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मोदी की बधाई ने चीन की उड़ाई नींद! दलाई लामा के जन्मदिन पर PM की बधाई पर भड़का चीन, युद्ध की दी चेतावनी
Modi wish on Dalai Lama birthday: दुनिया भर के नेताओं ने जहां शांति, करुणा और अहिंसा के प्रतीक दलाई लामा को श्रद्धा से याद किया, वहीं चीन आग बबूला हो गया।
Modi wish on Dalai Lama birthday: 9 जुलाई की सुबह जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को 90वें जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, वैसे ही बीजिंग के गलियारों में सन्नाटा और गुस्सा दोनों एक साथ छा गया। दुनिया भर के नेताओं ने जहां शांति, करुणा और अहिंसा के प्रतीक दलाई लामा को श्रद्धा से याद किया, वहीं चीन आग बबूला हो गया। दलाई लामा का जन्मदिन धर्मशाला में पूरे भव्यता के साथ मनाया गया। प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत शुभकामनाएं, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, मंत्री किरेन रिजिजू और सिक्किम के प्रतिनिधियों की मौजूदगी ने चीन को राजनीतिक आंधी की आहट दे दी। बीजिंग ने तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भारत को धमकाना शुरू कर दिया।
चीन की तिलमिलाहट: ये बधाई नहीं, साजिश है
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने बेहद तल्ख़ अंदाज़ में कहा कि दलाई लामा कोई आध्यात्मिक संत नहीं, बल्कि "राजनीतिक निर्वासित और देशद्रोही हैं", जो चीन को तोड़ने की कोशिशों में लगे हुए हैं। उन्होंने साफ कहा कि “भारत को तिब्बत जैसे संवेदनशील मुद्दे पर चीन की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।” बीजिंग के अनुसार, भारत ने दलाई लामा को सम्मान देकर चीन की आंतरिक संप्रभुता में सीधा हस्तक्षेप किया है। अब चीन इस मुद्दे को हल्के में नहीं लेगा। माओ निंग ने यहां तक कह डाला कि भारत को अपनी प्रतिबद्धताओं की याद दिलाई जानी चाहिए और ‘इस खेल के गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।’
भारत के संदेश ने झकझोर दी बीजिंग की नींव
प्रधानमंत्री मोदी ने दलाई लामा को दिए अपने शुभकामना संदेश में कहा— “दलाई लामा करुणा, धैर्य और नैतिक अनुशासन के प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें शांति और सहिष्णुता की प्रेरणा देता है।” इस बयान को बीजिंग ने सीधे-सीधे अपनी सत्ता पर हमला माना है। प्रधानमंत्री का यह कथन चीन के लिए राजनीतिक आग में घी डालने जैसा साबित हुआ।
धर्मशाला में हुआ ऐतिहासिक जमावड़ा, पर चीन को क्यों लगी मिर्ची?
धर्मशाला के जन्मदिन समारोह में पहुंचे वरिष्ठ नेताओं की सूची को देखकर चीन की बौखलाहट और ज़्यादा गहरी हो गई। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, लोकसभा में जेडीयू के नेता राजीव रंजन सिंह, अरुणाचल के सीएम पेमा खांडू और सिक्किम के मंत्री सोनम लामा का शामिल होना चीन को इस आशंका में डाल गया कि भारत अब तिब्बत पर खुलकर मोर्चा खोलने की तैयारी में है। विशेष रूप से रिजिजू के उस बयान ने चीन के तन-बदन में आग लगा दी जिसमें उन्होंने कहा था— “दलाई लामा के पुनर्जन्म का फैसला चीन नहीं, खुद दलाई लामा करेंगे।” यही बात चीन के गले में अटक गई है।
क्या भारत और चीन के बीच फिर छिड़ेगा ‘तिब्बत युद्ध’?
चीन ने साफ चेतावनी दी है कि “भारत दलाई लामा जैसे अलगाववादी ताकतों को समर्थन देना बंद करे”। लेकिन जानकार मानते हैं कि बीजिंग की यह बौखलाहट उसके आतंरिक डर और वैश्विक अलगाव से उपजी है। भारत आज तिब्बत के मुद्दे पर जितना मुखर हुआ है, उतना पिछले दशकों में शायद ही कभी हुआ हो। अब सवाल यह है कि क्या दलाई लामा को लेकर भारत-चीन के रिश्तों में फिर से डोकलाम जैसे हालात बन सकते हैं?
कूटनीतिक गलियों में गर्मी, सीमाओं पर तनाव की आहट
चीन का यह रुख इस बात का संकेत है कि तिब्बत का मुद्दा अब सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, सामरिक भी हो चुका है। चीन की PLA पहले ही अरुणाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों में बिल्डअप बढ़ा चुकी है, और भारत भी हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रख रहा है। इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि अब भारत 'तिब्बत कार्ड' खेलने से हिचक नहीं रहा और चीन अपनी आतंरिक विफलताओं से बौखला कर भारत पर दबाव बनाना चाहता है।
क्या भारत अब दलाई लामा के जरिए चीन को घेरने की नीति पर है?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब दलाई लामा को एक राजनयिक शांति-दूत से आगे, एक रणनीतिक मोहरा मानने लगा है। बीजिंग के लिए यह सबसे बड़ा झटका है कि दलाई लामा को दिए जाने वाला हर सम्मान अब राजनीतिक हथियार बन चुका है।
बीजिंग के घाव फिर से हरे हो गए
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर दुनिया ने जो प्यार दिखाया, उसने बीजिंग के घाव फिर से हरे कर दिए। भारत ने साफ कर दिया है कि “आध्यात्मिकता पर राजनीति की तलवार नहीं चल सकती”, और दलाई लामा सिर्फ तिब्बत के नहीं, पूरी दुनिया के आध्यात्मिक नेता हैं। अब देखना ये है कि क्या चीन इस ‘शांति के प्रतीक’ के नाम पर भारत से टकराने की मूर्खता करता है, या फिर अपने गुस्से को निगलकर पीछे हटता है।
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