Chinese कंपनियों की उड़ी नींद, अमेरिका के टैरिफ से डरकर अब दुनिया में खोज रही व्यापार का नया रास्ता, अब कौन करेगा मदद ?

USA China Trade War: अमेरिका और चीन के बीच कुछ अस्थायी समझौते जरूर हुए हैं, लेकिन चीनी एक्सपोर्टर्स को भरोसा नहीं कि यह शांति स्थायी है। यही कारण है कि चीन के कारोबारी अब अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय बाकी दुनिया को अपना नया ग्राहक और नया साझेदार मानने लगे हैं।

Harsh Srivastava
Published on: 21 May 2025 3:34 PM IST
USA China Trade War
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USA China Trade War

USA China Trade War: कुछ साल पहले तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका और चीन आपस में इतनी गहराई से जुड़ी थीं कि एक के छींकने पर दूसरे को बुखार आ जाता था। लेकिन अब वैश्विक व्यापार का चेहरा तेजी से बदल रहा है। अमेरिका और चीन के बीच चला तीखा व्यापार युद्ध, जिसने बीते वर्षों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को झकझोर कर रख दिया, अब एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुका है जहां ‘डिकपलिंग’ यानी अलगाव कोई सैद्धांतिक चर्चा नहीं, बल्कि ज़मीन पर उतरता हुआ हकीकत बनता जा रहा है। इस तनाव ने न केवल सरकारों को बल्कि कारोबारी संस्थानों को भी नए रास्ते खोजने पर मजबूर कर दिया है। अब जबकि अमेरिका और चीन के बीच कुछ अस्थायी समझौते जरूर हुए हैं, लेकिन चीनी एक्सपोर्टर्स को भरोसा नहीं कि यह शांति स्थायी है। यही कारण है कि चीन के कारोबारी अब अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय बाकी दुनिया को अपना नया ग्राहक और नया साझेदार मानने लगे हैं।

झटका गहरा, लेकिन सबक भी बड़ा

Allianz Trade द्वारा किए गए एक निजी सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस सर्वे में 4,500 निर्यातकों से बातचीत की गई, जिनमें से 95% चीनी निर्यातकों ने साफ कहा कि वे अब अमेरिका से हटकर अन्य देशों की ओर रुख कर रहे हैं या फिर ऐसा करने की योजना बना रहे हैं। यह आंकड़ा केवल व्यापारिक नीति का नहीं, बल्कि चीन की आर्थिक रणनीति के नए युग का संकेत है। यह स्पष्ट हो चुका है कि अमेरिकी बाज़ार अब भरोसेमंद नहीं रह गया है—कम से कम चीनी कारोबारियों के लिए। भले ही बीजिंग और वॉशिंगटन के बीच हाल ही में स्विट्ज़रलैंड में कुछ राहत भरे समझौते हुए हैं और टैरिफ में थोड़ी बहुत छूट दी गई है, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका में चीनी उत्पादों पर औसतन 39% का टैरिफ लागू है, जो कि ट्रंप के पहले कार्यकाल से तीन गुना ज़्यादा है। इतना भारी टैक्स सिर्फ लागत नहीं बढ़ाता, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश देता है “तुम्हारा स्वागत नहीं है।”

डिकपलिंग अब चर्चा नहीं, ज़मीनी हकीकत

सर्वे में यह भी सामने आया कि अब “डिकपलिंग” अर्थात अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक अलगाव—के संकेत केवल मीडिया के पन्नों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि कंपनियों की रणनीति में शामिल हो चुके हैं। अमेरिकी कंपनियां भी अब चीन से उत्पादन हटाने में लगी हैं, और चीनी कंपनियां अमेरिकी ग्राहकों पर निर्भरता से पीछा छुड़ा रही हैं। इसका सीधा असर 2025 में देखने को मिलेगा, जहां बहुत सी कंपनियां अपने टर्नओवर में गिरावट का अनुमान लगा रही हैं, विशेष रूप से अमेरिकी बाज़ार में। लेकिन यह नुकसान स्थायी नहीं, बल्कि संक्रमणकाल का संकेत है। कंपनियां समझ चुकी हैं कि उन्हें नया रास्ता बनाना होगा—बिना अमेरिका के।

