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मरने के लिए छोड़ गए सारे दोस्त! ईरान को चीन ने दिया बड़ा धोखा, अब किसके लिए बुरा होगा अंजाम!
Israel Iran War: यह घटनाक्रम न सिर्फ ईरान की सुरक्षा रणनीति पर असर डालेगा, बल्कि वैश्विक शक्तियों के साथ उसके संबंधों की दिशा भी तय करेगा।
Israel Iran War: पश्चिम एशिया में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव ने न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक कूटनीति की दिशा बदल दी है। हालिया इजरायली हवाई हमलों के बाद, ईरान खुद को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग महसूस कर रहा है। उसके पुराने और भरोसेमंद साझेदार रूस और चीन मौजूदा संकट में या तो चुप हैं या सीमित प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। इसके साथ ही तुर्की, सीरिया और लेबनान जैसे अन्य पारंपरिक सहयोगी भी इस बार खामोश दिखाई दे रहे हैं।
रूस: संकट में खुद, सहयोग मुश्किल
एक समय में ईरान का सबसे मुखर समर्थक रहा रूस, अब यूक्रेन युद्ध में उलझा है। 2022 से 2024 के बीच दोनों देशों के बीच रक्षा और ऊर्जा सहयोग बढ़ा था, ईरान ने रूस को ड्रोन और मिसाइलें दी थीं, जबकि रूस ने ऊर्जा तकनीक साझा की। लेकिन अब जब रूस की अर्थव्यवस्था दबाव में है और सैन्य संसाधन सीमित हो चुके हैं, वह ईरान को कोई ठोस मदद नहीं दे पा रहा। क्रेमलिन की ओर से केवल औपचारिक बयान जारी किए गए हैं, लेकिन सैन्य समर्थन से रूस ने फिलहाल परहेज किया है।
चीन: व्यापारिक हित पहले
चीन, जिसने 2021 में ईरान के साथ 25 वर्षीय रणनीतिक साझेदारी समझौता किया था, अब ईरान पर हो रहे हमलों के बीच चुप्पी साधे हुए है। इसकी सबसे बड़ी वजह है अमेरिका और यूरोप के साथ उसके व्यापारिक हित। जानकारों के मुताबिक, बीजिंग नहीं चाहता कि ईरान का समर्थन करके वह पश्चिमी प्रतिबंधों का शिकार बने। यही कारण है कि चीन ने बस शांति और स्थिरता की अपील की, लेकिन किसी भी व्यावहारिक मदद से किनारा कर लिया।
अन्य सहयोगी भी मौन
ईरान के अन्य पारंपरिक समर्थक तुर्की, सीरिया और लेबनान भी इस बार दूरी बनाए हुए हैं। तुर्की, जो नाटो सदस्य है, अमेरिका और यूरोप के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दे रहा है। वहीं, सीरिया और लेबनान, जहां ईरान समर्थित समूह सक्रिय हैं, खुद सुरक्षा संकट और आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं। इजरायल ने हालिया महीनों में इन दोनों देशों में कई हवाई हमले भी किए हैं, जिससे उनका प्रभाव और कमजोर हुआ है।
इजरायल की सटीक रणनीति
13 जून 2025 को हुए इजरायली हवाई हमले में ईरान की कई प्रमुख परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया। इन हमलों में रिवोल्यूशनरी गार्ड के वरिष्ठ कमांडर और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। जानकारों का कहना है कि यह हमला बेहद योजनाबद्ध और रणनीतिक समय पर किया गया, जब ईरान राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से कमजोर स्थिति में था। अमेरिका की ओर से भी इजरायल को अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है, क्योंकि वाशिंगटन ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर आशंकित है।
ईरान की मौजूदा स्थिति: अलग-थलग और दबाव में
ईरान के सामने अब एक बड़ा कूटनीतिक संकट है। उसके परंपरागत सहयोगी या तो कमजोर हैं या मौन हैं। इजरायल ने इस मौके का फायदा उठाते हुए हमला किया, जिससे न केवल ईरान की सैन्य क्षमता को झटका लगा है, बल्कि पूरे पश्चिम एशिया की राजनीतिक परिधि भी बदली है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटनाक्रम न सिर्फ ईरान की सुरक्षा रणनीति पर असर डालेगा, बल्कि वैश्विक शक्तियों के साथ उसके संबंधों की दिशा भी तय करेगा। फिलहाल, ईरान की स्थिति न सिर्फ सैन्य रूप से बल्कि राजनयिक मोर्चे पर भी कमजोर नजर आ रही है।
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