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सड़कों पर मौत की बौछार, शासन बना मूकदर्शक! बिहार में फिर लौट रहा जंगल राज? दिन-दहाड़े गोलियां, लाशों की कतार और सत्ता की चुप्पी

Bihar Jungle Raj is back: बिहार में एक बार फिर जंगल राज की वापसी की आशंका! पटना से दरभंगा तक गोलियों की गूंज, लाशों की कतार और प्रशासन की चुप्पी ने जनता को डर के साये में जीने को मजबूर किया है।

Harsh Srivastava
Published on: 19 July 2025 8:00 AM IST (Updated on: 19 July 2025 8:00 AM IST)
सड़कों पर मौत की बौछार, शासन बना मूकदर्शक! बिहार में फिर लौट रहा जंगल राज? दिन-दहाड़े गोलियां, लाशों की कतार और सत्ता की चुप्पी
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Bihar Jungle Raj is back: एक समय था जब नीतीश कुमार को ‘सुशासन बाबू’ कहा जाता था। कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने का दावा करने वाली सरकार को लेकर आज वही जनता पूछ रही है – “आखिर बिहार में जान की कीमत इतनी सस्ती क्यों हो गई है?” पटना से लेकर मुजफ्फरपुर, गया से लेकर बक्सर और दरभंगा तक हर दिन, हर गली, हर चौराहे पर गोलियों की आवाज़ें गूंज रही हैं। पुलिस की गाड़ियां घटनास्थल तक तब पहुंचती हैं जब अपराधी फरार हो चुके होते हैं। CCTV फुटेज, एफआईआर, पोस्टमार्टम और फिर वही पुराना बयान – “जांच की जा रही है।” लेकिन सवाल ये है कि जब तक जांच होती है, तब तक अगली लाश क्यों गिर जाती है? बिहार की सड़कों पर जो माहौल बना है, उसने 2000 के दशक की भयावह यादें ताज़ा कर दी हैं, जब हर जुबान पर सिर्फ एक शब्द होता था जंगल राज। आज फिर वही डर लौट रहा है, फर्क बस इतना है कि इस बार सत्ता में वही लोग हैं जो उस दौर के खिलाफ खड़े थे।

सुशासन से ‘सूचनाहीन शासन’ तक?

नीतीश कुमार ने जब लालू यादव के 'जंगल राज' के खिलाफ सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने साफ कहा था – “कानून का राज लाना है, गुंडों का नहीं।” लेकिन आज वही बिहार पुलिस असहाय दिख रही है, प्रशासन बौना और आम जनता डरी हुई। गुजरे कुछ हफ्तों की घटनाएं देखें तो लगता है कि कोई भी, कहीं भी, कभी भी मारा जा सकता है और हत्यारे बेखौफ भाग जाते हैं। चाहे किसी छात्र नेता की हत्या हो, व्यापारी का अपहरण हो, थाने के सामने गोलीबारी हो या अस्पताल में घुसकर कत्ल अपराधियों की हिम्मत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। विपक्ष अब यही सवाल उठा रहा है “क्या नीतीश सरकार ने सुशासन का ताज छोड़कर ‘संधिग्ध समझौतों’ की राजनीति शुरू कर दी है?” सत्ताधारी दल के मंत्री अपराध पर बयान देते हुए कहते हैं – “सबकुछ नियंत्रण में है।” लेकिन आंकड़े और ज़मीन की हकीकत कुछ और कहती है।

‘राजनीति + अपराध = अभेद गठजोड़’?

