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बिहार चुनाव में महागठबंधन के लिए संकट: ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल में बढ़ाई ताकत, अकेले चुनाव लड़ा तो तेजस्वी को हो सकता है बड़ा नुकसान!
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में ओवैसी की AIMIM की बढ़ती ताकत महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी बन सकती है। सीमांचल में मुस्लिम वोटों के बंटवारे से RJD को बड़ा नुकसान हो सकता है। जानें AIMIM की रणनीति और बिहार सियासत में संभावित बदलाव के बारे में।
Bihar Election 2025:
Bihar Election 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 करीब आ रहे हैं, और राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सभी पार्टियां अपनी रणनीति पर काम कर रही हैं और कई नए राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं। इस बार एक नया मोड़ आया है असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की तरफ से। AIMIM ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को एक पत्र लिखकर महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई है। यह पत्र AIMIM के बिहार अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल ईमान ने लिखा है।
क्या AIMIM, RJD से गठबंधन करना चाहती है?
AIMIM के नेता अख्तरुल ईमान ने एक पत्र में कहा है कि सेक्युलर वोटों का बिखराव रोकना जरूरी है ताकि बीजेपी और उसके समर्थक संगठनों (NDA) को सत्ता में आने से रोका जा सके। लेकिन RJD के नेता मनोज झा ने इसका जवाब देते हुए कहा कि अगर AIMIM सच में बीजेपी को हराना चाहती है, तो उसे चुनाव में हिस्सा लेने के बजाय महागठबंधन को सैद्धांतिक समर्थन देना चाहिए। अब सवाल यह है कि AIMIM और ओवैसी की पार्टी बिहार चुनाव में किस भूमिका में हो सकती है और उनका चुनावी प्रदर्शन कैसा रह सकता है।
AIMIM का बिहार में क्या रोल हो सकता है?
AIMIM, जिसकी अगुवाई असदुद्दीन ओवैसी करते हैं, बिहार के सीमांचल इलाके में एक ताकतवर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। सीमांचल में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, और AIMIM ने यहां अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। ओवैसी और उनकी पार्टी मुस्लिम समुदाय के मुद्दों, जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय पर जोर देती है। इसके साथ ही, ओवैसी अपने बेबाक बयानों और सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।
AIMIM का बिहार चुनाव में रोल इस बार दो तरह से हो सकता है:
महागठबंधन के साथ गठबंधन:
अगर RJD और कांग्रेस जैसी पार्टियां AIMIM को महागठबंधन में शामिल करती हैं, तो इससे सेक्युलर वोट एकजुट हो सकते हैं। इससे महागठबंधन की स्थिति NDA के खिलाफ मजबूत हो सकती है। AIMIM ने कहा है कि वह कम सीटों पर भी समझौता करने के लिए तैयार है, बशर्ते सीमांचल की महत्वपूर्ण सीटें उसे मिलें।
अकेले लड़ना या तीसरे मोर्चे का हिस्सा बनना:
अगर महागठबंधन में बात नहीं बनती, तो AIMIM अकेले या किसी तीसरे मोर्चे के साथ चुनाव लड़ सकती है। ओवैसी पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पार्टी 50 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जिसमें सीमांचल और आसपास के इलाके शामिल हैं। अगर AIMIM अकेले चुनाव लड़ती है, तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है, जो पहले RJD को मिलते थे, और इससे सियासी समीकरण बदल सकते हैं।
सियासी समीकरण कैसे बदल सकते हैं?
