जानिए सुशीला कार्की के बारे में, जो संभाल सकती हैं नेपाल की राजनीतिक कमान

Sushila Karki Biography: नेपाल की सत्ता में बदलाव की संभावना के बीच नेपाल की सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस का नाम चर्चा में है ।

Shivani Jawanjal
Published on: 11 Sept 2025 3:23 PM IST (Updated on: 12 Sept 2025 9:14 AM IST)
जानिए सुशीला कार्की  के बारे में, जो संभाल सकती हैं नेपाल की राजनीतिक कमान
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Nepal Political Crisis: हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद फ़िलहाल नेपाल राजनीतिक उतार-चढ़ावों से गुज़र रहा है। 26 सोशल मीडिया साइट्स पर नेपाल सरकार द्वारा बैन लगाने के बाद विरोध में कई युवा सड़कों पर उतरे और धीरे - धीरे यह विरोध हिंसक प्रदर्शन में तब्दील हो गया। हालत इतने बेकाबू हुए की 9 सितंबर को नेपाल के प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दिया जिसके बाद देश की कमान सेना के हाथों में है। इस बिच 10 सितंबर 2025 को रात को काठमांडू मेयर बालेन शाह ने देश अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान किया। जिसके बाद नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की जो नेपाल की सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस रह चुकी हैं, को नेपाल में वर्तमान राजनीतिक संकट और अस्थिरता के बीच अंतरिम सरकार बनाने के लिए समर्थन मिला है।

ऐसे में आइये आपको बताते है आख़िर कौन सुशीला कार्की जो संभाल सकती हैं नेपाल की सत्ता ।

शुरुआती जीवन और शिक्षा


सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को नेपाल के मोरंग जिले के बिराटनगर में हुआ। पढ़ाई में बचपन से ही होशियार रही सुशीला जी ने 1972 में महेन्द्र मोरंग परिसर, बिराटनगर से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे भारत आईं और 1975 में वाराणसी स्थित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) से राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की। शिक्षा की इसी लगन ने उन्हें आगे कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने 1978 में नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। यह मजबूत शैक्षिक आधार आगे चलकर उनके न्यायिक करियर और सार्वजनिक जीवन में बहुत सहायक साबित हुआ।

वकालत से न्यायपालिका तक का सफर

सुशीला कार्की ने अपने करियर की शुरुआत वकालत से की और धीरे-धीरे न्यायपालिका में ऊँचाई तक पहुँचीं। 1979 में उन्होंने वकालत शुरू की, और उनकी योग्यता व मेहनत के कारण 2009 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का अस्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। अगले ही साल 2010 में वे स्थायी न्यायाधीश बनीं। कड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करते हुए वे 11 जुलाई 2016 को नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं और 6 जून 2017 तक इस पद पर रहीं। अपने कार्यकाल में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और न्यायपालिका में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया। उनके फैसलों ने समाज में न्याय और निष्पक्षता की मिसाल पेश की। 2017 में उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन जनता के बड़े समर्थन की वजह से इसे वापस ले लिया गया।

न्यायिक दर्शन और प्रमुख फैसले

सुशीला कार्की का न्यायिक नजरिया हमेशा सख्त लेकिन निष्पक्ष रहा। वे खासकर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों में किसी तरह का समझौता नहीं करती थीं। उनके कई फैसलों ने नेपाल में प्रशासन और राजनीति में जवाबदेही के नए मानक तय किए। इसी कारण वे कई बार राजनीतिक विवादों में भी आ गईं। 2017 में उन पर यह आरोप लगाते हुए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया कि वे सरकार के काम में हस्तक्षेप कर रही हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया और महाभियोग प्रस्ताव वापस ले लिया गया। यह घटना साबित करती है कि सुशीला कार्की ने न्याय के लिए हमेशा साहस दिखाया और उनके निर्णयों ने समाज और राजनीति दोनों पर गहरा असर डाला।

लेखन और समाजसेवा

सुशीला कार्की ने न्यायपालिका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ-साथ साहित्य में भी अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने 2018 में अपनी आत्मकथा ‘न्याय’ लिखी जिसमें उन्होंने अपने जीवन, न्यायिक सफर और राजनीतिक दबावों के बारे में खुलकर बताया। इसके बाद 2019 में उन्होंने ‘कारा’ नाम का उपन्यास लिखा, जो बिराटनगर जेल में बंद महिलाओं के जीवन और उनके संघर्षों पर आधारित है। इस किताब में उन्होंने समाज की कमजोर महिलाओं की समस्याओं और न्याय प्रणाली में उनके हाशिए पर रहने की स्थिति को बेहद संवेदनशीलता से पेश किया। यह उनके सामाजिक सरोकार और मानवीय दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से दिखाता है।

