इजराइल के खिलाफ फ्रांस का बड़ा कदम! फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा, जंग के बीच नेतन्याहू और अमेरिका हो सकते हैं नाराज!

Israel-Palestine Conflict: फ्रांस ने फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने का बड़ा कदम उठाया है, जिससे इजराइल और अमेरिका नाराज हो सकते हैं। फ्रांस का यह फैसला गाजा में जारी युद्ध और मानवीय संकट के बीच आया है।

Harsh Sharma
Published on: 25 July 2025 8:23 AM IST
France takes big step against Israel Announcement recognition Palestine Netanyahu America may get angry amidst war
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France takes big step against Israel Announcement recognition Palestine Netanyahu America may get angry amidst war

Israel-Palestine Conflict: इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिका ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के फैसले की कड़ी निंदा की है। अमेरिका के विदेश मंत्री, मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा, अमेरिका संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमैनुएल मैक्रों की योजना को पूरी तरह से नकारता है। यह फैसला सिर्फ हमास के प्रचार को बढ़ावा देता है और शांति प्रक्रिया को बाधित करता है। यह 7 अक्टूबर के हमले के पीड़ितों का अपमान है।"

फ्रांस फिलिस्तीन को क्यों मान्यता दे रहा है?

मैक्रों ने यह फैसला लेते हुए कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देने की सबसे बड़ी जरूरत गाजा में चल रहे युद्ध को खत्म करना और वहां के नागरिकों को बचाना है। उन्होंने अपने आधिकारिक X अकाउंट पर लिखा, "हमारी प्राथमिकता गाजा में युद्ध को तुरंत रोकना और वहां फंसे नागरिकों को मदद पहुंचाना है।" उन्होंने यह भी कहा कि गाजा में युद्धविराम, सभी बंधकों की रिहाई, और वहां के लोगों के लिए बड़ी मानवीय सहायता की जरूरत है।

मैक्रों का दृष्टिकोण

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के अपने फैसले का कारण स्पष्ट करते हुए कहा, हमें फिलिस्तीन राज्य की स्थापना करनी चाहिए और उसकी व्यवहारिकता को सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अलावा, फिलिस्तीन के विसैन्यीकरण को स्वीकार करके और इजराइल को पूरी तरह से मान्यता देकर, हम मिडिल ईस्ट में सभी देशों की सुरक्षा में योगदान कर सकते हैं।"

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को भेजे गए एक पत्र में मैक्रों ने कहा कि फिलिस्तीनी लोगों की वैध आकांक्षाओं को पूरा करने, आतंकवाद और हिंसा को समाप्त करने, और इजराइल तथा पूरे क्षेत्र में स्थायी शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है दो-राज्य समाधान । यह समाधान फिलिस्तीन और इजराइल दोनों देशों के अस्तित्व को मान्यता देता है।

फ्रांस का यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है?

फ्रांस का यह कदम बड़ा माना जा रहा है क्योंकि गाजा पट्टी में युद्ध और मानवीय संकट बहुत बढ़ चुका है। इस संकट के बीच, फ्रांस का फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देना इजराइल पर अतिरिक्त दबाव डालेगा। अगर फ्रांस यह कदम उठाता है, तो वह फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पश्चिमी दुनिया का सबसे बड़ा देश बन जाएगा। इससे अन्य देशों को भी इस रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिल सकती है। अप्रैल में, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने घोषणा की थी कि जून में न्यूयॉर्क में सऊदी अरब के साथ सह-अध्यक्षता में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान फ्रांस फिलिस्तीन को राज्य के रूप में मान्यता देगा। हालांकि, अमेरिका के दबाव के कारण इस सम्मेलन को जुलाई के अंत तक स्थगित कर दिया गया था।

अब, मैक्रों ने कहा है, आज की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि गाजा में युद्ध तुरंत बंद हो और वहां के नागरिकों को मदद मिल सके।" उनका यह बयान गाजा में जारी इजरायली सैन्य कार्रवाई और वहां बढ़ती भुखमरी के बीच आया है, जिस पर पूरी दुनिया का गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

फ्रांस का यह कदम क्यों खास है?

फ्रांस, फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाला सात प्रमुख औद्योगिक देशों (G7) का पहला देश बन सकता है, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, जापान और इटली शामिल हैं। यह कदम इजरायल के लिए एक और बड़ा राजनयिक दबाव हो सकता है, क्योंकि इजरायल पूरी तरह से फिलिस्तीन को राज्य के रूप में मान्यता देने के खिलाफ है। यह भी स्पष्ट है कि इस फैसले से अमेरिकी प्रशासन, खासकर ट्रंप सरकार, नाराज हो सकती है, क्योंकि वह हमेशा इजरायल के साथ खड़ा रहा है और गाजा में युद्ध समाप्त करने के अपने प्रयासों को बढ़ावा दे रहा है।

फ्रांस में घरेलू तनाव

फ्रांस में यूरोप की सबसे बड़ी यहूदी और मुस्लिम आबादी है, और इजराइल-गाजा संघर्ष ने फ्रांस में घरेलू स्तर पर कई विरोध प्रदर्शन और तनाव उत्पन्न किए हैं। यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि फ्रांस का यह कदम केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर ही नहीं, बल्कि देश के अंदर भी असर डाल सकता है।

फिलिस्तीन की संघर्षपूर्ण स्थिति

फिलिस्तीनी लोग वेस्ट बैंक, पूर्वी येरुशलम और गाजा में एक स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे हैं, जो इजरायल ने 1967 के मध्यपूर्व युद्ध में अपने कब्जे में ले लिया था। इजरायल की सरकार और अधिकांश राजनीतिक वर्ग फिलिस्तीनी राज्य के खिलाफ हैं, और उनका कहना है कि फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देना, विशेष रूप से 7 अक्टूबर, 2023 के हमले के बाद, आतंकवादियों को पुरस्कार देने जैसा होगा। इजरायल ने 1967 के युद्ध के बाद पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया और इसे अपनी राजधानी के रूप में मान लिया। वेस्ट बैंक में, इजरायल ने कई बस्तियाँ बसाई हैं, जिनमें अब 5 लाख से अधिक यहूदी निवास करते हैं। वहीं, इस क्षेत्र के 30 लाख फिलिस्तीनी इजरायली सैन्य शासन के अधीन रहते हैं।

शांति वार्ता का टूटना

अंतिम गंभीर शांति वार्ता 2009 में टूटी थी, जब बेंजामिन नेतन्याहू सत्ता में लौटे थे। अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानता है कि इस संघर्ष का समाधान इजरायल और फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना में ही है। अब, फ्रांस भी इस राय को स्वीकार करते हुए फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।यह फैसला इस संघर्ष के समाधान के लिए एक और महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर बड़े बदलावों का कारण भी बन सकता है।

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