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चीन के सामने गिड़गिड़ाया Pak! BRICS बैंक में मेंबर बनने की मांगी भीख, सामने रख दिया बड़ा ऑफर
आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान चीन से BRICS के न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) में सदस्यता दिलाने की मदद मांग रहा है। इसके बदले पाकिस्तान ने तकनीक, कृषि और उद्योग में निवेश का लुभावना ऑफर रखा है।
Pakistan want BRICS Bank membership: आर्थिक रूप से बदहाल और अंतर्राष्ट्रीय ऋणों पर निर्भर पाकिस्तान एक बार फिर अपने सदाबहार दोस्त चीन के सामने बेचारगी का हाथ फैलाए खड़ा है। इस बार पाकिस्तान ने ब्रिक्स (BRICS) देशों के बहुराष्ट्रीय बैंक न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की सदस्यता पाने के लिए सीधे चीन से मदद की गुहार लगाई है। इस गुहार के साथ पाकिस्तान ने चीन को एक लुभावना ऑफर भी दिया है। शुक्रवार को जारी एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, पाकिस्तान के वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब ने वाशिंगटन में चीन के वित्त मंत्री लियाओ मिन से मुलाकात की। इस दौरान औरंगजेब ने चीन से आग्रह किया कि वह पाकिस्तान को एनडीबी की सदस्यता दिलाने में मदद करे। उन्होंने कहा कि इसके बदले पाकिस्तान में तकनीक, कृषि, उद्योग और खनिज जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चीनी निवेश को बढ़ावा दिया जाएगा। पाकिस्तान का यह कदम साफ दिखाता है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए किसी भी कीमत पर वैश्विक वित्तीय मंचों तक पहुँचना चाहता है।
NDB क्या है और क्यों ज़रूरी है सदस्यता?
न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) का गठन ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने मिलकर किया है। इस बैंक का मुख्य उद्देश्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और सतत पोषणीय विकास से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए फंडिंग उपलब्ध कराना है। विकासशील देशों के विकास में यह बैंक बड़ी भूमिका निभाता है। इसकी सदस्यता पाकिस्तान को बड़ी परियोजनाओं के लिए सस्ते और आसान ऋण उपलब्ध करा सकती है। पाकिस्तान की इकोनॉमिक कोऑर्डिनेशन कमेटी (ECC) ने इसी साल फरवरी में ही एनडीबी में 582 मिलियन डॉलर के शेयर्स की खरीद को मंजूरी दी थी। फाइनेंस डिवीजन के बयान के मुताबिक, ECC ने पाकिस्तान की एनडीबी में सदस्यता को औपचारिक रूप से मंजूरी दे दी है, अब सिर्फ ब्रिक्स सदस्यों की सहमति का इंतजार है।
ब्रिक्स की सदस्यता पर पहले भी लगा झटका
पाकिस्तान की उम्मीदों पर पहले भी पानी फिर चुका है। पाकिस्तान ने पिछले साल नवंबर 2024 में ब्रिक्स की सदस्यता के लिए भी आवेदन किया था। उस समय भी बताया गया था कि चीन ने इस्लामाबाद को इसके लिए भरोसा दिया था। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चीनी राष्ट्रपति की मुलाकात के बाद पाकिस्तान की ब्रिक्स सदस्यता की उम्मीदों पर झटका लगा। जब ब्रिक्स में पार्टनर देशों को शामिल किया गया, तो तुर्की को तो जगह मिली, लेकिन पाकिस्तान को नहीं।
भारत का रुख: सर्वसम्मति और संस्थापक देशों की राय
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिक्स सदस्यता विस्तार पर भारत का रुख हमेशा से ही स्पष्ट रहा है। भारत ने कहा था कि वह ब्रिक्स में ज़्यादा देशों का स्वागत करने को तैयार है, लेकिन सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि किसी भी देश को सदस्यता देने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उसमें ब्रिक्स के संस्थापक देशों (रूस, चीन, भारत और ब्राजील) की राय शामिल हो। भारत के इस रुख ने ब्रिक्स में पाकिस्तान की एंट्री को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्योंकि संस्थापक देशों में भारत का विरोध मायने रखता है। अब एनडीबी की सदस्यता के लिए भी चीन को भारत की सहमति ज़रूरी होगी। ऐसे में, पाकिस्तान का चीन को 'इन्वेस्टमेंट ऑफर' देना उसकी मजबूरी और ब्रिक्स प्लेटफॉर्म तक पहुँचने की बेताबी को दिखाता है।
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