निजी जीवन और व्यक्तित्व

सुशीला कार्की का व्यक्तित्व सादगी, विनम्रता और मजबूत इच्छाशक्ति का सुंदर संगम है। वे ऐसे परिवार से आती हैं जहाँ मूल्यों और मेहनत को महत्व दिया जाता था और यही संघर्ष उन्हें मजबूत बनाता गया। उनके जीवन की कहानी कई युवाओं के लिए प्रेरणा है। जहाँ एक ओर उनके न्यायिक फैसले सख्त और स्पष्ट रहे, वहीं दूसरी ओर उनके साहित्य और सार्वजनिक विचारों में गहरी मानवीय संवेदना झलकती है। उनके अंदर न्याय की कठोरता और इंसानियत की गर्मजोशी दोनों साथ-साथ दिखाई देती हैं। जो उन्हें एक संतुलित और गहरे सोच वाली व्यक्ति बनाते हैं।

हालिया घटनाक्रम और जन-आंदोलनों में उनकी स्थिति

हाल ही में नेपाल में जेनरेशन ज़ेड के नेतृत्व वाले युवा प्रदर्शनों के दौरान सुशीला कार्की का नाम काफी चर्चा में रहा। नेपाल के युवा आंदोलनकारियों (Gen Z) ने सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुना है। यह निर्णय एक वर्चुअल बैठक के बाद लिया गया, जिसमें लगभग 2,500 लोगों ने उन्हें समर्थन दिया। इन वर्चुअल बैठकों में हजारों युवाओं ने भाग लेकर सुशीला कार्की को देश के अंतरिम नेतृत्व के लिए चुना। यह साबित करता है कि उनके न्यायिक करियर, निष्पक्षता और ईमानदार छवि का प्रभाव आम जनता और युवा वर्ग में बहुत मजबूत है। इसी कारण नेपाल के मेयर बालेंद्र शाह और कई अन्य युवा नेताओं ने भी उनका समर्थन किया। सुशीला कार्की ने इस भूमिका के लिए अपनी सहमति भी दे दी है।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

सुशीला कार्की के सार्वजनिक जीवन में कई बार आलोचनाएँ और चुनौतियाँ आईं, खासकर 2017 में जब उन पर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव में आरोप था कि उन्होंने सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप किया, जिसके चलते उन्हें अस्थायी रूप से निलंबित भी किया गया। इसके बावजूद, उनके समर्थन में कई लोग आगे आए, खासकर वे जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदमों के पक्ष में थे। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और महाभियोग प्रस्ताव को वापस ले लिया, जिससे उनकी न्यायिक ईमानदारी और साहस की पुष्टि हुई।

अब तक क्या कुछ हुआ नेपाल में

नेपाल सरकार ने सितंबर 2025 की शुरुआत में फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ट्विटर, व्हाट्सएप समेत कुल 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर रजिस्ट्रेशन न कराने के कारण प्रतिबंध (बैन) लगा दिया। यह कदम फर्जी खबरों, साइबर अपराधों, और राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण बताया गया था। इस निर्णय के बाद खासकर युवा वर्ग (Gen Z) में भारी आक्रोश फैल गया। युवा इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मान रहे थे।

8 सितंबर 2025 को शुरू हुए समित युवा विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे बढ़ते गए और 8 - 9 सितंबर की हिंसक झड़पों में काठमांडू की संसद, राजनीतिक दलों के कार्यालय और कुछ वरिष्ठ नेताओं के घरों सहित प्रधानमंत्री के निजी आवास तक को आग के हवाले कर दिया गया। इन संघर्षों में लगभग 19 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस बढ़ते दबाव के कारण 9 सितंबर को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद सेना को काठमांडू में सुरक्षा के लिए तैनात किया गया और कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया।

प्रदर्शनकारियों ने भ्रष्टाचार, राजनीतिक असंवेदनशीलता और नीति भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक नाराजगी जाहिर की। 'Nepo Kids' के खिलाफ भी नाराजगी बढ़ी जो राजनीतिक परिवारों के विलासिता भरे जीवन को दर्शाता है।

सेना ने कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया और शहर के मुख्य क्षेत्रों को नियंत्रित किया। जनता को घरों में रहने और अनावश्यक बाहर निकलने से बचने की सलाह दी गई है।

माहौल अभी भी अस्थिर है और आगे की राजनीतिक दिशा स्पष्ट नहीं है। युवा वर्ग एक गैर-राजनीतिक और भ्रष्टाचार मुक्त नेतृत्व की मांग कर रहा है।

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