जापान में कैसे हो गई चावल की कमी, क्या होगा इसकी अर्थव्यवस्था पर इसका असर, आइए जानते हैं

Rice Shortage Occur in Japan: जापान को एक असामान्य संकट का सामना करना पड़ रहा है दरअसल ये देश चावल की कमी और कीमतों में वृद्धि के दौर से गुजर रहा है।

Akshita Pidiha
Published on: 3 Jun 2025 5:27 PM IST
Rice Shortage Occur in Japan
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Rice Shortage Occur in Japan (Image Credit-Social Media)

Rice Shortage Occur in Japan: जापान, एक ऐसा देश जो अपनी समृद्ध संस्कृति, तकनीकी उन्नति और आर्थिक स्थिरता के लिए जाना जाता है, यह देश आज एक असामान्य संकट का सामना कर रहा है,समस्या है-चावल की कमी। चावल, जो जापान के खानपान, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का आधार है, अब अभूतपूर्व कमी और कीमतों में वृद्धि के दौर से गुजर रहा है। यह स्थिति न केवल जापानियों के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरे सवाल उठा रही है।

चावल की कमी के कारण

1. प्राकृतिक आपदाएँ और जलवायु परिवर्तन

जापान एक भूकंप-प्रवण देश है, और इसके साथ ही यहाँ टायफून और भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी आम हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2023 में रिकॉर्ड गर्मी और अनियमित मौसम ने चावल की फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया। गर्मी के कारण धान के पौधों की वृद्धि रुक गई और कई क्षेत्रों में पैदावार में भारी कमी आई। इसके अलावा, टायफून और बाढ़ ने खेतों को नष्ट किया, जिससे चावल की आपूर्ति और कम हो गई। जलवायु परिवर्तन ने इन समस्याओं को और गंभीर बना दिया है, क्योंकि अनिश्चित मौसम पैटर्न ने किसानों के लिए फसल की योजना बनाना कठिन कर दिया है।


2. बढ़ती माँग और भूकंप का डर

2024 में जापान में रिकॉर्ड संख्या में विदेशी पर्यटकों का आगमन हुआ। ओबोन फेस्टिवल जैसे सांस्कृतिक आयोजनों और लंबी छुट्टियों के दौरान चावल की माँग में अचानक वृद्धि देखी गई। इसके साथ ही, भूकंप की चेतावनियों ने लोगों में घबराहट पैदा की, जिसके कारण कई परिवारों ने स्टॉक जमा करने के लिए चावल की जमकर खरीदारी की। इस माँग में उछाल ने पहले से ही तंग आपूर्ति पर दबाव बढ़ा दिया।

3. कृषि संकट

कृषि मंत्रालय के अनुसार, लगभग 90% चावल किसान 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, और 70% के पास कोई उत्तराधिकारी नहीं है। युवा पीढ़ी खेती में रुचि नहीं ले रही, जिसके कारण चावल की खेती का क्षेत्रफल और उत्पादन दोनों कम हो रहे हैं। सरकार की नीतियाँ, जो चावल की जगह अन्य फसलों को बढ़ावा देती थीं, ने भी इस कमी को बढ़ाने में योगदान दिया।

4. सरकारी नीतियों का असर

जापान सरकार ने 1990 के दशक में चावल के भंडारण की शुरुआत की थी ताकि आपातकाल में आपूर्ति पूरी की जा सके। हालांकि, हाल के वर्षों में सरकार ने इन भंडारों को बाजार में उतारा, लेकिन इसका कीमतों पर कोई खास असर नहीं पड़ा। इसके अलावा, चावल उत्पादन को कम करने की पुरानी नीतियों ने लंबे समय की आपूर्ति को प्रभावित किया है।

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव


चावल की कमी और कीमतों में वृद्धि का जापान की अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव पड़ रहा है।

1. महंगाई में बढ़ोत्तरी

चावल जापान का मुख्य भोजन है, और इसकी कीमतों में वृद्धि ने समग्र महंगाई को बढ़ावा दिया है। अप्रैल 2025 में चावल की कीमतों में 98.4% की वृद्धि दर्ज की गई, जो 1971 के बाद सबसे बड़ी मासिक उछाल थी। इसने खाद्य महंगाई को बढ़ाया और कम खरीदी हुई। अन्य आवश्यक वस्तुओं, जैसे ऊर्जा, की कीमतों में भी 9.3% की वृद्धि हुई, जिसने समग्र महंगाई को 3.5% तक पहुँचा दिया। यह स्थिति जापान की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है, क्योंकि देश दशकों तक डिफ्लेशन (मूल्य में कमी) का सामना करता रहा है।

2. उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव

चावल की कीमतों में वृद्धि ने जापानियों को अपने खानपान की आदतों को बदलने के लिए मजबूर किया है। कई लोग अब नो-वॉश राइस (म्यूसेनमई) जैसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, जो समय और पानी की बचत करता है। कुछ लोग चावल की खपत कम कर रहे हैं और अन्य अनाजों, जैसे गेहूँ या मक्का, की ओर रुख कर रहे हैं। यह सांस्कृतिक बदलाव जापान की परंपराओं के लिए एक चुनौती है, क्योंकि चावल न केवल भोजन है, बल्कि शिंतो धर्म में समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक भी है।

3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव

चावल की खेती जापान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है। कीमतों में वृद्धि से किसानों को कुछ लाभ होने की उम्मीद थी, लेकिन बढ़ती लागत (जैसे ईंधन और मशीनरी) और उत्पादन में कमी ने उनके मुनाफे को सीमित कर दिया है। एक किसान के अनुसार- उनकी आय "प्रति घंटे 10 येन" जितनी कम है, जो उनकी आर्थिक तंगी को दर्शाता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता बढ़ रही है।

4. राजनीतिक अस्थिरता

चावल की कमी ने जापान की राजनीति को भी प्रभावित किया है। 2025 में कृषि मंत्री ताकू एतो को चावल से संबंधित एक विवादित बयान के कारण इस्तीफा देना पड़ा। उनके बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें चावल खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि समर्थक उन्हें उपहार में चावल देते हैं, ने जनता में गुस्सा पैदा किया। यह घटना प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा की अल्पमत सरकार के लिए एक झटका थी, जिसे पहले ही जन समर्थन में कमी का सामना करना पड़ रहा है।

5. वैश्विक व्यापार और निर्यात

जापान ने हाल ही में चावल निर्यात को सात गुना बढ़ाने की योजना बनाई है, ताकि घरेलू कमी को पूरा करने के साथ-साथ वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति मजबूत की जा सके। यह नीति किसानों को अधिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, लेकिन साथ ही यह घरेलू आपूर्ति पर और दबाव डाल सकती है। विदेशी पर्यटकों की बढ़ती माँग और निर्यात की महत्वाकांक्षा के बीच संतुलन बनाना जापान के लिए एक चुनौती होगी।


चावल की कमी जापान की अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को उजागर करती है, बल्कि देश की बूढ़ी आबादी, जलवायु परिवर्तन और पुरानी नीतियों की कमियों को भी सामने लाती है। कुछ संभावित समाधान इस प्रकार हैं:

कृषि में तकनीकी नवाचार: जापान को हाइड्रोपोनिक्स और स्मार्ट खेती जैसी तकनीकों को अपनाने की जरूरत है। ये विधियाँ कम संसाधनों में अधिक उत्पादन सुनिश्चित कर सकती हैं।

युवा किसानों को प्रोत्साहन: सरकार को युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।

जलवायु अनुकूल फसलें: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल चावल की नई किस्में विकसित की जानी चाहिए, जो गर्मी और बाढ़ का सामना कर सकें।

आपूर्ति प्रबंधन: सरकार को अपने भंडारण और वितरण तंत्र को और मजबूत करना चाहिए ताकि आपातकाल में आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

जापान में चावल की कमी केवल एक खाद्य संकट नहीं है; यह एक सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक संकट है। चावल की कीमतों में वृद्धि ने मुद्रास्फीति को बढ़ाया है, उपभोक्ता व्यवहार को बदला है, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है। साथ ही, इसने सरकार की नीतियों और राजनीतिक स्थिरता पर भी सवाल उठाए हैं। यह संकट जापान की अर्थव्यवस्था की कमजोरियों जैसे बूढ़ी आबादी और जलवायु जोखिमों को उजागर करता है। हालांकि, जापान की तकनीकी क्षमता और नीतिगत सुधारों की संभावना इस संकट से उबरने की उम्मीद जगाती है। यदि सरकार और समाज मिलकर काम करें, तो चावल की कमी को न केवल नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि यह भविष्य में खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने का अवसर भी बन सकता है।

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Ramkrishna Vajpei

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