार्रवाई के लिए बनाए गए नोडल/एसीएमओ को, दूसरी बार नोडल की जिम्मेदारी सौंपी गई। पहली बार का कार्यकाल भी कई मौतों को लेकर खासा विवादित रहा था। जिला अस्पताल के पास के अस्पताल में भी इसी तरह से इंजेक्सन लगाने से एक महिला के मौत का प्रकरण सामने आया था। इस घटना में भी परिवार के लोगों ने जमकर बवाल काटा था। पीड़ित परिवार को पैसे देकर मामले को मैनेज करने का कथित वीडियो भी वायरल हुआ था। अब वहीं अस्पताल दूसरी जगह संचालित होगा लेकिन इस मामले में संबंधित अस्पताल या अस्पताल संचालक के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, यह जानकारी अब तक सामने नहीं आ सकी।
हर माह मरीजों की हो रही मौत... फिर फाइल हो जा रही क्लोज!
दूसरे कार्यकाल में, हर माह जिस तरह से मरीजों की मौत हो रही है और कार्रवाई के नाम पर पीड़ित पक्ष के पीछे हट जाने या फिर लगाए गए आरोपों से बाद में मुकर जाने का आधार बनाकर फाइलें क्लोज कर दी जा रही हैं, उसको देखते हुए सवाल तो उठाए ही जा रही है। आखिर आए दिन मौतें और उपचार में लापरवाही के बाद भी संबंधित अस्पताल-संचालक के खिलाफ कोई प्रभावी एक्शन क्यूं नहीं लिया जा रहा है, यह सवाल न केवल स्वास्थ्य महकमे की साख पर सवाल उठा रहा है कि बल्कि सरकार की जीरो टालरेंस नीति पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता नजर आने लगा है।
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