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अमेरिका कूदा तो 'परमाणु युद्ध' पक्का! इजरायल-ईरान के बीच ट्रंप या कोई भी आया तो खैर नहीं, दूर से ही डरा रहा चीन
Israel Iran War: ईरान और इजरायल के बीच टकराव ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को संकट में डाल दिया, बल्कि अमेरिका और चीन जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को भी एक नई रणनीतिक चुनौती के सामने खड़ा कर दिया है।
Israel Iran War: मध्य पूर्व एक और बड़े युद्ध की कगार पर है। ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष खुलकर सामने आ चुका है। दोनों देशों के बीच मिसाइलों की झड़ी लगी हुई है, जिससे कई शहरों में भारी तबाही मची है। इजरायल ईरान के सैन्य और परमाणु प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहा है, वहीं ईरान ने इजरायल के घनी आबादी वाले क्षेत्रों पर जवाबी हमला किया है। इस टकराव के बीच इजरायल ने औपचारिक रूप से अमेरिका से सैन्य मदद की अपील की है।
इजरायल ने मांगा अमेरिका का साथ, ट्रंप ने किया किनारा
इजरायल ने अमेरिकी प्रशासन से अपील की है कि वह ईरान के भूमिगत Fordow परमाणु संयंत्र को निशाना बनाने के लिए सहयोग दे। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस युद्ध में सीधे शामिल होने से इनकार कर दिया है।इजरायली अधिकारियों ने युद्ध शुरू होने के 48 घंटे बाद अमेरिका से गुहार लगाई कि Fordow यूरेनियम संवर्धन केंद्र को नष्ट करने के लिए अमेरिकी हथियार और रणनीतिक सहायता की आवश्यकता है, क्योंकि इजरायल के पास इतनी गहराई तक हमला करने की क्षमता नहीं है।
क्या है Fordow संयंत्र की अहमियत?
ईरान का Fordow न्यूक्लियर प्लांट एक अत्यधिक सुरक्षित केंद्र है, जहां लगभग 2000 सेंट्रीफ्यूज लगाए गए हैं, जिनमें से अधिकांश IR-6 मॉडल के हैं। इनका उपयोग उच्च स्तर के यूरेनियम संवर्धन के लिए किया जाता है, जिसमें से कुछ 60% शुद्धता तक संवर्धन करने में सक्षम हैं।
यह केंद्र ईरान के कोम शहर के पास पहाड़ियों के नीचे स्थित है और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) की निगरानी में है। इसकी भौगोलिक संरचना इसे एयरस्ट्राइक से काफी हद तक सुरक्षित बनाती है, और यही कारण है कि इजरायल इसे अपने दम पर नष्ट नहीं कर पा रहा।
अमेरिका की सतर्क रणनीति
हालांकि इजरायल ने सहायता की अपील की है, अमेरिका अभी सतर्क रुख अपनाए हुए है। विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने स्पष्ट किया कि अमेरिका फिलहाल सीधे युद्ध में शामिल नहीं होगा और उसकी प्राथमिकता क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अड्डों और संपत्तियों की सुरक्षा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अमेरिका, इजरायल की कार्रवाइयों को रोकने की कोशिश नहीं करेगा, लेकिन चाहता है कि ईरान कूटनीति के रास्ते पर लौटे।
अमेरिका के शामिल होने पर क्या हो सकता है असर?
यदि अमेरिका खुलकर इजरायल का साथ देता है, तो पूरा मध्य पूर्व अस्थिरता के दौर में पहुंच सकता है। ईरान पहले ही चेतावनी दे चुका है कि जो भी देश इजरायल की मदद करेगा, वह उसके निशाने पर होगा। मध्य पूर्व में लगभग 40,000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। युद्ध की स्थिति में इन पर मिसाइल या प्रॉक्सी हमलों का खतरा बढ़ जाएगा। इसके अलावा फारस की खाड़ी, रेड सी और स्ट्रेट ऑफ होर्मुज जैसे संवेदनशील इलाकों में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे और जहाज भी खतरे की जद में आ जाएंगे।
वैश्विक बाजारों पर भी मंडराएगा संकट
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका युद्ध में शामिल होता है, तो ईरान परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से पूरी तरह बाहर निकल सकता है और अपने कार्यक्रम को युद्ध स्तर पर तेज कर सकता है। इसका सीधा असर स्ट्रेट ऑफ होर्मुज पर पड़ेगा, जहां से वैश्विक तेल का 20–30% निर्यात होता है। यह रूट बंद होने या खतरे में आने से तेल की कीमतों में भारी उछाल आएगा, और इससे वैश्विक आर्थिक अस्थिरता गहरा सकती है।
ईरान और इजरायल के बीच चल रहे सैन्य टकराव ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को संकट में डाल दिया है, बल्कि अमेरिका और चीन जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को भी एक नई रणनीतिक चुनौती के सामने खड़ा कर दिया है। इस संघर्ष का समाधान केवल सैन्य ताकत नहीं, बल्कि ठोस कूटनीति और वैश्विक संवाद में ही निहित है।
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