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तालिबान को गले लगाना चाहती है दुनिया! क्रूर शासन से लेकर अंतरराष्ट्रीय मान्यता तक कैसे बदल गया बदला नजरिया?
Taliban Is In Global Demand: पाकिस्तान, भारत, चीन और यहां तक कि अमेरिका भी तालिबान के संपर्क में बताए जा रहे हैं।
Taliban Is In Global Demand (photo credit: Social Media)
Taliban Is In Global Demand: जिस तालिबान को कभी आतंक और क्रूरता का प्रतीक माना जाता था, अब वही तालिबान दुनिया की बड़ी ताकतों के लिए एक रणनीतिक आवश्यकता बनता जा रहा है। हाल ही में रूस ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता देकर विश्वभर की राजनीति में बड़ा संदेश दिया है। इसके बाद पाकिस्तान, भारत, चीन और यहां तक कि अमेरिका भी तालिबान के संपर्क में बताए जा रहे हैं।
आखिर क्यों बढ़ रही है तालिबान की डिमांड?
1. रणनीतिक लोकेशन: 3 एशियाई क्षेत्रों का मेल-जोल
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे बहुत महत्वपूर्ण बनाती है। भारत, चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान के बीच स्थित यह देश दक्षिण, मध्य और पश्चिम एशिया के चौराहे पर है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और रूस के ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर प्लान्स में अफगानिस्तान की भूमिका बेहद आवश्यक बन गई है।
2. खनिज संपदा: लिथियम से लेकर सोना तक का भंडार
तालिबान के अधीन अफगानिस्तान में तकरीबन 1 ट्रिलियन डॉलर के खनिज मौजूद हैं। इनमें लिथियम, तांबा, कोबाल्ट, सोना और लौह अयस्क शामिल हैं। लिथियम जैसी धातुएं आज के डिजिटल और इलेक्ट्रिक युग में बहुत जरूरी बन गयी हैं और तालिबान अब इन्हें वैश्विक सौदेबाजी में प्रयोग कर सकता है।
3. तेल-गैस और रेल कॉरिडोर की कड़ी
TAPI गैस पाइपलाइन, CASA-1000 बिजली परियोजना और 5 Nations रेलवे कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट्स तालिबान की मंजूरी के बिना असंभव है। रूस और ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण अफगानिस्तान एक वैकल्पिक ट्रांजिट मार्ग बन गया है, जिससे पश्चिमी और एशियाई देश दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
तालिबान से बातचीत अब मजबूरी क्यों?
तालिबान की कट्टरपंथी नीतियां और महिलाओं पर सख्ती अब भी चिंता का बड़ा विषय हैं, लेकिन वैश्विक ताकतें अब मानवाधिकार से अधिक रणनीतिक और आर्थिक रूप से फायदे पर ध्यान केंद्रित की हुई हैं। रूस की मान्यता ने यह संकेत दे दिया है कि अगर तालिबान सत्ता में स्थिर रहता है, तो अन्य देश भी व्यवहारिक रूप से उसे मान्यता देने के मार्ग में आगे बढ़ सकते हैं।
बता दे, तालिबान भले ही अपनी विचारधारा को न बदले, लेकिन दुनिया की सोच में बड़ा परिवर्तन आ चुका है। वैश्विक कूटनीति में अब विचारधारा से अधिक आवश्यक्तायें मायने रखती हैं और अफगानिस्तान की ज़रूरतें आज हर बड़ी ताकत के एजेंडे में शामिल हैं।
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