बिहार में लहराएगा 'बसपा' का परचम? 'आकाश आनंद' ने संभाली कमान, विपक्ष के छूटे पसीने

BSP Campaign in Bihar: बिहार चुनाव 2025 में आकाश आनंद ने संभाली बसपा की कमान, दलित वोट बैंक पर टिकी बड़ी उम्मीदें।

Harsh Srivastava
Published on: 10 Sept 2025 3:45 PM IST
बिहार में लहराएगा बसपा का परचम? आकाश आनंद ने संभाली कमान, विपक्ष के छूटे पसीने
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BSP Campaign in Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच अब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी अपनी हुंकार भर दी है। यूपी की पूर्व सीएम मायावती के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने बुधवार को बिहार की कमान संभाल ली है। उन्होंने कैमूर जिले से बसपा की 'सर्वजन हिताय जागरूक यात्रा' की शुरुआत की है, जो 11 दिनों में 13 जिलों से होकर गुजरेगी। इस बार बसपा ने बिहार में सभी 243 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या 'घर वापसी' के बाद आकाश आनंद बिहार के रण में बसपा के लिए सियासी माहौल बना पाएंगे?

बसपा की 'यादगार' यात्रा: 13 जिलों से गुजरेगी

बसपा की 'सर्वजन हिताय जागरूक यात्रा' बिहार के उन 13 जिलों से होकर गुजरेगी जो दलित बहुल माने जाते हैं और ज्यादातर यूपी की सीमा से सटे हुए हैं। कैमूर से शुरू होकर यह यात्रा बक्सर, रोहतास, जहानाबाद, छपरा, सीवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों से गुजरेगी। बसपा इस यात्रा के जरिए डॉ. आंबेडकर के सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण को गांव-गांव तक पहुंचाकर दलित समुदाय को अपने पक्ष में एकजुट रखना चाहती है।

'दलित वोट' पर सबकी निगाहें, बसपा की राह मुश्किल

बिहार में बसपा का सियासी आधार दलित वोटों पर टिका है, जिनकी आबादी करीब 18 फीसदी है। लेकिन इस बार बसपा की राह आसान नहीं है। बीजेपी ने चिराग पासवान के जरिए दुसाध और जीतन राम मांझी के जरिए मुसहर समुदाय को साधने का दांव चला है, तो वहीं 'इंडिया' गठबंधन में कांग्रेस ने राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर रविदास समाज को सियासी संदेश दिया है। ऐसे में बसपा का 'एकला चलो रे' का फैसला काफी जोखिम भरा लग रहा है। बिहार की चुनावी लड़ाई दो बड़े गठबंधनों के बीच सिमटती दिख रही है, जिसमें अकेले लड़ना लोहे के चने चबाने जैसा है।

बसपा का 'ट्रैजिक' इतिहास: हर बार कटती है फसल

बिहार में बसपा का इतिहास काफी 'ट्रैजिक' रहा है। हर विधानसभा चुनाव में बसपा सियासी जमीन तैयार करती है, विधायक बनाती है, लेकिन हर बार उसके विधायक पाला बदलकर सत्ताधारी दल के साथ चले जाते हैं। यह सिलसिला 1995 से शुरू है, जब बसपा के दो विधायक लालू प्रसाद यादव की आरजेडी में शामिल हो गए थे। 2000 में पांच विधायक जीतकर आए, लेकिन वे भी पार्टी छोड़कर चले गए। 2020 में चैनपुर से बसपा के एकमात्र विधायक जमा खान चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू में शामिल हो गए और मंत्री बन गए। इस बार मायावती को उम्मीद है कि आकाश आनंद इस 'ट्रैजेडी' को खत्म करेंगे।

क्यों बिहार में नहीं बनी बसपा की दाल?

उत्तर प्रदेश में जिस तरह कांशीराम ने दलित समुदाय में राजनीतिक चेतना जगाई, वैसा कोई आंदोलन बिहार में नहीं हुआ। इसीलिए बसपा बिहार में दलित राजनीति कभी स्थापित नहीं कर पाई। यहां दलित राजनीति काफी अलग है। बिहार के दलित हर चुनाव में अपना मसीहा तलाशते हैं और हर बार उनका वोटिंग पैटर्न बदलता रहता है। बाबू जगजीवन राम से लेकर रामविलास पासवान तक, बिहार में कोई भी दलित नेता पूरे समुदाय को एकजुट नहीं रख सका। अब देखना होगा कि आकाश आनंद क्या बिहार के दलित वोटर्स को अपनी ओर खींच पाएंगे और क्या वे बसपा के लिए सियासी जमीन को उपजाऊ बना सकेंगे।

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Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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