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चाटुकारिता करके बुरे फंसे असीम मुनीर, चले थे ट्रंप को नोबेल प्राइज दिलाने, अब पूरा पाकिस्तान कर रहा बेइज्जत, पूरे पाक में मचा बवाल!
पाकिस्तान सरकार द्वारा डोनाल्ड ट्रंप के नाम की नोबेल शांति पुरस्कार 2026 के लिए सिफारिश के बाद देश में सियासी बवाल मच गया है। ईरान-अमेरिका हमलों के बाद ट्रंप की आलोचना तेज, नेताओं और बुद्धिजीवियों ने फैसले को बताया दुर्भाग्यपूर्ण।
Iran Israel War: जहां एक ओर इजरायल और ईरान के बीच भीषण युद्ध जारी है, वहीं पाकिस्तान में सियासी हलचल तेज हो गई है। वजह है अमेरिका और उसके पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। हाल ही में अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर किए गए हमलों के बाद पाकिस्तान में कई नेता और आम लोग नाराज नजर आ रहे हैं।दरअसल, पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप के नाम की 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफारिश की है। इस फैसले के बाद से देश में राजनीतिक विरोध तेज हो गया है।
क्यों हो रहा है विरोध?
पाकिस्तान के फील्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर की हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के तुरंत बाद अमेरिका ने ईरान के फोर्डो, इस्फहान और नतांज स्थित परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया। इसके बाद लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए कि ट्रंप को कैसे शांति का दूत माना जा सकता है।
सरकार ने की थी सिफारिश
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र नोबेल समिति को भेजा गया है, जिसमें भारत-पाकिस्तान संघर्ष के समय ट्रंप की मध्यस्थता और शांति प्रयासों का हवाला दिया गया है। मौलाना फजलुर रहमान ने सरकार से यह सिफारिश वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा, "ट्रंप का शांति का दावा झूठा साबित हुआ है। उनका नाम वापस लिया जाए।" फजल ने ट्रंप पर फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और अब ईरान पर इजरायली हमलों का समर्थन करने का भी आरोप लगाया।
अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाएं
पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन ने लिखा कि ट्रंप अब "शांति दूत" नहीं रहे। उन्होंने सरकार से सिफारिश को रद्द करने की मांग की। पीटीआई सांसद अली मुहम्मद खान ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ईरान पर अमेरिका के हमले और गाजा में इजरायली हिंसा का समर्थन ट्रंप की नीयत पर सवाल खड़ा करता है।
बुद्धिजीवियों की राय
अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह जनता की सोच को नहीं दर्शाता। लेखिका फातिमा भुट्टो और वरिष्ठ पत्रकार मारियाना बाबर ने भी सरकार की आलोचना की है और कहा है कि ट्रंप की सिफारिश पाकिस्तान की छवि को नुकसान पहुंचा रही है। अब देशभर से आवाजें उठ रही हैं कि पाकिस्तान सरकार को इस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए। बढ़ते विरोध को देखते हुए सरकार क्या रुख अपनाती है, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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