निंगबो की बंदरगाह से निकलती नई दिशा

चीन के तटीय शहर निंगबो से एक नई लहर उठ रही है। Economist Intelligence Unit के वरिष्ठ अर्थशास्त्री टियानचेन शू की फील्ड रिपोर्ट के अनुसार, निंगबो के कारोबारी अमेरिका से व्यापारिक समझौते की खबरों के बावजूद अपनी रणनीति नहीं बदल रहे। वे “गो ग्लोबल” के रास्ते पर अडिग हैं। शंघाई के बाद निंगबो चीन का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। यहां से चीन की नई व्यावसायिक मानसिकता उभर रही है जहां सिर्फ उत्पाद नहीं, बल्कि व्यापार की सोच भी बदल रही है। चीन की कंपनियां अब दक्षिण एशिया को अपना अगला गंतव्य मान रही हैं। खासकर इंडोनेशिया में प्रोडक्शन यूनिट स्थापित करने की योजनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। हालांकि वियतनाम को लेकर मिला-जुला रुख है श्रमबल सस्ता और प्रशिक्षित है, लेकिन लागत अब वहां भी बढ़ रही है।

आर्थिक नुकसान का वैश्विक प्रभाव

यह झटका सिर्फ चीन तक सीमित नहीं है। Allianz Trade का अनुमान है कि इन व्यापारिक झगड़ों की वजह से वैश्विक निर्यात में इस साल -$305 बिलियन की गिरावट हो सकती है। यह आंकड़ा चिंताजनक है, भले ही पिछले साल वैश्विक व्यापार -$33 ट्रिलियन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा हो। इसका मतलब साफ है व्यापार युद्ध का नुकसान केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहता, इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई देती है।

भरोसे की जगह बना रहा है भय

आज की तारीख में चीनी एक्सपोर्टर किसी भी व्यापारिक समझौते को स्थायी नहीं मान रहे। जब तक अमेरिकी नीति में स्पष्टता और स्थायित्व नहीं आता, तब तक यह भरोसा नहीं लौटेगा। यही वजह है कि अमेरिका की तरफ से मिली 90 दिन की टैरिफ छूट के चलते फिलहाल शिपमेंट्स की बाढ़ आई है, लेकिन यह केवल एक फ्रंट-लोडिंग रणनीति है भविष्य का भरोसा नहीं। यह अस्थायी राहत केवल यह दिखा रही है कि कंपनियां डर में काम कर रही हैं, भरोसे में नहीं।

नया युग, नई दिशा

इस पूरी तस्वीर से जो बात उभरकर सामने आती है, वह यह है कि चीन अब केवल अमेरिकी बाजार का हिस्सा नहीं बनना चाहता, बल्कि वह खुद को एक ग्लोबल लीडर के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है। उसके एक्सपोर्टर्स अब एक या दो देशों पर नहीं, बल्कि कई देशों में पैर फैलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यह बदलाव केवल चीन के लिए नहीं, बल्कि भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम और ब्राजील जैसे देशों के लिए भी एक अवसर है—जहां चीनी निवेश और उत्पादन शिफ्ट हो सकता है। अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध ने वैश्विक व्यापार प्रणाली को झकझोर दिया है, और अब कंपनियां यह मान चुकी हैं कि स्थायित्व केवल विविधता में है। चीनी एक्सपोर्टर्स का अमेरिका से मुंह मोड़ना और बाकी दुनिया की ओर देखना सिर्फ रणनीति नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गया है। विश्व व्यापार का नया नक्शा बन रहा है, जहां कोई एक देश केंद्र नहीं रहेगा। चीन इस बदलती तस्वीर को समझ चुका है क्या बाकी दुनिया भी तैयार है?

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Harsh Srivastava

News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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