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बिहार चुनाव से पहले SIR पर सियासी घमासान, एनडीए में भी उठने लगे असंतोष के स्वर

Bihar News: बिहार में चुनाव से पहले चल रहे SIR अभियान पर सियासी घमासान मच गया है। प्रवासी मतदाताओं के नाम कटने की आशंका ने न सिर्फ विपक्ष को हमलावर बनाया है, बल्कि NDA सहयोगी दल भी विरोध में आ गए हैं। इससे चुनाव आयोग की प्रक्रिया और सरकार की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

Shivam Srivastava
Published on: 5 July 2025 9:33 PM IST
बिहार चुनाव से पहले SIR पर सियासी घमासान, एनडीए में भी उठने लगे असंतोष के स्वर
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Bihar News: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। इस मुद्दे पर जहां अब तक केवल विपक्ष सवाल उठा रहा था। वहीं अब एनडीए के भीतर से भी असंतोष की आवाजें उठने लगी हैं। जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है।

उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने SIR प्रक्रिया को लेकर खुलकर आपत्ति जताई है। कुशवाहा ने स्पष्ट कहा कि आयोग द्वारा दिए गए सीमित समय में मतदाता सूची का पुनरीक्षण कर पाना संभव नहीं है। उन्होंने दावा किया कि इससे प्रवासी बिहारी मतदाताओं के नाम काटे जा सकते हैं। जो लोकतंत्र के खिलाफ होगा।

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी खुद बिहार के बाहर रहने वाले इन प्रवासी वोटरों को जोड़ने के लिए एक विशेष अभियान चला रही है। जिसका नाम है एक भारत श्रेष्ठ भारत स्नेह मिलन। इस कार्यक्रम के जरिए पार्टी उन लोगों को जोड़ना चाहती है जो पिछले कुछ वर्षों में दूसरे राज्यों में चले गए हैं। लेकिन बिहार में वोट डालने का अधिकार रखते हैं। ऐसे मतदाता करीब 3 करोड़ हैं जो 80 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

हालांकि, चुनाव आयोग की वर्तमान प्रक्रिया में अगर प्रवासी मतदाता अपने क्षेत्र में भौतिक रूप से उपस्थित नहीं हुए तो उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। इस आशंका ने एनडीए के भीतर भी चिंता और भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। इससे न केवल बीजेपी की रणनीति पर असर पड़ सकता है बल्कि विपक्ष को सत्ता पक्ष पर हमला करने का नया हथियार भी मिल गया है।

राजद ने करार दिया था साजिश

राजद नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस ने पहले ही इस अभियान को छुपी हुई साजिश करार दिया था। उनका कहना था इसके जरिए चुनिंदा वर्गों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। अब जब एनडीए सहयोगी भी सवाल खड़े कर रहे हैं तो चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ गया है कि वह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करे।

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