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डॉलर को भारत का 'ट्रिपल' झटका! रूस से तेल खरीदने के लिए अब युआन का इस्तेमाल, क्या खत्म होगा अमेरिकी वर्चस्व?
India Challenges Dollar: भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए अब चीनी मुद्रा युआन में भुगतान करना शुरू कर दिया है, जो डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
India Challenges Dollar: हाल ही में एक महत्वपूर्ण खबर सामने आई कि भारत अब रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए चीनी मुद्रा युआन का इस्तेमाल कर रहा है। इसका मतलब यह है कि रूस से तेल खरीदते वक्त भुगतान अमेरिकी डॉलर में नहीं, बल्कि चीनी मुद्रा युआन में हो रहा है। यह कदम डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि, भारत द्वारा युआन में किए जाने वाले भुगतान का हिस्सा पूरी डील के मुकाबले कम है, फिर भी यह भारत की ओर से पेमेंट सिस्टम में बदलाव की ओर इशारा करता है। इस कदम से यह साफ होता है कि भारत, चीन और रूस ने बिना कोई ब्रिक्स करेंसी बनाए, संयुक्त रूप से डॉलर की ताकत को चुनौती देना शुरू कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की बात करें तो वर्तमान में एक युआन की कीमत लगभग 12.34 भारतीय रुपये है। भारत का यह कदम भले ही छोटा हो, लेकिन इसके दूरगामी भू-राजनीतिक असर हो सकते हैं और यह एक स्पष्ट संदेश देता है। रूस के उप-प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने भी पुष्टि की है कि भारत अब भी मुख्य रूप से रूसी मुद्रा रूबल में भुगतान करता है, लेकिन युआन का उपयोग भी बढ़ता जा रहा है। यह कदम भारत, चीन और रूस के बीच त्रिकोणीय गठबंधन को और मजबूत करता है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 'डॉलर डिप्लोमेसी' को एक गंभीर चुनौती पेश कर रहा है।
"Investing Live" नामक वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने हाल ही में दो से तीन रूसी तेल कार्गो के लिए युआन में भुगतान किया है। यह कदम 2023 के बाद के बदलावों का संकेत देता है, जब भारत और चीन के रिश्तों में तनाव के कारण सरकारी रिफाइनरियों ने युआन में भुगतान करना बंद कर दिया था, जबकि निजी रिफाइनरियों ने इसे जारी रखा था। भारत द्वारा फिर से चीनी मुद्रा युआन में भुगतान शुरू करना इस बात का संकेत है कि भारत और चीन के रिश्तों में सुधार हो रहा है, और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग के संकेत मिल रहे हैं।
ट्रंप की चेतावनी का असर
भारत का यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान से जुड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) को एक नई मुद्रा बनाने या डॉलर के विकल्प पर विचार करने पर सख्त चेतावनी दी थी। ट्रंप ने 30 नवंबर 2024 को एक पोस्ट में लिखा था, "ब्रिक्स देशों को नई मुद्रा बनाने का विचार छोड़ देना चाहिए, नहीं तो उन पर 100% टैरिफ लगाए जाएंगे और ये देश अमेरिकी बाजार से बाहर हो जाएंगे।" यह बयान ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य डॉलर की वैश्विक ताकत को बनाए रखना है। ट्रंप का मानना है कि डॉलर वैश्विक व्यापार का 58% हिस्सा है, और अगर ब्रिक्स देशों ने डॉलर के विकल्प पर काम किया, तो इससे डॉलर की वैश्विक प्रभुता कमजोर हो सकती है।
डी-डॉलरीकरण क्यों चाहते हैं ब्रिक्स देश?
डी-डॉलरीकरण (De-dollarization) का मतलब है, वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में अमेरिकी डॉलर की प्रभुता को कम करना। ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। ये देश मिलकर वैश्विक जीडीपी का लगभग 40% और दुनिया की आबादी का 45% हिस्सा बनाते हैं। 2025 तक, वैश्विक व्यापार में डॉलर का हिस्सा 73% से घटकर 54% तक आ सकता है। ब्रिक्स देशों का मुख्य उद्देश्य यह है कि डॉलर की वैश्विक प्रभुता कम हो और इन देशों की आर्थिक और राजनीतिक स्वायत्तता बढ़े। रूस पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से बाहर करने के बाद, ब्रिक्स देशों को यह एहसास हुआ कि डॉलर का इस्तेमाल अमेरिका कभी भी 'हथियार' के रूप में कर सकता है।
भारत-चीन-रूस ने निकाला समाधान
ब्रिक्स देशों ने डी-डॉलरीकरण की दिशा में कदम तो बढ़ाए हैं, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी है। ट्रंप की धमकी के बाद, ब्रिक्स देशों ने अपनी नई करेंसी बनाने के विचार को फिलहाल रोक दिया है। दक्षिण अफ्रीका ने स्पष्ट किया कि अभी कोई नई मुद्रा बनाने की योजना नहीं है। 2025 में, ब्रिक्स देशों ने संयुक्त मुद्रा का विचार स्थगित कर दिया और इसके बजाय स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने का निर्णय लिया। अब ब्रिक्स देशों का फोकस एक नया डिसेंट्रलाइज़्ड पेमेंट प्लेटफॉर्म बनाने पर है, जो स्विफ्ट का विकल्प हो सकता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 2025 तक ब्रिक्स देशों का 90% व्यापार अब स्थानीय मुद्राओं में होने का अनुमान है। खासतौर पर रूस और चीन के बीच व्यापार में युआन का हिस्सा 44% तक पहुंच चुका है।
अब भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदने पर चीनी मुद्रा युआन में भुगतान करना, ब्रिक्स की नई करेंसी बनाने के विचार से अलग एक बीच का रास्ता है। इस कदम से भारत भी फायदा उठाने में सक्षम होगा और डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व को भी चुनौती मिलेगी। इस प्रकार, भारत, चीन और रूस के बीच युआन-आधारित व्यापार दरअसल डी-डॉलरीकरण के पहले चरण का हिस्सा है।
भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है, ने सितंबर में रूस से कच्चा तेल खरीदने पर लगभग 2.5 बिलियन यूरो खर्च किए। यह पिछले महीने की तुलना में 14% कम था, जो रूस से सस्ते तेल की खरीदारी की ओर इशारा करता है। भारत का युआन में भुगतान करना इस समय अधिक एक व्यावहारिक कदम है, जिससे वह रूसी तेल सस्ते में खरीद सके और पश्चिमी प्रतिबंधों से बच सकें। हालांकि, इस कदम के रणनीतिक असर गहरे और दूरगामी हैं, क्योंकि यह वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
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