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दुनिया दंग, भारत चुप! रूस ने तालिबान को लगाया गले, अब क्या करेगा भारत? अफगानिस्तान पर बड़ा फैसला ले सकती है मोदी सरकार
Taliban Russia alliance:अमेरिका समेत पूरा पश्चिमी जगत अफगानिस्तान से मुंह मोड़ चुका था। लेकिन अब चार साल बाद एक ऐसा फैसला हुआ है जिससे अफगानिस्तान का भविष्य, दक्षिण एशिया की राजनीति और भारत की विदेश नीति एक बड़े मोड़ पर खड़ी हो गई है।
Taliban Russia alliance: चार साल पहले जब काबुल पर तालिबान ने फिर से कब्जा किया था, तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी। अफगान महिलाओं की चीखें, हवाई अड्डे पर भागते लोग, और काबुल की सड़कों पर बंदूकधारी चरमपंथियों की गूंज ये तस्वीरें आज भी दुनियाभर के ज़ेहन में ताज़ा हैं। अमेरिका समेत पूरा पश्चिमी जगत अफगानिस्तान से मुंह मोड़ चुका था। लेकिन अब चार साल बाद एक ऐसा फैसला हुआ है जिससे अफगानिस्तान का भविष्य, दक्षिण एशिया की राजनीति और भारत की विदेश नीति एक बड़े मोड़ पर खड़ी हो गई है।
क्यों रूस का फैसला हिला सकता है पूरी दुनिया
रूस ने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। उसने आधिकारिक तौर पर तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है और अपने सभी राजनयिक संबंध बहाल कर दिए हैं। यह तालिबान को मिली पहली "बड़ी" मान्यता है किसी महाशक्ति की मुहर। रूस का यह क़दम केवल एक औपचारिक राजनयिक ऐलान नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में सत्ता संतुलन को बदलने वाला कदम है। और अब सबकी निगाहें भारत पर टिक गई हैं।
तालिबान को लेकर भारत का पुराना ज़ख्म
1996 में जब पहली बार तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था, तो भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। भारत ने स्पष्ट रूप से तालिबान को "आतंकी गिरोह" करार दिया था जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की कठपुतली की तरह काम करता था। 2001 में जब अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से हटाया, तो भारत ने फिर से अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति मजबूत की।
लेकिन किस्मत ने फिर पलटी मारी। अगस्त 2021 में जब अमेरिकी सेनाएं हट गईं, तालिबान ने एक बार फिर सत्ता पर कब्जा किया। पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई। काबुल एयरपोर्ट पर भगदड़, प्लेन से लटकते लोग, और डर का ऐसा माहौल, जिसमें भारत ने एक बार फिर अपने दूतावास को बंद कर दिया। लेकिन इस बार भारत ने अपना रुख उतना कठोर नहीं रखा जितना 1996 में था।
2021 के बाद बदला भारत का रवैया
तालिबान की सत्ता वापसी के कुछ ही समय बाद पाकिस्तान और चीन ने काबुल में दस्तक दे दी थी। रणनीतिक तौर पर भारत के लिए ये एक चेतावनी थी कि अफगानिस्तान अब उसके विरोधी खेमे में जा सकता है। यही वजह रही कि भारत ने अपने संपर्क बनाए रखने शुरू कर दिए। भारत ने काबुल में अपने दूतावास को अस्थायी रूप से खोला और दोहा व दुबई में तालिबान अधिकारियों के साथ बैठकें शुरू कीं। जनवरी 2025 में विदेश सचिव विक्रम मिस्री और मई 2025 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की तालिबान विदेश मंत्री आमिर मुत्ताकी से बात भारत की कूटनीति में एक बड़ा मोड़ थी।
तालिबान को मान्यता देने से डर क्यों रहा है भारत?
भारत फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ नीति पर काम कर रहा है। भारत की कूटनीति बेहद सटीक और सतर्क है। तालिबान को मान्यता देना भारत के लिए न केवल दक्षिण एशियाई समीकरण बल्कि वैश्विक कूटनीति में भी एक बड़ा कदम होगा। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन जैसे तमाम पश्चिमी देशों ने तालिबान को अब तक मान्यता नहीं दी है। ऐसे में भारत का यह कदम उसके अंतरराष्ट्रीय रिश्तों पर असर डाल सकता है। भारत यह भी देखना चाहता है कि तालिबान अपने वादों पर कितना खरा उतरता है। क्या वो आतंकवादी संगठनों को अपने देश से बाहर निकालता है? क्या अफगान महिलाओं को अधिकार दिए जाते हैं? क्या अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है? इन सवालों के जवाब तय करेंगे कि भारत कब और कैसे तालिबान को स्वीकार करता है।
बिना मान्यता दिए भी भारत बना रहा असरदार रिश्ता
भारत ने मान्यता न देने के बावजूद तालिबान से अपने संपर्क पूरी सतर्कता से जारी रखे हैं। भारत अफगानिस्तान को खाद्यान्न, दवाइयां और आर्थिक मदद पहुंचा रहा है। चाबहार पोर्ट के जरिए भारत अफगानिस्तान के साथ व्यापारिक रिश्ते भी बनाए हुए है। इतना ही नहीं, अफगानिस्तान में भारत की मदद से बनी सड़कों, बांधों और अस्पतालों की आज भी वहां की जनता प्रशंसा करती है। तालिबान भी भारत के इस सहयोग को नजरअंदाज नहीं कर रहा। विदेश मंत्री मुत्ताकी ने खुद भारत की भूमिका की तारीफ की है और रूस की तरह भारत से भी मान्यता की उम्मीद जताई है।
क्या भारत रूस की राह चलेगा?
अब सवाल ये उठता है कि क्या भारत रूस की तरह तालिबान को मान्यता देगा? इसका उत्तर आसान नहीं है। रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध पहले से लगे हैं, इसलिए उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव की ज्यादा चिंता नहीं। लेकिन भारत एक वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, उसे अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों से अपने रिश्ते भी संतुलित रखने हैं। लेकिन एक बात तो तय है—भारत तालिबान को नजरअंदाज नहीं कर सकता। अफगानिस्तान उसकी रणनीतिक सुरक्षा का केंद्र है, और पाकिस्तान-चीन गठजोड़ के बीच उसे अपनी जगह बनानी ही होगी।
भारत देगा तालिबान को मान्यता?
ये अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं। रूस ने तालिबान को वैध करार दिया है। पाकिस्तान, चीन, ईरान जैसे देश पहले ही संपर्क में हैं। भारत ने अब तक तालिबान की खुलकर आलोचना नहीं की, बल्कि व्यावहारिक संपर्क बनाए रखा है। संकेत साफ हैं—भारत बहुत जल्द कोई बड़ा कूटनीतिक फैसला ले सकता है। सवाल है कि क्या ये फैसला अफगानिस्तान में भारत की साख को और मजबूत करेगा, या अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसे घिरा हुआ बना देगा। जिस दिन भारत तालिबान को मान्यता देगा, वह दिन दक्षिण एशिया की राजनीति के लिए ऐतिहासिक होगा… और शायद पूरी दुनिया उस दिन भारत की ओर देख रही होगी।
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