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Hariyali Teej Niyam:हरियाली तीज व्रत से जुड़े नियम क्या है, इस व्रत में क्या खाएँ और क्या नहीं,जानिए इस व्रत से जुड़ी कथा

Hariyali Teej Niyam: हरियाली तीज के दिन पूजा विधि और नियमों का पालन करने के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय बताए गए है। जानते है कथा और नियम

Suman  Mishra
Published on: 26 July 2025 12:43 PM IST
Hariyali Teej  Niyam:हरियाली तीज व्रत से जुड़े नियम क्या है, इस व्रत में क्या खाएँ और क्या नहीं,जानिए इस व्रत से जुड़ी कथा
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Hariyali Teej Niyam : हरियाली तीज सुहाग -सौभाग्य के लिए बेहद खास होता है, सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज है। इस दिन महिलाएं शिव और पार्वती की पूजा करती हैं पति की लंबी आयु के लिए कामना करती है। इस दिन व्रत से जुड़े कई नियम होते है और उन नियमों का पालन करने शिव जी की प्रसन्नता मिलती है।आस्था, सौंदर्य और प्रेम से भरे इस त्योहार को मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में सुहागिन स्त्रियां इसे कजली तीज के रूप में मनाती हैं। जानते है हरियाली तीज नियम...

हरियाली तीज नियम

हरियाली तीज विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां व्रत रखती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं और माता पार्वती व भगवान शिव की विधिवत पूजा करती हैं।

हरियाली तीज की पूजा स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें, विशेषकर हरे रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। इसके बाद घर के पूजाघर में घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें। संकल्प करते समय मन में श्रद्धा और पूर्ण विश्वास होना चाहिए।पूजा स्थल को स्वच्छ जल से धोकर शुद्ध करें। गोबर का लेपन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि यह धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्रता का प्रतीक है। इसके बाद वहां एक चौकी रखें और उस पर लाल या हरे रंग का कपड़ा बिछाएं।

चौकी पर मिट्टी या धातु की शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। यदि मूर्ति उपलब्ध न हो तो तस्वीर का भी उपयोग किया जा सकता है। अब शिव-पार्वती का आवाहन करें, यानी उन्हें अपने घर में आमंत्रित करें, यह भावना पूजा की शुरुआत में अत्यंत आवश्यक होती है।भगवान शिव और माता पार्वती को दूध, दही, शहद, गंगाजल, फूल, बिल्वपत्र, वस्त्र, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी, सिंदूर और श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। माता पार्वती को विशेष रूप से हरी साड़ी और सुहाग की पिटारी अर्पित की जाती है, जिसमें कंघी, काजल, चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर आदि शामिल होते हैं।पूजा के बाद, सभी व्रती महिलाएं हरियाली तीज की व्रत कथा का श्रवण करती हैं या स्वयं पाठ करती हैं। इस कथा में माता पार्वती के तप और उनके शिव को प्राप्त करने की कथा होती है, जो स्त्रियों को आत्मबल, श्रद्धा और समर्पण की प्रेरणा देती है।कथा के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। आरती थाली में दीपक, कपूर, फूल और अक्षत रखें और पूरे भाव से आरती करें। इस समय शिव-पार्वती के मंत्रों का उच्चारण करना शुभ फलदायी माना जाता है।


हरियाली तीज व्रत खोलने

व्रत खोलते समय सबसे पहले फल खाना अच्छा रहता है, खासकर हरे फल जैसे अंगूर, अमरूद या कीवी को प्राथमिकता दी जाती है। ये पाचन में हल्के होते हैं और शरीर को ऊर्जा देते हैं।दूध, दही, खीर जैसी चीजें शरीर को ठंडक देती हैं और व्रत के बाद पोषण भी मिलता है. दूध से बनी मिठाइयां भी थोड़ी मात्रा में खा सकते हैं। बादाम, काजू, किशमिश और छुहारा जैसे सूखे मेवे खाने से शरीर को ताकत मिलती है. ये ज्यादा देर तक ऊर्जा बनाए रखते हैं। घेवर, मालपुआ, या घर की बनी कोई हल्की मिठाई थोड़ी मात्रा में ली जा सकती है. पर ध्यान रहे कि मिठाई सीमित मात्रा में ही खाएं। व्रत खोलने के कुछ समय बाद अगर कुछ और खाना चाहें तो दाल, चावल, रोटी और उबली सब्जियों से बना हल्का खाना उपयुक्त रहेगा, तेल और मसालों से बचते हुए घर का बना खाना ही लें।

