चीन ने पकड़ी अमेरिका की दुखती रग, ट्रंप को आई भारत क याद, दोस्त बनने का नया न्योता

US-China tension: चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिका को चुनौती दी। ट्रंप प्रशासन ने इसके जवाब में भारत को संभावित सहयोगी के रूप में देखा। F-35 उत्पादन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर, अमेरिका-चीन संबंधों में बढ़ा तनाव।

Harsh Srivastava
Published on: 17 Oct 2025 11:40 AM IST (Updated on: 17 Oct 2025 11:41 AM IST)
चीन ने पकड़ी अमेरिका की दुखती रग, ट्रंप को आई भारत क याद, दोस्त बनने का नया न्योता
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US-China tension: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों पर चीन ने एक बार फिर करारा प्रहार किया है। बीजिंग ने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की धमकी देकर वाशिंगटन की सबसे बड़ी रणनीतिक कमज़ोरी को निशाना बनाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की इस चाल से अमेरिका का एडवांस हथियार कार्यक्रम, खासकर F-35 लड़ाकू विमानों की उत्पादन श्रृंखला बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। इस संकट के बाद, अमेरिका एक बार फिर चीन का मुकाबला करने के लिए भारत का नाम ले रहा है।

ट्रंप प्रशासन ने पिछले महीनों में चीन के खिलाफ नए टैरिफ लगाए थे, जिसके जवाब में चीनी सरकार ने यह कड़ा कदम उठाया है। दुर्लभ मिट्टी 17 रासायनिक तत्वों का समूह है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहनों, रिन्यूएबल एनर्जी और सैन्य उपकरणों के लिए आवश्यक है। दुनिया का 80% से अधिक उत्पादन चीन के हाथों में है। ट्रंप ने हाल ही में कहा था, "चीन हमें लूट रहा है। हम दुर्लभ मिट्टी पर निर्भर नहीं रह सकते।" लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यह निर्भरता अमेरिका की रक्षा क्षमता को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकती है।

बीजिंग का नया फरमान: F-35 पर मंडराया संकट

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने पिछले सप्ताह "घोषणा संख्या 62, वर्ष 2025" नामक एक दस्तावेज़ जारी किया, जिसने ग्लोबल सप्लाई चैन में हलचल मचा दी है। इस नए नियम के अनुसार, अब किसी भी विदेशी कंपनी को ऐसे उत्पाद का निर्यात करने से पहले चीन सरकार से मंजूरी लेनी होगी, जिसमें दुर्लभ खनिजों की थोड़ी-सी भी मात्रा शामिल है। साथ ही, कंपनियों को यह भी बताना होगा कि वे इन खनिजों का उपयोग किस उद्देश्य से करने वाली हैं।

इसका सीधा असर अमेरिका के सबसे महंगे और ताकतवर लड़ाकू विमान F-35 के उत्पादन पर पड़ सकता है। यह विमान अपने इंजन, रडार और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के लिए रेयर अर्थ पर बुरी तरह निर्भर है। विशेषज्ञों के मुताबिक, एक F-35 लड़ाकू विमान में लगभग 400 किलोग्राम दुर्लभ खनिजों का इस्तेमाल होता है। लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने आशंका जताई है कि चीनी प्रतिबंध से उत्पादन में देरी हो सकती है। पेंटागन के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "यह हमारी वायुसेना की रीढ़ है। अगर सप्लाई चेन टूट गई, तो हमारी सैन्य ताकत कमजोर पड़ जाएगी।"

अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया और भारत की ओर रुख

चीन के इस कदम के बाद अमेरिका ने कड़ा रुख अपनाया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 100% शुल्क लगाने की धमकी दी है। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा, “यह चीन बनाम दुनिया है। उन्होंने ग्लोबल सप्लाई चैन और फ्री वर्ल्ड के औद्योगिक ढांचे पर तोप तान दी है।” इस संकट से निपटने के लिए, अमेरिका ने एक वैश्विक गठबंधन बनाने की ओर इशारा किया है। वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि अमेरिकी अधिकारी "हमारे यूरोपीय सहयोगियों, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत और एशियाई लोकतंत्रों के साथ बातचीत कर रहे हैं," ताकि एक व्यापक प्रतिक्रिया तैयार की जा सके। यह दिलचस्प है कि अमेरिका, जिसने भारत पर पहले 50% टैरिफ लगाया है, अब संकट के समय में उसे अपने संभावित सहयोगी के रूप में देख रहा है।

चीन की एकाधिकार वाली पकड़ और आगे की राह

दुनिया में दुर्लभ खनिज प्रसंस्करण के क्षेत्र में चीन की लगभग एकाधिकार जैसी स्थिति है। विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन दुनिया के 70% दुर्लभ धातुओं की सप्लाई नियंत्रित करता है। चीन ने वर्षों तक निवेश कर अपना प्रभुत्व कायम किया है, जो अन्य देशों से कई साल आगे है। हालांकि, चीन ने कहा है कि लाइसेंस के आवेदन नियमों के अनुसार और नागरिक उपयोग के लिए होंगे, तो उन्हें मंजूरी दी जाएगी। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने यह कदम ट्रंप-शी वार्ता से ठीक पहले उठाकर “बातचीत में बढ़त” हासिल कर ली है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देश चीन पर निर्भरता कम करने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन की बराबरी करने में उन्हें कम से कम पाँच साल लग सकते हैं।

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