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Sonbhadra News: दुष्कर्म मामले में दो को सजा, मुख्य आरोपी को 10 वर्ष, सहयोगी को तीन वर्ष की कठोर कैद, न्यायालय ने मामले का स्वतः लिया था संज्ञान, कुछ इस तरह अपनाई गई प्रक्रिया
Sonbhadra News: सुनवाई के दौरान सामने आए तथ्यों-परिस्थतियों को देखते हुए न्यायालय ने 19 सितंबर 2023 को प्रार्थना पत्र को परिवाद के रूप में पंजीकृत किए जाने का आदेश पारित किया।
Sonbhadra News (Social Media)
Sonbhadra News: करमा थाना क्षेत्र से जुड़े दुष्कर्म के मामले में दो दोषियों को कठोर कैद की सजा सुनाई गई है। मुख्य आरोपी को 10 वर्ष के कठोर कारावास और इस वारदात में साथ देने वाले सह आरोपी को तीन वर्ष के कठोर कारावास से दंडित किया गया है। न्यायालय एएसजे-एससी/एसटी एक्ट की अदालत ने सोमवार को मामले की फाइनल सुनवाई की। अधिवक्ताओं की तरफ से दी गई दलीलों, पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों ओर गवाहों की तरफ से दोषसिद्ध पाते हुए, न्यायालय की तरफ से उपरोक्त फैसला सुनाया गया।
जानिए किस अपराध के लिए कितनी सुनाई गई सजा
पुलिस प्रवक्ता के मुताबिक मामले में धारा 323, 504, 506, 354, 376 आईपीसी और 3(2)5, व 3(2)5-ए, 3(1)ड. एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप पाया गया था। मामले में सुनवाई के बाद दोषी पाए जाने पर न्यायालय ने ऋषिकेश मिश्र पुत्र विष्णु शंकर मिश्र निवासी कसयां थाना करमा को धारा 323 आईपीसी के अपराध के लिए एक वर्ष का कारावास और एक हजार अर्थदंड, इसे अदा न करने पर एक माह का अतिरिक्त कारावास, धारा 376 आईपीसी के अपराध के लिए 10 वर्ष का सश्रम कारावास, बीस हजार अर्थदंड, इसे अदा न करने पर पांच माह का अतिरिक्त कारावास, 504 आईपीसी के अपराध के लिए एक वर्ष का कारावास, चार हजार अर्थदंड, इसे अदा न करने पर दो माह का अतिरिक्त कारावास, 506 आईपीसी के अपराध के लिए दो वर्ष का कारावास, पांच हजार अर्थदंड, इसे अदा न करने पर दो माह का अतिरिक्त कारावास, 3(2)5 एससी/एसटी एक्ट के अपराध के लिए 10 वर्ष का सश्रम कारावास, 15 हजार अर्थदंड, इसकी अदायगी न करने पर चार माह का अतिरिक्त कारावास, एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1) ड. के अपराध के लिए दो वर्ष का कारावास, पांच हजार अर्थदंड, इसकी अदायगी न करने पर दो माह के अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई गई।
वहीं, सह आरोपी प्रभाशंकर दत्त मिश्र को दोषी पाते हुए धारा 323 आईपीसी के लिए एक वर्ष कारावास, एक हजार अर्थदंड, अर्थदंड अदा न करने पर एक माह अतिरिक्त कारावास, धारा 354 आईपीसी के लिए तीन वर्ष का सश्रम कारावास, 10 हजार अर्थदंड, इसे अदा न करने तीन माह अतिरिक्त कारावास, धारा 504 आईपीसी के लिए एक वर्ष का कारावास, चार हजार अर्थदंड, इसकी अदायगी न किए जाने पर दो माह का कारावास, 506 आईपीसी के लिए दो वर्ष का कारावास, पांच हजार अर्थदंड, अर्थदंड अदा न करने पर दो माह का अतिरिक्त कारावास, एससी-एसटी एक्ट के 3(1)ड. के अपराध में दो वर्ष का कारावास, पांच हजार अर्थदंड, इसे अदा न करने पर दो माह का अतिरिक्त कारावास, धारा 3(2)5-ए एससी/एसटी एक्ट में तीन वर्ष का सश्रम कारावास, 10 हजार के अर्थदंड, इसे जमा न करने पर तीन माह का अतिरिक्त कारावास भुगतने के लिए कहा गया।
यह था आरोप, जिस पर आया न्यायालय का फैसला
करमा थाना क्षेत्र की रहने वाली एक महिला ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर आरोप लगाया था किा ऋषिकेश मिश्र और प्रमाशंकर निवासी कसया उसके प्रति बुरी नियत रखते थे। अक्सर उनका उनके घर आना-जाना परिवार के लोगों के साथ उठना-बैठना था। इसका फायदा उठाकर जब भी घर में अकेला पाते, उससे छेड़-छाड़ करते। धमकी देते। आरोप लगाया गया कि जब परिवार के लोगों ने इस पर एतराज जताया तो उनके साथ मारपीट की गई। दावा किया गया था कि 25 मई 2023 की दोपहर तीन बजे दोनों दोषी बाइक से उसके घर पहुंचे और उसे अकेला पाकर उसके साथ गलत काम किया। एतराज पर मारपीट करते हुए अश्लील हरकत की।
जानिए, मामले में कब, कौन सी प्रक्रिया बढ़ी आगे
मामले को लेकर पीड़िता की तरफ से धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया था और करमा थानाध्यक्ष को प्राथमिकी का आदेश दिए जाने की याचना की गई थी लेकिन सुनवाई के दौरान सामने आए तथ्यों-परिस्थतियों को देखते हुए न्यायालय ने 19 सितंबर 2023 को प्रार्थना पत्र को परिवाद के रूप में पंजीकृत किए जाने का आदेश पारित किया। पीड़िता और उसके गवाहों का बयान परीक्षित कराए जाने के बाद ऋषिकेश और प्रमाशंकर के खिलाफ प्रथम दृष्टया धारा-323, 504, 506, 354, 376 आईपीसी और 3(1)(म), 3(2)(अं) एससी/एसटी एक्ट के अन्तर्गत अपराध कारित किया जाना पाते हुए 12 मार्च 2024 को जरिए समन सुनवाई के लिए न्यायालय में तलब किया गया।
उन्मोचन प्रार्थना पत्र पर भी दोषियों को नहीं मिली थी कोई राहत
आरोपियों की तरफ से न्यायालय में उन्मोचन प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया। कहा गया कि पीड़िता के ससुर से जमीन संबंधी विवाद चल रहा है। उसने ससुर के बहकावे में आकर बनावटी मुकदमा दर्ज कराया है। न्यायालय ने कहा कि विधि का सुस्थापित सिद्धान्त है कि उन्मोचन प्रार्थना पत्र के निस्तारण व सुनवाई के समय मात्र विवेचना के दौरान एकत्र किये गये पदार्थ/प्रपत्रों को ही विचार में लाया जा सकता है अर्थात जो साक्ष्य एकत्रित किये गये हैं उनसे इतर किसी अन्य प्रपत्र अथवा पदार्थ को संदर्भित करके उन्मोचन प्रार्थना पत्र को निस्तारित नहीं किया जा सकता है। यह कहते हुए 18 नवंबर 2024 को उन्मोचन प्रार्थना पत्र खारिज कर, प्रकरण की सुनवाई आगे बढ़ा दी गई और सोमवार यानी 19 मई 2025 को आए फैसले में दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए, सजा सुनाई गई।
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