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Uttarakhand News: जंगलों की आग से जंग: महिलाएं बनीं हरियाली प्रहरी, सरकार ने सराहा
Uttarakhand News: गांव की हर महिला इसकी सदस्य मानी जाती है। ये समूह स्वच्छता और वन संरक्षण जैसे सामुदायिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
Uttarakhand News (Social Media image)
Uttarakhand News: गर्मियों में जैसे ही पहाड़ियों पर धूप तेज होती है, वैसे ही जंगलों से धुएं की लपटें उठने लगती हैं। कभी किसी किसान द्वारा खेत की पराली जलाने से, कभी किसी की जलाई अधबुझी बीड़ी से और कभी हरे चारे के लालच में जानबूझकर आग लगा दी जाती है। सरकार इसे रोकने का भरपूर प्रयास कर रही है और लोगों को जागरुक करने के अभियान चला रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ये भावना विकसित कर रहे हैं कि उत्तराखंड के जंगलों की रक्षा अब सिर्फ वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं रही—यह गांव की हर महिला का संकल्प है। उदाहरण के लिए कठूर गांव की महिलाएं यह करके दिखा रही हैं कि जब समुदाय जागरूक हो जाए, तो प्रकृति को भी बचाया जा सकता है। अब जरूरत है कि इस भावना को पूरे प्रदेश में फैलाने की।
महिला मंगल दल की सदस्याएं जंगलों की आग पर नजर रखने और उसे बुझाने में दिन-रात लगी हैं। चमोली में दल की एक सदस्या कहती है कि जब भी गांव के आसपास के जंगल में आग लगती है, महिलाएं सब कुछ छोड़कर, यहां तक कि अपने छोटे बच्चों को भी, आग बुझाने दौड़ पड़ती हैं। जैसे हम अपने बच्चों की चिंता करते हैं, वैसे ही जंगल भी हमारे है यह भावना विकसित हो रही है। इन्हीं जंगलों में छोटे पौधे, पक्षियों के घोंसले और वन्य जीवों के शावक पलते हैं।
महिला मंगल दल की हर महीने की 15 तारीख को बैठक होती है, जिसमें गांव वालों को जागरूक किया जाता है कि पराली न जलाएं, बीड़ी-सिगरेट से सावधान रहें और आग लगने पर सहयोग करें। जो लोग आग बुझाने में मदद नहीं करते, उन पर महिला मंगल दल जुर्माना भी लगाती है।
महिला मंगल दल क्या है?
उत्तराखंड के गांवों में ये दल 12 निर्वाचित महिलाओं का एक अनौपचारिक समूह होता है, लेकिन गांव की हर महिला इसकी सदस्य मानी जाती है। ये समूह स्वच्छता और वन संरक्षण जैसे सामुदायिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। सरकार इन दलों को हर महीने ₹4,000 की प्रोत्साहन राशि देती है।
सरकारी सराहना और नई नीति का वादा
मई 2025 में देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी महिला व युवा मंगल दलों की प्रशंसा कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि आपदा के समय ये दल गांवों में प्रथम प्रतिकारकर्ता की भूमिका निभाते हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि जल्द ही इन समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऋण सहायता नीति लाई जाएगी।
जंगलों में आग: आंकड़े चिंताजनक
वन सर्वेक्षण भारत की रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 में नवंबर से जून के बीच उत्तराखंड में 750 वनाग्नि अलर्ट जारी हुए थे, जो 2023-24 में बढ़कर 21,000 हो गए—यानी पांच साल में 28 गुना इज़ाफा।
2024 में उत्तराखंड देश में वनाग्नियों में पहले स्थान पर रहा, जबकि हिमाचल प्रदेश 24वें से 8वें स्थान पर आ गया। इसी साल, उत्तराखंड में जंगलों की आग से 12 लोगों की जान गई, जिनमें 6 वन विभाग के कर्मचारी थे।
क्यों बढ़ रहीं हैं आग की घटनाएं?
वैश्विक तापमान 2024 में पहली बार 1.5°C बढ़ा। हिमालयी क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित हो रहा है। काले कार्बन (Black Carbon) के कारण गंगोत्री ग्लेशियर के पास गर्मियों में इसका स्तर सर्दियों के मुकाबले 400 गुना ज्यादा पाया गया। ये काले कण बर्फ को गर्म कर पिघलने की गति तेज करते हैं।
जंगलों के लिए क्यों जरूरी है संरक्षण?
उत्तराखंड के चमोली जिले में 66% क्षेत्र वनाच्छादित है। यहां चीर, बुरांश, देवदार, काफल, अंगू और पांगर जैसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं। साथ ही, नंदा देवी, सतोपंथ और चौखंभा जैसे महत्वपूर्ण ग्लेशियर भी यहीं हैं।
सरकार की नई रणनीति
2024 की भयावह वनाग्नियों के बाद, राज्य सरकार ने अपनी रणनीति बदली है। अब तकनीकी समाधानों के साथ-साथ ग्राम समुदायों और स्थानीय संस्थाओं की भागीदारी पर भी जोर दिया जा रहा है, ताकि यह लड़ाई सामूहिक प्रयास बन सके।
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