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“22 हज़ार हथियार, 22 हज़ार कसमें – नीतीश की चुनावी ‘शपथ सेना’ तैयार! बिहार की सड़कों पर अब दिखेगा ‘शराब मुक्त पुलिस राज’?”
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया। नवनियुक्त सिपाहियों को जहां एक ओर विधि-व्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई, वहीं दूसरी ओर, शराबबंदी कानून को लागू करने की ‘पर्सनल शपथ’ भी दिलाई गई।
Bihar Politics: पटना की गर्म दोपहरी में जैसे ही बापू सभागार के दरवाजे खुले, भीतर दाखिल हुए हज़ारों जवान—सभी एक ही रंग की वर्दी में, एक ही लक्ष्य के साथ, और एक ही लय में बोले गए शब्दों के साथ: "हम आजीवन शराब का सेवन नहीं करेंगे!" बिहार की फिज़ा में कुछ बदला-बदला सा था। एक नई तरह की सेना खड़ी हो रही थी, बंदूकें लिए नहीं, बल्कि एक नशे के खिलाफ कसम खाकर। शनिवार, 28 जून 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 21,391 नए सिपाहियों को नियुक्ति पत्र सौंपे। लेकिन ये महज़ नौकरी नहीं थी—ये था एक प्रतीकात्मक संदेश, एक सियासी शंखनाद, और शायद, आने वाले चुनावों से ठीक पहले नीतीश का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक।
नीतीश की नई 'शपथ सेना' – सिर्फ शराबबंदी या चुनावी ब्रिगेड?
बिहार की राजनीति में ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया। नवनियुक्त सिपाहियों को जहां एक ओर विधि-व्यवस्था को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई, वहीं दूसरी ओर, शराबबंदी कानून को लागू करने की ‘पर्सनल शपथ’ भी दिलाई गई। अब सवाल ये उठता है—क्या ये महज एक सामाजिक पहल है या इसके पीछे छिपा है चुनावी गणित? नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते हैं कि बिहार में शराबबंदी को लेकर उनकी छवि दो धारों में बंटी हुई है—एक ओर महिलाएं जो इसके पक्ष में हैं, दूसरी ओर बेरोजगार युवा, जिन्हें यह कानून गैरज़रूरी और भ्रष्टाचार बढ़ाने वाला लगता है। ऐसे में, 22 हज़ार जवानों की 'नशामुक्त शपथ' एक करारा जवाब भी है और बड़ा दांव भी।
"शराबबंदी की सुरक्षा में अब 22 हज़ार सिपाही!"
कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार ने दो टूक शब्दों में कहा, "बिहार में कानून का राज स्थापित है और रहेगा।" उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 2005 में जब उन्होंने सत्ता संभाली थी, तब राज्य में महज़ 42,481 पुलिसकर्मी थे। लेकिन अब सरकार 2.29 लाख से अधिक पुलिस पदों का सृजन कर चुकी है और साल के अंत तक सभी पद भर दिए जाएंगे। यह महज़ संख्या नहीं है, यह सत्ता का शक्ति प्रदर्शन है। और इसमें संदेश साफ है—बिहार अब बदलेगा, न केवल अपराध पर शिकंजा कसेगा, बल्कि शराब के नाम पर भी किसी तरह की छूट नहीं देगा।
चुनावी बिगुल या जनता के हक़ की हुंकार?
कार्यक्रम से पहले ही नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया पर इसका प्रचार शुरू कर दिया था, जिसमें उन्होंने इस दिन को बिहार पुलिस और राज्य के युवाओं के लिए “महत्वपूर्ण दिन” बताया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये केवल नियुक्ति नहीं, बल्कि एक ‘साइलेंट प्रचार’ था। जिन परिवारों के बच्चे अब पुलिस में भर्ती हुए हैं, उनका झुकाव चुनाव में किस ओर होगा—इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं। खासकर तब, जब सरकार खुद इन सिपाहियों से शराब के खिलाफ काम करने की शपथ दिलवा रही है, एक ऐसा मुद्दा जो महिला वोटर्स के बीच नीतीश को मजबूत बनाता है।
बिहार की सड़कों पर अब सख्ती या दिखावे की चौकीदारी?
अब सबकी निगाह इस बात पर है कि क्या वाकई इन 22 हज़ार नए सिपाहियों की भर्ती बिहार में अपराध पर लगाम लगाएगी या ये सिर्फ एक चुनावी स्टंट बनकर रह जाएगी। क्या इन जवानों की तैनाती गांव-गांव में होगी? क्या वाकई शराब माफिया पर शिकंजा कसेगा या पहले की तरह ये कानून सिर्फ गरीबों को पकड़ने का हथियार रहेगा? और सबसे बड़ा सवाल—क्या इन सिपाहियों की ‘शपथ’ से बिहार की धरती नशामुक्त हो पाएगी?
नीतीश का अगला दांव क्या होगा?
इस भव्य समारोह ने यह तो साफ कर दिया कि नीतीश कुमार अब बैकफुट पर खेलने वाले नहीं हैं। 2025 के चुनावी रण की शुरुआत उन्होंने एक प्रतीकात्मक और भावनात्मक चाल से कर दी है—“शपथ भी दिलाई, नौकरी भी दी और संदेश भी दे डाला।” अब देखना है कि क्या ये 22 हज़ार सिपाही नीतीश की सत्ता को फिर से मजबूत करेंगे या जनता इस ‘शपथ सेना’ को सरकार की आखिरी कोशिश के तौर पर देखेगी। फिलहाल इतना तय है—बिहार में अब सिर्फ वर्दी नहीं, शपथ भी चलेगी। और ये शपथ, किसी भी सियासत को हिला सकती है।
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