बिहार में अपराध का इतिहास राजनीति से जुड़ा रहा है। कई विधायक और सांसद खुद आपराधिक मामलों में आरोपी रहे हैं। लेकिन अब अपराधियों की नई नस्ल और भी संगठित, हिंसक और बेलगाम हो चुकी है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि पुलिस-प्रशासन को जानबूझकर ‘राजनीतिक जकड़न’ में रखा गया है ताकि चुनिंदा अपराधियों को संरक्षण मिले। ऐसे में जनता का विश्वास सिर्फ हिलता नहीं, पूरी तरह से टूट जाता है। कई घटनाओं में ये भी देखा गया है कि पीड़ित परिवार पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने जाते हैं, लेकिन उल्टा उन्हें ही धमकाया जाता है या बयान बदलने का दबाव डाला जाता है। यह सिस्टम की असफलता नहीं, बल्कि एक सुनियोजित 'तंत्र विफलता' है।

‘जंगल राज’ सिर्फ अपराध नहीं, डर का मनोविज्ञान है

बिहार में ‘जंगल राज’ का मतलब सिर्फ अपराध नहीं है, बल्कि एक ऐसा वातावरण है जिसमें हर कोई डरा हुआ है – दुकानदार, छात्र, डॉक्टर, किसान, पुलिस और यहां तक कि नेता भी। मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार, जब समाज का एक बड़ा हिस्सा अपराध को सामान्य मानने लगे, तो वो समाज 'सामूहिक डिप्रेशन' में चला जाता है और यही हो रहा है बिहार में। एक तरफ युवा नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं, दूसरी तरफ मां-बाप अपने बच्चों को शाम 6 बजे के बाद बाहर भेजने से डरते हैं। यह डर सिर्फ कानून की विफलता नहीं, बल्कि सरकार की ‘मौन स्वीकृति’ का संकेत भी बनता जा रहा है।

नीतीश कुमार: थके हुए सेनापति या किसी बड़ी चाल के इंतज़ार में?

नीतीश कुमार लंबे समय से बिहार की राजनीति के चाणक्य माने जाते रहे हैं। कभी भाजपा के साथ, कभी विपक्ष के साथ, तो कभी तीसरे मोर्चे की बात। लेकिन आज जो हालात हैं, उसमें लगता है कि या तो नीतीश जी बहुत थक चुके हैं, या फिर वे किसी राजनीतिक विस्फोट की तैयारी में हैं – जिसकी कीमत जनता अपनी जान देकर चुका रही है। जनता पूछ रही है – “अगर कानून-व्यवस्था बिगड़ रही है, तो जिम्मेदारी कौन लेगा?” सरकार अपराध को ‘प्रचार का विषय’ मानती है, लेकिन क्या लाशों की गिनती को मीडिया मैनेजमेंट से दबाया जा सकता है?

2025 की बिसात: जंगल राज बनेगा चुनावी मुद्दा?

बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक हैं। ऐसे में विपक्षी दल पहले ही नीतीश सरकार को घेरने लगे हैं। तेजस्वी यादव बार-बार याद दिला रहे हैं कि “बिहार फिर उसी डर के रास्ते पर जा रहा है, जहां से नीतीश जी ने शुरू किया था।” चिराग पासवान, कांग्रेस, और यहां तक कि भाजपा भी अब अपराध के आंकड़ों को चुनावी हथियार बना रही है।

क्या बिहार फिर उसी अंधेरे में जा रहा है?

बिहार एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध राज्य है। लेकिन जब वहां का युवा गोलियों की गूंज सुनकर बड़ा हो, तो ये राज्य की सबसे बड़ी हार है। आज जिस तरह से अपराध बढ़ रहा है और सत्ता मौन है, उसने जनता को मजबूर कर दिया है सवाल पूछने पर “क्या यही है हमारा ‘सुशासन’? क्या अब भी जंगल राज सिर्फ एक आरोप है, या ये हकीकत बन चुकी है?” बिहार फिर से दो राहों पर खड़ा है एक रास्ता है बदलाव का, और दूसरा है खामोश कबूलनामे का। अब देखना ये है कि 2025 में जनता किसे अपना नेता चुनती है डर को फैलाने वाले को, या डर को खत्म करने वाले को?।

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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