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"क्या मैं भारतीय हूं?" पटना से दिल्ली तक मची हलचल! बिहार में वोटर लिस्ट की आड़ में नागरिकता की तलाशी, अब NDA में भी बगावत

Bihar voter list Scam: बिहार में वोटर लिस्ट सत्यापन की आड़ में नागरिकता की तलाश शुरू! SIR प्रक्रिया पर उठा सियासी तूफान, NDA में भी फूटी बगावत, TDP ने चुनाव आयोग को लिखा पत्र, विपक्ष ने बताया NRC 2.0। जानें पूरी सच्चाई।

Harsh Srivastava
Published on: 15 July 2025 6:24 PM IST
क्या मैं भारतीय हूं? पटना से दिल्ली तक मची हलचल! बिहार में वोटर लिस्ट की आड़ में नागरिकता की तलाशी, अब NDA में भी बगावत
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Bihar Voter List Scam: बिहार की सियासत में एक ऐसा भूचाल आया है, जिसकी गूंज अब पूरे देश में सुनाई दे रही है। दरअसल, बिहार में चल रही ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) प्रक्रिया पर विवाद इतना गहराता जा रहा है कि अब इसके शोर में एनडीए के अंदर भी दरारें साफ दिखने लगी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि विरोध अब विपक्ष तक सीमित नहीं रहा,बल्कि खुद बीजेपी की सहयोगी पार्टी तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने भी इस पर कड़ा ऐतराज जताया है। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सांसद कृष्ण देवरायलु ने चुनाव आयोग को बाकायदा चिट्ठी लिखी है और SIR को "नागरिकता सत्यापन का छद्म माध्यम" बताया है। उन्होंने साफ कहा है कि इस प्रक्रिया का मकसद मतदाता सूची की शुद्धता नहीं, बल्कि नागरिकता की साजिशन जांच है।

TDP का सख्त ऐतराज: “ये मतदाता सत्यापन नहीं, मतदाता शोषण है”

सांसद कृष्ण देवरायलु ने चुनाव आयोग को भेजे गए पत्र में बेहद तल्ख़ शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने चेताया कि इस तरह की प्रक्रियाएं लोकतंत्र को कमजोर करती हैं, खासकर जब इन्हें नागरिकता के दस्तावेजों से जोड़ा जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि वोटर लिस्ट को अपडेट करना आयोग की जिम्मेदारी है, मतदाताओं को कटघरे में खड़ा करना नहीं। इतना ही नहीं, देवरायलु ने यह भी मांग की कि अगर SIR जैसी प्रक्रिया 2029 में आंध्र प्रदेश में लागू करनी है तो तुरंत शुरू की जाए, ताकि वोटर्स को पर्याप्त समय मिले। लेकिन बिहार में विधानसभा चुनाव से महज कुछ महीनों पहले ऐसी प्रक्रिया को लागू करना सीधे-सीधे चुनावी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।

“डर का माहौल, पहचान की तलाशी”,क्या ये है नए भारत का लोकतंत्र?

बिहार में लाखों वोटर इस वक्त असमंजस और डर के बीच जी रहे हैं। बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) के घर-घर दस्तक देने से लेकर नागरिकता के सबूत मांगने तक की प्रक्रिया ने आम जनता के मन में दहशत भर दी है। खासकर गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों में यह आशंका है कि कहीं उनके वोट का अधिकार ही न छीन लिया जाए। SIR के तहत राज्य के 8 करोड़ वोटरों को अपना नाम, पता और पहचान दस्तावेज दोबारा जमा करने होंगे। 2003 के बाद जन्मे नए वोटरों से उनके माता-पिता की जन्म तिथि तक पूछी जा रही है। क्या यह मतदाता सूची का सामान्य अद्यतन है या फिर छिपा हुआ NRC?

ECI की दलील: “घुसपैठ रोकना ज़रूरी है”,लेकिन किस कीमत पर?

चुनाव आयोग का कहना है कि इस पूरी कवायद का मकसद मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ बनाना है, ताकि घुसपैठिए वोटिंग प्रक्रिया का हिस्सा न बन सकें। आयोग ने दावा किया है कि नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के सैकड़ों लोगों के नाम अब तक पकड़े जा चुके हैं। लेकिन सवाल ये उठता है,क्या देश के हर मतदाता को शक की नजर से देखना ही समाधान है? क्या वोट डालने से पहले अब हर नागरिक को खुद को भारतीय साबित करना होगा? और वो भी ऐसे वक्त में जब विधानसभा चुनाव सिर पर खड़े हैं?

विपक्ष का आरोप: “SIR = NRC 2.0”

राजद, टीएमसी और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने इस अभियान को सीधे-सीधे NRC का नया संस्करण बताया है। आरजेडी सांसद मनोज झा, टीएमसी की महुआ मोइत्रा और ADR ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट का रिवीजन एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन जब उसमें नागरिकता के दस्तावेजों की मांग जोड़ दी जाए, तो वह सिर्फ प्रशासनिक नहीं, राजनीतिक हथकंडा बन जाती है।

बिहार में सियासी गर्मी चरम पर

TDP का यह विरोध केवल तकनीकी नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। यह वही पार्टी है जिसने नरेंद्र मोदी सरकार को कई बार समर्थन तो दिया है, लेकिन सवाल पूछने से कभी पीछे नहीं हटी। ऐसे में यह विरोध इस बात का संकेत हो सकता है कि SIR जैसे मुद्दों पर NDA के अंदर भी एकराय नहीं है। क्या बीजेपी अब अपने ही गठबंधन के सहयोगियों की चिंता को नजरअंदाज करेगी? क्या बिहार के चुनाव निष्पक्ष और भयमुक्त हो पाएंगे? या फिर यह “डर के साए में लोकतंत्र” का एक और अध्याय बन जाएगा?

मताधिकार की रक्षा होगी या पहचान की परीक्षा?

बिहार में SIR को लेकर उठे सवाल अब केवल प्रशासनिक नहीं, लोकतांत्रिक संकट बनते जा रहे हैं। देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत,वोटर,आज अपने ही देश में खुद को साबित करने के लिए दस्तावेज ढूंढ़ रहा है। क्या यही है 21वीं सदी का भारत? क्या एक आम आदमी के वोट का हक अब उसकी जेब में रखे कागज़ों पर निर्भर करेगा? इस साजिश का जवाब जनता को ही देना होगा,वोट से, सवाल से और साहस से।

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News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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