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नेपाल बवाल: सुशीला कार्की का पीएम बनना मुश्किल, आंदोलनकारियों में फूट
नेपाल संकट: सुशीला कार्की की दावेदारी पर विवाद, प्रदर्शनकारियों में फूट
Nepal Political Crisis
Nepal crisis: नेपाल में हालात नाजुक और उथलपुथल भरे बने हुए हैं। सत्ता-शासन कौन संभालेगा, ये मसला एक टेढ़ी खीर बना हुआ है। दूसरी तरफ, "जेन ज़ी" आंदोलनकारियों के बीच भी विवाद खड़े होने लगे हुए हैं और उनमें नेतृत्व को लेकर गुटबंदी नजर आने लगी है।राजधानी काठमांडू में नेपाल आर्मी के मुख्यालय के सामने युवाओं के दो गुट आपस में भिड़ गए।
इन गुटों के बीच जमकर मारपीट, धक्का-मुक्की और हमला हुआ। बताया जा रहा है कि यह हिंसा प्रधानमंत्री पद पर अपने-अपने पसंदीदा व्यक्ति को नियुक्त करवाने की मांग और सत्ता परिवर्तन से जुड़े अन्य मुद्दों को लेकर हुई। युवाओं के कई गुट सत्ता में अपने प्रभावशाली व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश में हैं, जिससे आपसी टकराव बढ़ता जा रहा है।
कार्की पर विवाद
युवाओं में हिंसक टकराव की पृष्ठभूमि में एक बड़ा संवैधानिक विवाद है। कुछ गुटों ने सुशीला कार्की को प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग की थी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह संवैधानिक रूप से संभव नहीं है। नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 132 के तहत सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश जैसे संवैधानिक पदधारियों को प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने से रोका गया है। सुशीला कार्की, नेपाल सुप्रीम कोर्ट की पूर्व प्रधान न्यायाधीश रह चुकी हैं, सो वह इस प्रावधान के तहत प्रधानमंत्री नहीं बन सकतीं।
नेपाल की राजनीति के जानकारों के अनुसार देश की संसद इस समय भंग नहीं हुई है, और जब तक संसद की बैठक बुलाकर कोई स्पष्ट बहुमत नहीं बनता, तब तक प्रधानमंत्री पद को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकती। यही असमंजस और अनिश्चितता वर्तमान संघर्ष की एक प्रमुख वजह बन गई है।सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन चुकी है कि वह ना केवल संवैधानिक प्रक्रिया को सुरक्षित रखे, बल्कि राजधानी में शांति व्यवस्था भी बनाए रखे।
आने वाले दिनों में संसद की बैठक और राजनीतिक दलों की रणनीति इस पूरे घटनाक्रम की दिशा तय करेगी। तब तक, देश एक अस्थिरता और अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। एक सवाल सेना की भूमिका को लेकर भी है कि कहीं उथलपुथल की चरम स्थिति में सेना ही न शासन कंट्रोल कर ले।ये एक अभूतपूर्व स्थिति होगी।
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