बिहार की राजनीति में मुस्लिम और यादव वोटों का बहुत बड़ा महत्व है। RJD की ताकत इन्हीं वोटों पर निर्भर करती है, और महागठबंधन इन वोटों को एकजुट रखने की कोशिश करता है। लेकिन AIMIM के आने से यह समीकरण और जटिल हो सकते हैं:
मुस्लिम वोटों का बंटवारा:
सीमांचल इलाके में मुस्लिम आबादी करीब 30-40% है। अगर AIMIM अकेले चुनाव लड़ती है, तो वह RJD के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। 2020 में AIMIM ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 5.23 लाख वोट (1.24%) हासिल किए थे, जो ज्यादातर सीमांचल की मुस्लिम-बहुल सीटों से आए थे। इससे RJD को नुकसान हुआ था क्योंकि कई सीटों पर महागठबंधन हार गया था। अगर AIMIM इस बार भी अकेले लड़ेगी, तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा NDA को फायदा दिला सकता है।
महागठबंधन की रणनीति पर असर:
RJD के नेता AIMIM को बीजेपी की बी-टीम कहकर तंज करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि AIMIM के चुनाव लड़ने से सेक्युलर वोट बंटते हैं, जिससे बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को फायदा होता है। अगर AIMIM महागठबंधन में शामिल होती है, तो RJD को सीटें बांटनी पड़ेंगी, जिससे उनकी ताकत कमजोर हो सकती है। इसके अलावा, AIMIM को महागठबंधन में शामिल करने से कुछ गैर-मुस्लिम वोटर नाराज हो सकते हैं, जो महागठबंधन के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
तीसरे मोर्चे की संभावना:
AIMIM ने यह भी संकेत दिया है कि अगर महागठबंधन में बात नहीं बनती, तो वह तीसरा मोर्चा बना सकती है। 2020 में AIMIM ने BSP और RLSP के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट बनाया था और 6 सीटें जीती थीं (AIMIM ने 5, BSP ने 1)। इस बार भी अगर AIMIM ऐसा मोर्चा बनाती है, तो यह महागठबंधन और NDA दोनों के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि यह न सिर्फ मुस्लिम वोट, बल्कि दलित और पिछड़े वर्ग के वोट भी खींच सकता है।
2020 में AIMIM का प्रदर्शन कैसा था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटें जीतीं। ये सीटें थीं:
अमौर (अख्तरुल ईमान)
कोचाधाम (इजहार अस्फी)
जोकीहाट (शहनवाज आलम)
बायसी (रुकनुद्दीन अहमद)
बहादुरगंज (अंजार नईमी)
ये सभी सीटें सीमांचल इलाके की थीं, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है। AIMIM ने 14.28% वोट शेयर हासिल किया था (उन 20 सीटों पर) और कुल 5,23,279 वोट मिले थे। लेकिन 2022 में इनमें से 4 विधायक RJD में शामिल हो गए, जिससे AIMIM को बड़ा झटका लगा। अब सिर्फ अख्तरुल ईमान ही AIMIM के इकलौते विधायक हैं। फिर भी, AIMIM ने सीमांचल में अपनी मजबूत मौजूदगी बनाए रखी है, और वहां के मुस्लिम वोटरों में उसका प्रभाव बरकरार है।
बिहार चुनावों में AIMIM की भूमिका
RJD के लिए AIMIM एक दोधारी तलवार साबित हो सकता है। अगर RJD AIMIM को अपने गठबंधन में शामिल करती है, तो उसे अपनी सीटों का बंटवारा करना पड़ेगा, जिससे उसका अपना प्रभाव कम हो सकता है। इसके अलावा, AIMIM को साथ लाने से RJD की छवि पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि कुछ लोग AIMIM को वोट-कटवा पार्टी मानते हैं।
वहीं, दूसरी तरफ अगर RJD AIMIM को गठबंधन से बाहर रखती है, तो ओवैसी की पार्टी अकेले चुनाव में उतरकर मुस्लिम वोटों को बांट सकती है, जिससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है। ओवैसी की रणनीति साफ है, वह चाहते हैं कि AIMIM को महागठबंधन में जगह मिले, ताकि उनकी पार्टी बिहार में अपनी पकड़ मजबूत कर सके।
AIMIM का बिहार चुनावों पर असर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में AIMIM की भूमिका अहम हो सकती है। अगर AIMIM महागठबंधन में शामिल होती है, तो यह सेक्युलर वोटों को एकजुट करने में मदद कर सकता है, लेकिन इससे RJD को अपनी सीटें और छवि का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। वहीं, अगर AIMIM अकेले या तीसरे मोर्चे के साथ चुनाव लड़ती है, तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा NDA को फायदा पहुंचा सकता है। 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीतकर यह साबित कर दिया था कि वह सीमांचल में एक ताकत बन चुकी है, लेकिन 4 विधायकों के RJD में चले जाने से AIMIM को नुकसान हुआ। इस बार ओवैसी की रणनीति और RJD का रुख यह तय करेंगे कि बिहार की सियासत में किस दिशा में बदलाव आता है।
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