हरियाली तीज व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए

इस दिन व्रत के दौरान गेहूं, चावल जैसे अनाज और मांस, मछली, अंडा आदि से पूरी तरह परहेज रखना चाहिए।इनका उपयोग पूजा-पाठ वाले दिनों में नहीं किया जाता, इसलिए इनसे भी बचें।ऐसा खाना पचाने में भारी होता है और व्रत के बाद शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है।बासी भोजन और बाजार से मिलने वाला तैलीय, मिलावटी खाना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे पदार्थों का सेवन न सिर्फ व्रत को अपवित्र करता है, बल्कि स्वास्थ्य को भी बिगाड़ता है, बहुत ज्यादा मिठाई खाने से थकान, सुस्ती और पेट संबंधी परेशानी हो सकती है।

हरियाली तीज व्रत कथा

शिव पुराण की कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री के रूप में सती का जन्म हुआ था। दक्ष एक विष्णु भक्त थे, लेकिन भगवान शिव से उनको चिढ़ थी। वह महादेव को पसंद नहीं करते थे। वह सती का विवाह भगवान विष्णु से कराना चाहते थे, लेकिन सती तो शिवजी को पति स्वरूप में मान चुकी थीं। सती की जिद के आगे दक्ष की एक न चली और विवश होकर उन्होंने सती का विवाह भगवान शिव से करा दिया। भगवान शिव उनके दमाद बन गए थे, फिर भी दक्ष के मन में उनके प्रति द्रोह कम नहीं हुआ था।

एक समय की बात है. प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, भगवान शिव को छोड़कर उन्होंने सभी देवी, देवता, गंधर्व, किन्नर आदि को आमंत्रित किया. जब इस बात की सूचना सती को मिली ​तो वो आश्चर्यचकित रह गईं कि उनके पिता ने शिवजी और उनको आमंत्रित नहीं किया है।सती पिता के यज्ञ में बिना बुलाए जाने के लिए तैयार थीं, लेकिन शिवजी ने मना किया। महादेव ने उनसे कहा कि यदि निमंत्रण नहीं मिला है तो पिता के घर जाना भी अपमान का कारण हो सकता है। बिना बुलाए जाने पर सम्मान को हानि पहुंचेगी. लेकिन सती नहीं मानीं।

महादेव की अनुमति के बिना ही सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ समारोह में चली गईं। बिना निमंत्रण मायके आने पर दक्ष ने सती और शिवजी का बड़ा ही अपमान​ किया। तब सती को महादेव की बात समझ आई। सती ने कहा कि वे अपने पति की आज्ञा के बिना इस यज्ञ में आईं और इससे उनका अपमान हुआ है। अब वह इस अपमान के साथ कैसे कैलाश वापस जाएंगी। अपार दुख और ग्लानि में आकर सती ने उस यज्ञ कुंड में ही आत्मदाह कर लिया। यह देखकर महादेव अत्यंत क्रोधित हो गए. उनसे वीरभद्र प्रकट हुए, जिन्होंने दक्ष के यज्ञ को तहस नहस कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया. बाद में उन्हें बकरे का सिर लगाया गया. पति भोलेनाथ की बात न मानने के कारण सती को अपमान और आत्मदाह का दंड मिला।

भगवान शिव से मिलन के लिए सती को 108 बार जन्म लेना पड़ा। 107 जन्मों तक सती ने भगवान शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए कठोर तप किया, तब जाकर 108वें जन्म में वे हिमालयराज की बेटी पार्वती के रूप में आईं। देवी पार्वती ने इस जन्म भी भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया। उनके तप से भगवान शिव शंकर प्रसन्न हुए और उनको दर्शन दिए। पति स्वरूप में पाने की उनकी इच्छा को पूर्ण करने का वरदान दिया। हिमालयराज ने देव पार्वती का विवाह भगवान शिव से करा दिया।107 जन्मों के बाद शिव और पार्वती का मिलन हुआ. कहा जाता है कि हरियाली तीज के दिन माता पार्वती की मनोकामना पूर्ण हुई थी, इसलिए कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं, ताकि उनकी कृपा से उन्हें भी मनचाहा वर या योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति हो। विवाहित महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन के लिए करती हैं।

नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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